लखनऊ, 11 अप्रैल 2022 : आजम खां समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने जेल से लेकर कुर्सी तक समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का हर कदम पर साथ दिया। वह मुलायम के हर कदम पर साथी बने रहे। बताया जा रहा है कि वह इन दिनों फिर सपा से नाराज हैं।
आजम खां का गुस्सा, उनके रूठने और मनाने की कहानी कोई नई नहीं है। तुनकमिजाजी के लिए चर्चित आजम खां जब-तब किसी न किसी बात पर रूठते रहे हैं। आजम खां सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर करने में भी कभी नहीं चूकते। उनका गुस्सा हमेशा ही सुर्खियों में रहा और पार्टी के लिए हर बार असहज स्थिति पैदा हुई।
कभी मुस्लिमों में फायरब्रांड नेता की छवि रखने वाले आजम खां एक बार पहले भी समाजवादी पार्टी से दूर हो चुके हैं। वर्ष 2009 के चुनाव में अमर सिंह के कहने पर मुलायम सिंह यादव ने रामपुर से जया प्रदा को लोकसभा चुनाव लड़ा दिया था। इस पर गुस्साए आजम खां पार्टी से अलग हो गए थे, यहां तक कि फिरोजाबाद के उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को इसका नुकसान उठाना पड़ा। वह राजबब्बर से चुनाव हार गई थीं। इसके बाद मुलायम उन्हें मनाने के लिए रामपुर आए थे।
1977 में जनता पार्टी से पहली बार रामपुर से लोकसभा से चुनाव लड़ने और हारने के बाद आजम खां 1985 में मुलायम सिंह यादव से जुड़े। उसके बाद से वह लगातार उनके साथ रहे हैं। बीच में अमर सिंह से विवाद के कारण कुछ समय के लिए उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। विषम परिस्थितियों में मुलायम के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहने वाले आजम ने एक विश्वस्त सहयोगी के तौर पर अपनी पहचान बनाई। उत्तर प्रदेश अकेले दम पर सपा सरकार बनाने में उन्होंने बहुत अहम भूमिका निभाई है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आजम खां को एक कद्दावर मुस्लिम नेता माना जाता है। रामपुर, बरेली, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, शाहजहांपुर, बिजनौर, पीलीभीत, बदायूं, रुहेलखंड और तराई में मुस्लिमों के बीच उनकी काफी धाक रही है। उन्हीं की वजह से इस पूरे इलाके में समाजवादी पार्टी को 2012 के विधानसभा में अच्छी सफलता मिली थी।
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