आप जहां भी रहते हों एक बार गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि बीती मुहर्रम को इलाके की वो दुकानें, होटल, रेस्त्रां बंद थे जिनका नाम उजाला, परी, अमन, संगम, हिंद, भारत आदि जैसे नामों के साथ शुरु होता है। ये किस्सा भारत के किसी एक इलाके का नहीं बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी और बंगाल से गुजरात तक एक जैसा है।
महाकाल के दरबार उज्जैन जाइये, या मथुरा, काशी, अयोध्या, वैष्णो देवी की यात्रा हो या लखनऊ शहर में गोमती के पुल पर आपको सस्ते मेवे बेचता व्यापारी। सब मुस्लिम हैं और सबका मकसद एक ही है। धरती पर इस्लाम का राज कायम हो। अब आप कितने भी बड़े सेक्युलर हों, हिंदुओं में किसी भी जाति का प्रतिनिधित्व करते हों अगर आप उनकी दुकान, होटल, रेस्त्रां या व्यापार में किसी भी तरह से खुद को पेश कर रहे हैं तो यह तय है कि आप भारत में उनके लिए जेहादी फंड इकट्ठा करने में सहयोग ही दे रहे हैं।
भारत के बंटवारे के बाद लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही। हिंदू बहुल भारत में कांग्रेस मुसलमानों का वोट लेकर उनके हाल पर उन्हें छोड़ती रही।
मुख्यमंत्री योगी ने कांवड़ यात्रियों के लिए बड़ा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि पूरे यूपी में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों पर संचालकों-मालिकों का नाम और पहचान बतानी होगी। उन्होंने कहा कि कांवड़ यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया गया है। इसके अलावा हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई होगी।
गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते जैसे नामों से क्या पता चलेगा: अखिलेश
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा सामाजिक सद्भाव की दुश्मन है। समाज का भाईचारा बिगाड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ती रहती है। भाजपा की इन्हीं विभाजनकारी नीतियों के चलते प्रदेश का सामाजिक वातावरण प्रदूषित हो रहा है। उन्होंने कहा कि कांवड़ यात्रा को लेकर मुजफ्फरनगर पुलिस ने नया फरमान जारी किया है कि ठेले-ढाबे सहित सभी दुकानदार अपना नाम बाहर जरूर लिखें। इसके पीछे सरकार की मंशा अल्पसंख्यक वर्ग को समाज से अलग बांटने और उन्हें शक के दायरे में लाने की है। जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा। उन्होंने मांग की कि न्यायालय स्वतः संज्ञान ले और प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जांच करवाकर उचित कार्यवाही करे।
मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश बिगाड़ सकता है माहौल: मायावती
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि कांवड़ यात्रा मार्ग के दुकानदारों का नाम लिखने का मुजफ्फरनगर पुलिस का फरमान गलत परंपरा है। यह सौहार्दपूर्ण माहौल को बिगाड़ सकता है। जनहित में प्रदेश सरकार को इस आदेश को तत्काल वापस लेना चाहिए। बसपा सुप्रीमो ने बृहस्पतिवार को एक्स पर जारी अपने बयान में कहा कि पश्चिमी यूपी व मुजफ्फरनगर के कांवड़ यात्रा रूट में पड़ने वाले सभी होटल, ढाबा, ठेला आदि के दुकानदारों को मालिक का पूरा नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने का नया सरकारी आदेश गलत परंपरा है।
कांवड़ यात्रा के रास्ते पर खान-पान की सामग्री बेचने वाले सभी दुकानदारों को अपने और अपने कर्मचारियों के नाम बताने होंगे। उत्तर प्रदेश प्रशासन के इस आदेश को मुसलमान विरोधी बताया जा रहा है। ये तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात हो गई। जब प्रशासन ने किसी धर्म, समुदाय, जाति विशेष का नाम नहीं लिया, उसने सबके लिए आदेश जारी किया है तो फिर इससे मुसलमानों को नुकसान होगा, यह कैसे पता चला? मुसलमान किस हद तक अनैतिक और अमानवीय हरकतों में जुटे हैं। आए दिन पेशाब, थूक और पता नहीं किन-किन तरकीबों से अपवित्र करके खाने-पीने के सामान बेचने की इनकी घटिया हरकतों के वीडियोज सामने आते रहते हैं।
मुसलमान जहां हैं, वहां बस दो ही मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं। पहली- गैर-मुस्लिमों को जैसे भी हो सके, प्रताड़ित करो, उनका धर्म भ्रष्ट करो और दूसरी- तरह-तरह के जिहाद से उनका धर्म परिवर्तन करवाओ। अब तो लगातार मिल रहे प्रमाणों से यह साबित सा हो गया है कि मुसलमान न हिंदुओं के साथ सामंजस्य चाहते हैं और ना हिंदुस्तान को अपना मानते हैं। लेकिन उनकी मांग यह है कि हिंदू समावेशी विचारों से तनिक भी नहीं भटकें, धर्मनिरपेक्षता का दामन न छोड़ें। फिर पारदर्शिता से परहेज क्यों? किसकी दुकान है, यह बताने में क्या हर्ज? क्यों बात-बात में इस्लाम को खतरे में देखने वाला मुसलमान अपने होटलों, ढाबों के नाम हिंदू देवी-देवताओं पर रखेगा? उत्तर प्रदेश और कांवड़ यात्रा के मार्ग ही नहीं, पूरे देश में अगर कोई कुछ छिपाकर कारोबार कर रहा है तो क्या वह गुनाह नहीं है?
मुसलमानों और कथित मुस्लिम हितैषी राजनीति के ठेकेदारों के दोहरेपेन की पराकाष्ठा देखें। जो आज हिंदुओं को कांवड़ यात्रा के अनुष्ठान में भी मुसलमानों के थूक, पेशाब वाली खाने-पीने की चीजें स्वीकार करने को कह रहे हैं, वही मुसलमानों की हलाल कॉस्मेटिक्स, हलाल दवाई और यहां तक कि हलाल होटल, हलाल यात्रा तक की तरफदारी करते हैं। मुख्तार अब्बास नकवी, जावेद अख्तर, असदुद्दीन ओवैसी, एसटी हसन समेत उन तमाम मुसलमानों की गैरत कैसे मर गई जब मुसलमानों ने हलाल इकॉनमी खड़ी कर ली? इनमें से किसकी हिम्मत है जो मुसलमानों से पूछ ले कि आखिर चौबीसों घंटे, हर जगह, हर चीज में हलाल, हलाल की रट लगाने की क्या जरूरत है? बल्कि उलटा ये हलाल के लिए मुसलमानों को उकसाएंगे, उनका साथ देंगे, हजार तरह के तर्क देंगे। लेकिन हिंदुओं को समावेशी होना चाहिए।
मुसलमान खाने-पीने के सामानों में थूक रहे हैं, पेशाब कर रहे हैं और यह बीमारी किसी एक इलाके की नहीं, देश के कोने-कोने में देखी जा रही है तो फिर कोई किस मुंह से कहता है कि दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का फरमान हिटलरशाही है। अगर यह हिटलरशाही है तो यही सही, लेकिन हिंदू थूक चाटकर और पेशाब पीकर समावेशी और धर्मनिरपेक्ष भावना का झंडाबरदार नहीं बना रह सकता। जो कोई भी यूपी प्रशासन के आदेश की निंदा कर रहा है, वो इस बात की चर्चा तक नहीं करता कि हां, कुछ मुसलमान अमानवीय हरकतें करते हैं।
कहते हैं पढ़ाई से, जीवन स्तर ऊंचा होने से कट्टरता कम हो जाती है। लेकिन मुसलमानों पर यह फॉर्म्युला भी काम नहीं आता है। बाकियों को छोड़ दीजिए जो शिक्षा की रोशनी बांटते हैं, वो मुसलमान कट्टरता के किस घुप्प अंधेरों से घिरे हैं इसका प्रमाण अभी-अभी दिल्ली में मिला है। यहां मुस्लिम शिक्षकों ने बच्चों को धर्म परिवर्तन के लिए डराया। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में एक कर्मचारी का आरोप है कि मुस्लिम उनपर धर्म परिवर्तन करने का दबाव बना रहे हैं। मुसलमान चाहे आईएएस बन जाएं या यूएस चले जाएं, क्रिकेट खेल रहे हों या कोई फिल्म स्टार हो, पत्रकार हो या लेखक, जो जहां है जिहाद में लगा हुआ है। सबका तरीका अलग हो सकता है, लेकिन जिहाद में अपनी भागीदारी जरूर सुनिश्चित कर रहा है।
मुसलमानों की बेगैरती तो देखिए, ये माला में फूल भी पिरो रहे हैं तो थूक लगाकर।
वैसे चलते चलते एक बात सिर्फ याद रखने के लिए – जब 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी थी तो गली-मोहल्लों से चिकवों की दुकानें हटवाईं गईं थी। जिले-जिले में प्रशासन कूद पड़ा था मीट-मुर्गा की जगह-जगह लगी दुकानों पर। मुसलमानों को हिदायत थी कि कायदे में रहें। समय के साथ सब जाता रहा। अब इस प्रकार के वक्ती फैसले सिर्फ मुसलमानों को ताकत दे रहे हैं कि उन्हें जो करना है वो कट्टरता से करते रहें हिंदुओं के देश में हिंदुओं के अपने स्वार्थ धर्म और जाति से आगे नहीं जा सकते। सबसे बड़ी बात है कि लोहार,कहार,सुनार,बढ़ई,हलवाई, नाई आदि के परंपरागत काम आरक्षण की आग में जल गए। हिंदू बिरादरी के हर काम-धंधे पर अब मुसलमानों का कब्जा है। हिंदू को सिर्फ नौकरी चाहिए। कल्पना कीजिए कैसी अफीम सूंघ कर बैठा है हिंदुस्थान का हिंदू जहां सारे उद्योग-धंधों पर मुस्लिम हावी हो रहा है और हिंदू पढ़-लिख कर उसकी नौकरी करने को बेताब बैठा है।
ओवैसी ने सही कहा है कि हमें जो करना था हम कर चुके अब तो नतीजों की बारी है हिंदू बहुत देर से जागा है और अभी भी अलसा रहा है।
NDA पर योगी सरकार के फैसले का क्या होगा असर
सच्चाई कितनी भी थूक या पेशाब में सनी हो राजनीति करने वालों को इससे फर्क नहीं पड़ता। योगी सरकार का दुकानों पर नेमप्लेट लगाने का फैसला केंद्र सरकार के लिए क्या चुनौती बन रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चिराग पासवान, नीतीश कुमार और नायडू जैसे सहयोगी मुस्लिम प्रेम की जकड़ में हैं। उन्हें यकीन है कि मुसलमान बेइन्तिहा सेक्युलर है और गजवा हिंद के दौर में भी उनकी सियासत का सिक्का चलता रहेगा।
एक पहलू यह भी है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से उत्तर प्रदेश और केंद्र के बीच जिस तरह का समीकरण बना हुआ है उसमें योगी ने मोदी के सामने हिंदुत्व का ही पत्ता फेंका है जिसके मोदी पुराने खिलाड़ी रहे हैें लेकिन इस बार उनकी सरकार उन जोकरों के सहारे चल रही है जो कभी भी पलटी मार सकते हैं।
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