आंध्र प्रदेश में आज नई सरकार की ताजपोशी हो गई। पांच साल बाद राज्य की सत्ता में वापसी करते हुए चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए हैं। नायडू ने बुधवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हाल के विधानसभा चुनाव में उनकी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने बहुमत हासिल किया है। यह चुनाव उन्होंने एनडीए के साथ मिलकर लड़ा था जिसमें उन्हें जबरदस्त सफलता मिली है।
2019 में राज्य की सत्ता से बाहर होने के बाद उनके सियासी सफर में कई उतार-चढ़ाव आए। खासकर 2023 में उन्हें कौशल विकास मामले में जेल जाना पड़ा। विधानभा चुनाव में प्रचंड जीत के साथ वह एक बार फिर सत्ता में आ गए हैं। इसके अलावा उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन किया है और केंद्र की एनडीए सरकार का अहम हिस्सा बनी है।
आइये जानते हैं कि चंद्रबाबू नायडू का सियासी सफर कैसा रहा है? उन्होंने किन पदों पर काम किया है? आंध्र की राजनीति में वापसी कैसी की है?
चंद्रबाबू नायडू के बारे में
नारा चंद्रबाबू नायडू का जन्म 20 अप्रैल 1950 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले के नरवरिपल्ले में एक किसान परिवार में हुआ था। नायडू ने पांचवीं कक्षा तक शेषपुरम के प्राथमिक विद्यालय और 10वीं कक्षा तक चंद्रगिरी सरकारी हाई स्कूल में शिक्षा हासिल की। उन्होंने 1972 में श्री वेंकटेश्वर आर्ट्स कॉलेज, तिरुपति से बीए की डिग्री पूरी की। नायडू ने श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1974 में पीएचडी पर काम करना शुरू किया, लेकिन अपनी पीएचडी पूरी नहीं की।
राजनीतिक कैरियर
चंद्रबाबू नायडू का सियासी सफर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के साथ शुरू हुआ था। उन्होंने 1978 में 28 साल की उम्र में अपना पहला चुनाव लड़ा। वह चंद्रगिरी विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक चुने गए। दिलचस्प है कि उन्हें कांग्रेस का टिकट पार्टी में युवाओं के लिए 20% कोटे वाले नियम के तहत मिला था। इसके बाद उन्हें टी. अंजैया की सरकार में सिनेमेटोग्राफी मंत्री बनाया गया। वह उस समय आंध्र प्रदेश में 28 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के विधायक और 30 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के मंत्री बने।
एनटीआर की बेटी से शादी
सिनेमेटोग्राफी मंत्री के रूप में नायडू उस समय तेलुगु सिनेमा के स्टार एनटी रामा राव (एनटीआर) के संपर्क में आए। कम उम्र में नायडू की उपलब्धियों से प्रभावित होकर एनटीआर ने अपने परिवार के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। 1981 में चंद्रबाबू नायडू ने एनटीआर की दूसरी बेटी भुवनेश्वरी से शादी की।
तेलुगु देशम पार्टी की शुरुआत
1982 में एनटी रामा राव ने तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का गठन किया और 1983 में हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारी जीत हासिल की। हालांकि, कांग्रेस से चुनाव लड़े उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू चंद्रगिरी विधानसभा सीट से चुनाव में टीडीपी उम्मीदवार से हार गए। इसके बाद परिवार के दबाव के चलते वह तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गए। 1984 के अगस्त में नादेंदला भास्कर राव के तख्तापलट से शुरू हुए संकट के दौरान उनकी सक्रिय भूमिका के बाद वे मुख्यमंत्री एनटीआर के करीबी विश्वासपात्र बन गए। यही कारण है कि एनटीआर ने उन्हें 1986 में टीडीपी का महासचिव नियुक्त किया।
1989 के विधानसभा चुनावों में नायडू ने अपना निर्वाचन क्षेत्र चंद्रगिरी से बदलकर कुप्पम कर लिया और टीडीपी उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। नायडू ने 1994 के विधानसभा चुनावों में कुप्पम निर्वाचन क्षेत्र से अपनी दूसरी जीत हासिल की। इन चुनावों में एनटी रामा राव के नेतृत्व में टीडीपी ने भारी जीत हासिल की। अब पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले नायडू एनटी रामा राव के मंत्रालय में वित्त और राजस्व मंत्री बने।
विद्रोह के बाद बने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री
1995 का साल था जब 45 वर्ष की आयु में नायडू ने एनटी रामा राव के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस घटनाक्रम के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 1999 के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ टीडीपी नेता नायडू ने विधानसभा में 294 में से 180 सीटें हासिल करके अपनी पार्टी को जीत दिलाई। इसके अलावा, टीडीपी ने लोकसभा चुनावों में 42 में से 29 सीटें जीतीं। इसके साथ ही वह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) गठबंधन सरकार में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
विस्फोट में बाल-बाल बच गए थे नायडू
1 अक्तूबर 2003 को तिरुपति में अलीपीरी टोलगेट के पास हुए बारूदी सुरंग विस्फोट में नायडू बाल-बाल बच गए। सात पहाड़ियों के ऊपर भगवान वेंकटेश्वर के ब्रह्मोत्सव के वार्षिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए तिरुमाला जाते समय मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला किया गया था। कुल 17 क्लेमोर माइन लगाए गए थे, जिनमें से नौ में विस्फोट हो गया। विस्फोट में नायडू को मामूली चोटों आईं और वह बच निकले।
राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ाया कद
चंद्रबाबू नायडू ने राष्ट्रीय राजनीति में भी अहम भूमिका निभाई। 1990 के दशक के मध्य में गैर-कांग्रेसी गठबंधन राजनीति में उन्हें किंग-मेकर माना जाता था। वे 13 राजनीतिक दलों के गठबंधन यूनाइटेड फ्रंट के संयोजक थे, जिसने 1996 के लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में सरकार बनाई। 1999 के लोकसभा चुनावों के बाद नायडू की भूमिका राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण हो गई। राज्य में टीडीपी और भाजपा के बीच चुनाव-पूर्व समझौता हुआ और इसने जबरदस्त सफलता हासिल की। राज्य में टीडीपी-भाजपा के सांसदों की संख्या 16 से बढ़कर 42 में से 36 हो गई। भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं था। टीडीपी प्रमुख ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा सरकार को अपने 29 सांसदों का समर्थन दिया। हालांकि, उनकी पार्टी सरकार में शामिल नहीं हुई और केवल 'मुद्दों के आधार पर समर्थन' दिया।
कई बार विपक्षी नेता की जिम्मेदारी भी निभाई
नायडू ने अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले के तुरंत बाद नवंबर 2003 में विधानसभा को भंग कर दिया। अप्रैल 2004 में लोकसभा चुनावों के साथ ही राज्य में चुनाव हुए। तेलुगु देशम पार्टी विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में हार गई। कांग्रेस पार्टी ने 185 सीटें जीतीं जबकि टीडीपी को विधानसभा में 47 सीटें मिलीं। इसके चलते चंद्रबाबू नायडू लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन सके। 2009 के विधानसभा और आम चुनावों में भी टीडीपी कांग्रेस से हार गई। टीडीपी ने विधानसभा में 92 सीटें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस को 156 सीटें मिलीं।
आंध्र के विभाजन के बाद बने मुख्यमंत्री
आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद 2014 में नए बने राज्यों में चुनाव हुए। नायडू ने भारतीय जनता पार्टी और जन सेना पार्टी के साथ फिर से गठबंधन किया और विभाजित आंध्र प्रदेश राज्य में 175 सीटों में से 102 सीटें जीतकर सत्ता में लौटे। नायडू ने आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उनकी पार्टी केंद्र में एनडीए सरकार में शामिल हो गई और केंद्रीय मंत्रिमंडल में दो विभागों को संभाला।
आंध्र को विशेष श्रेणी का दर्जा न मिलने पर एनडीए से नाता तोड़ा
मार्च 2018 में आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा (एसपीएस) दिए जाने के मुद्दे पर टीडीपी ने मोदी सरकार से अपने दो मंत्रियों को वापस बुला लिया था। टीडीपी के अनुसार, एससीएस का वादा पिछली कांग्रेस सरकार ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पारित करने के दौरान संसद में किया था। इसके बाद नायडू ने एसपीएस न दिए जाने के कारण आंध्र प्रदेश के साथ कथित 'अन्याय' के कारण टीडीपी के एनडीए से अलग होने की घोषणा की।
2019 में हारे
आंध्र प्रदेश में 2019 के विधानसभा और आम चुनावों में नायडू को हार का सामना करना पड़ा। वाईएसआरसीपी ने विधानसभा में 151 सीटें हासिल करके शानदार जीत हासिल की, जबकि टीडीपी ने 23 सीटें जीतीं। लोकसभा में टीडीपी ने तीन सीटें जीतीं, जबकि वाईएसआरसीपी ने बाकी 22 सीटें हासिल कीं। नायडू के बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एन लोकेश भी मंगलगिरी सीट से हार गए।
जेल गए और 2024 में सत्ता में वापसी की
नायडू ने सत्ता में आने के बाद से रेड्डी सरकार पर टीडीपी और नायडू के खिलाफ प्रतिशोध की राजनीति में शामिल होने का आरोप लगाया। आरोप लगाया कि पार्टी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ कई पुलिस मामले दर्ज किए गए। इसी बीच 2023 में चंद्रबाबू नायडू को कौशल विकास मामले में जेल भी जाना पड़ा लेकिन उन्हें अदालत से जमानत मिल गई।
नायडू ने 2024 में हुए चुनावों में शानदार वापसी की। उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में टीडीपी ने अकेले 135 सीटें जीतीं। इसके अलावा गठबंधन सहयोगियों पवन कल्याण की जनसेना पार्टी ने 21 और भाजपा ने आठ सीटें हासिल कीं। वहीं जगन मोहन की वाईएसआर कांग्रेस 11 सीटों पर आ गई।
इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी टीडीपी को 16, भाजपा को तीन और जनसेना पार्टी को दो सीटें आईं। वाईएसआर कांग्रेस महज चार सीटों पर ही सिमट गई।
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