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Sep 10, 20212 min

4 लाख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण फिर मस्जिद और चर्च पर क्यों नहीं ? - सुप्रीम कोर्ट में केस

धार्मिक और परोपकारी चंदे के लिए समान कानून बनाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय से इसी याचिका की जल्द सुनवाई करने की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि देश के करीब चार लाख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है, जबकि मस्जिद और चर्च के मामले में ऐसा नहीं है। इसके साथ ही मांग की गई है कि वह सरकार को निर्देश दे कि वह धर्म और धार्मिक चंदे को लेकर समान कानून बनाए। जिससे सभी धर्म के अनुयायियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से जुलाई में दायर जनहित याचिका को गुरुवार को शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार के सामने तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए आई। संभावना जताई जा रही है कि कोर्ट अगले हफ्ते मामले पर सुनवाई कर सकता है।

वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दाखिल याचिका में दलील दी गई है कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों को अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और देखरेख के लिए वैसे ही अधिकार मिलने चाहिए, जैसे मुस्लिम, पारसी और ईसाइयों को मिले हैं। सरकार इस अधिकार को कम नहीं कर सकती। याचिका में दलील दी गई है कि अनुच्छेद 26 के तहत संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों के लिए प्राकृतिक आधार है, लेकिन हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिखों को इससे वंचित रखा गया है।

जनहित याचिका में कहा गया है कि देश में नौ लाख में से करीब चार लाख मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं। इसमें कहा गया कि किसी धार्मिक संस्था से जुड़ी एक भी मस्जिद या चर्च ऐसा नहीं है जहां सरकार का कोई नियंत्रण या हस्तक्षेप हो। जहां तक कर भुगतान या दान की बात है तो देश के चर्चों और मस्जिदों की ओर से कर का भुगतान नहीं किया जाता। इन्हीं कारणों से हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951 और राज्यों द्वारा समय-समय पर लागू किए गए ऐसे अन्य कानूनों में बदलाव की जरूरत है।

याचिका में कहा गया कि यह अधिनियम सरकार को मंदिरों के साथ-साथ उनकी संपत्तियों को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। मंदिरों पर लगभग 13 से 18 फीसदी सेवा शुल्क लगाया जाता है। हमारे देश में लगभग 15 राज्य ऐसे हैं, जो हिंदू धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण रखते हैं। जब सेवा शुल्क मंदिरों पर लागू किया जाता है, यह मूल रूप से सामुदायिक अधिकारों के साथ-साथ उन संसाधनों को भी छीन लेता है जो इसके हितों की रक्षा कर रहे हैं।

टीम स्टेट टुडे

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