chandrapratapsingh
Mar 12, 20222 min
लखनऊ, 12 मार्च 2022 : राजधानी लखनऊ की नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त। यह हाल कभी देश की नंबर एक पार्टी रही कांग्रेस का है। संगठन के अभाव में कांग्रेस का जनाधार चुनाव दर चुनाव लगातार खोता जा रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद अब कांग्रेस के सामने इसी साल होने वाले निकाय चुनाव में अस्तित्व बचाने की तगड़ी चुनौती है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरी पार्टियों के आगे कहीं टिक नहीं पाए। प्रियंका वाड्रा का नारा 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' भी लखनऊ की तीनों महिला प्रत्याशियों का भाग्य बदल नहीं पाया। मिश्रित आबादी वाली लखनऊ मध्य सीट से कांग्रेस ने एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) मामले में चर्चित रहीं सदफ जाफर को टिकट दिया, लेकिन वह भी खास नहीं कर सकीं। उनको भी तीन हजार से भी कम मत मिले और चौथे स्थान पर रहीं। मोहनलालगंज सुरक्षित सीट से पार्षद ममता चौधरी को आजमाया, लेकिन वह केवल 2,990 वोट ही हासिल कर सकीं। लखनऊ पश्चिम सीट से खड़ी होने वाली शहाना को महज ढाई हजार के करीब ही मत मिले। वह भी चौथे स्थान पर रहीं।
सपा छोड़कर कांग्रेस से मलिहाबाद सीट से चुनाव लड़े इंदल कुमार, बख्शी का तालाब में ललन कुमार, सरोजनीनगर में रुद्र दमन सिंह चौथे स्थान पर ही सिमटकर रह गए। महानगर अध्यक्ष उत्तरी अजय श्रीवास्तव उत्तर विधानसभा सीट से कोई करिश्मा नहीं कर सके और महज तीन हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे। लखनऊ पूर्व सीट से उतरे लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी भी साढ़े चार वोटों के साथ भाजपा, सपा और बसपा के बाद नजर आए।
लखनऊ कैंट से शहर महानगर अध्यक्ष दक्षिणी दिलप्रीत सिंह ने चुनौती पेश की, लेकिन साढ़े छह हजार मतों के साथ लड़ाई से बाहर ही रहे। कांग्रेस के प्रदर्शन ने संगठन और रणनीति को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं। चुनाव में कांग्रेस के स्टार प्रचारक रहे मुकेश सिंह चौहान का कहना है कि हार से नहीं, प्रदर्शन से निराशा है। जल्द ही संगठन और प्रत्याशियों की बैठक बुलाकर कम वोट मिलने की समीक्षा होगी।
तीन दशक में केवल एक सीट
नौ विधानसभा सीटों की बात करें तो तीन दशक से अधिक समय से केवल 2012 में कैंट सीट से रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। पार्टी इससे पूर्व कैंट में ही 1989 में जीती थी। दूसरी सीटों की बात करें तो पश्चिम में 1985 में कांग्रेस के जफर अली नकवी विधायक चुने गए थे। यहां उपचुनाव में जरूर श्याम किशोर शुक्ला जीते थे। तब से कांग्रेस को यहां से जीत का इंतजार है। लखनऊ पूर्व से आखिरी बार कांग्रेस को 1985 में स्वरूप कुमारी बख्शी ने सीट दिलाई थी। लखनऊ मध्य में पिछले 37 साल से कांग्रेस नहीं आई। 1985 में आखिरी बार नरेश चंद्रा जीते थे। सरोजनीनगर में आखिरी बार 1991 में सीट मिली थी, तब विजय कुमार त्रिपाठी विधायक बने थे। बख्शी का तालाब में 1991 में विनोद चौधरी जीते थे। मोहनलालगंज में 1985 में ताराचंद सोनकर विधायक बने। मलिहाबाद में आखिरी बार 1985 में कृष्णा रावत ने सीट दिलाई थी।