चीन का ऐसा सच दबाया गया बीते 100 साल में - शी जिनपिंग और चीन का गोपनीय तंत्र है दुनिया के लिए खतरा
कहते हैं कि कोई एक व्यक्ति सौ साल भी जी सकता है लेकिन कोई एक विचार हजारों साल तक जीवित रहता है।
फिलहाल चीन इसका उदाहरण है। वामपंथ को पैदा करने वाला चीन दुनिया के लिए भले नासूर बना हुआ हो लेकिन चीन की सरकार एक जुलाई, 2021 को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के जश्न को कामायाबी भरे सफ़र के तौर पर पेश कर रही है।
कौन है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन
दुनिया को कोरोना का जानलेवा दंश देने वाला रहस्यमयी चीन और उससे भी अधिक क्रूर और महा रहस्यमयी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की कार्यप्रणाली हमेशा संदेह और सवालों के घेरे में रहती है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके चीन में दशकों से एक ही पार्टी शासन कर रही है। इस पार्टी की स्थापना शंघाई में एक दशक पहले कार्ल मार्क्स के आंदोलन व सिद्धांत के आधार पर की गई थी। इस पार्टी में सबसे बड़ा नियम है 'गोपनीयता'। पार्टी और प्रशासन की जानकारियां सार्वजनिक न करना, लोगों पर निगाह रखना और सत्ता के विरुद्ध उठने वाली आवाजों को दबाना इसका प्रमुख कार्य है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन (सीसीपी) कुछ मुद्दों पर न तो बात करती है और न बात करने वालों को पसंद करती है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी कौन कौन सी जानकारियां हैं जो सीसीपी ने आम जनता और दुनिया से छिपा रखी हैं।
कौन हैं पार्टी के सदस्य
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के मुताबिक उसके कार्यकर्ताओं की संख्या साढ़े नौ करोड़ से ज्यादा है। ये भी सच है कि आज तक पार्टी ने नामों की सूची कभी जारी नहीं की है। पार्टी की सदस्यता लेने की प्रक्रिया न्यूनतम दो वर्ष में पूरी होती है। इस बीच आवेदक के बारे में सारी जानकारियां जुटाई जाती हैं। यह भी पता लगाया जाता है कि उसके साथ कोई आरोप या दोष न जुड़ा हो, यहां तक कि उसके जान-पहचान वाले भी बेदाग होने चाहिए।
दुनिया में कितने समर्थक हैं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल माना जाता है। पहले स्थान पर भारतीय जनता पार्टी है, जिनका दावा है कि उनके कार्यकर्ताओं की संख्या 18 करोड़ है। सीसीपी के संगठन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पार्टी में 65 लाख श्रमिक, दो करोड़ 80 लाख कृषक, चार करोड़ से ज्यादा प्रोफेशनल्स और लगभग दो करोड़ सेवानिवृत कार्यकर्ताओं का काडर है।
चीन को करीब से देखने वालों का कहना है कि जब भी इस पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की जाती है, तब हम देख सकते हैं कि यह एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो नौकरशाहों से मिलकर बना है।
कहां से होती है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की फंडिंग
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन ने आज तक कभी भी अपने कोष की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। न ही यह बताया कि उसे धन कहां से और कैसे प्राप्त होता है। पार्टी के नेताओं की संपत्ति के बारे में कभी कोई चर्चा ही नहीं होती है। चीन में इस विषय पर चर्चा करना यानी मुसीबतों को दावत देना है।
सार्वजनिक जानकारी के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के सदस्यों को अपनी आमदनी का दो फीसदी हिस्सा पार्टी कोष में देना होता है। 2016 में जारी एक आधिकारिक प्रपत्र के अनुसार, पार्टी को कार्यकर्ताओं से सहयोग राशि के रूप में लगभग एक अरब रुपये (7.08 बिलियन युआन) प्राप्त हुए थे।
वैसे आपको बताते चलें कि इस कम्युनिस्ट पार्टी के पास ही देश की अर्थव्यवस्था का नियंत्रण है। पूरे देश और दुनिया में उसकी कई कंपनियां, होटल और फैक्ट्रियां भी हैं। इनसे भी उसे आमदनी होती है।
पार्टी पदाधिकारियों की तनख्वाहें, भत्ते और उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं पर खर्च होने वाली रकम हमेशा से गोपनीय रही है। चीन में कार्यरत कई विदेशी मीडिया संस्थानों ने चीनी नेताओं की आय से अधिक संपत्ति, विदेशों में उनके निवेश और परिजनों के नाम पर अर्जित की गई संपदा पर खबरें प्रकाशित की हैं। इसके बदले में उन्हें कार्रवाईयां भी झेलनी पड़ी हैं। 2012 में ब्लूमबर्ग की एक खोजी खबर में यह दावा किया गया था कि राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के नजदीकी संबंधियों ने अरबों युआन की संपत्ति अर्जित की है।
कौन है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन से परेशान
वैसे तो कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया ही चीन और चीन के सत्ताधारी दल से परेशान है फिर भी चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि 1949 में सत्ता में आने के बाद से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की नीतियों के चलते लगभग अब तक लगभग चार से सात करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। इसमें माउत्सेतुंग की विनाशकारी आर्थिक नीतियों की वजह से मारे गए लोग भी शामिल हैं, जिन्हें भुखमरी का शिकार बना दिया गया था। तिब्बत में मारे गए और 1989 में तियानमेन चौराहे पर हुआ नरसंहार भी शामिल है।
चीन पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वहां की जेलों में कैद चुनिंदा बंदियों के अंग निकाल लिए जाते हैं। ऑर्गन हार्वेस्टिंग के जरिये इन्हें बेचा जाता है। इसमें फलुन गोंग धार्मिक आंदोलन से जुड़े लोग प्रमुख रूप से शिकार बनाए गए थे।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि शिनजियांग प्रांत में लगभग 10 लाख उइगर और अल्पसंख्यकों को अलग अलग कैंपों में कैद करके रखा गया है। इन लोगों से मजदूरी कराई जाती है और इनकी नसबंदी भी की जाती है। जबकि चीन का कहना है कि उसने केवल आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को कैद किया है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के विपक्ष में कौन है
चीन में हजारों की तादाद में ऐसे लोग जेल में बंद हैं जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के पैरोकार थे। ये सब वर्षों से कैद हैं। शी जिनपिंग के कार्यकाल में यह सख्ती और अधिक बढ़ी है। सिविल सोसायटी के पक्षकारों के खिलाफ कार्रवाई बढ़ाई गई है। जिनपिंग के सत्ता संभालने के बाद पूरे चीन में लगभग 10 लाख सरकारी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के नाम पर कार्रवाई की गई। हालांकि जानकारों का मानना है कि यह कार्रवाई एक दिखावा थी और इसका असल मकसद राजनीतिक प्रतिरोध को समाप्त करना था।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की गोपनीय बैठकें
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन हर पांच साल में एक महाबैठक का आयोजन करती है। इस बैठक में कुछ एकतरफा फैसले लिए जाते हैं। पार्टी के सबसे ताकतवर 200 नेताओं की एक विशेष बैठक जिसे केंद्रीय समिति भी कहते हैं, वो हमेशा बंद दरवाजों के पीछे होती है। इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया जाता है। इसकी जानकारी केवल पोलित ब्यूरो और आंतरिक कैबिनेट को होती है।
देश का सरकारी टेलीविजन नेटवर्क इस बारे में समाचार जारी करने के लिए अधिकृत है। हालांकि जानकारियां बेहद सीमित ही होती हैं। यदि पार्टी की बैठकों में कभी विवाद या गतिरोध की स्थिति बनती है तो उसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन का मानना है कि आंतरिक गतिरोधों की जानकारी सार्वजनिक होने से देश की छवि कमजोर होगी, इसलिए ऐसा नहीं किया जाता है। लेकिन असल बात तो यह है कि यही बंद दरवाजे और गोपनीयता, चीन को दुनिया का सबसे बड़ा 'बंद' समाज भी बनाते हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन ने क्या दिया संदेश दुनिया को
कम्युनिस्ट पार्टी की दृढ़ता के साथ चीन में इन दिनों इन्हीं मुद्दों पर चर्चा है- इतने लंबे सफ़र में कैसे पार्टी ने अपनी मज़बूती को बनाए रखा और इस सफ़र के दौरान लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने की संभावना और साम्यवाद के पूरी तरह से पतन की आशंकाओं को पीछे छोड़ दिया है।
हाल ही में चीन का अंतरिक्ष यात्री वाला स्पेस मिशन पूरा हुआ, इसे भी देशभक्ति से जोड़कर देखा गया है, एक अंतरिक्ष यात्री ने तो यहाँ तक कहा कि इसने 100 सालों के पार्टी के संघर्ष में एक सुनहरा अध्याय जोड़ दिया है।
चीन की सत्ता पर कम्युनिस्ट पार्टी के निरंतर एकाधिकार के लिए प्रचार तंत्र, शिक्षाविदों, पार्टी के सदस्यों और यहाँ तक कि विदेशियों को भी लामबंद किया गया है।
इस संदेश के ज़रिए यह बताने की कोशिश है कि सीसीपी लोगों पर शासन करने का जनादेश लोगों की सेवा से हासिल करती है और लोगों का अटूट समर्थन पार्टी को हासिल है।
लोगों की सेवा का पहली बार इस्तेमाल माओत्से तुंग ने 1944 में किया। इसके बाद से ही इसे सीसीपी का अनाधिकारिक सिद्धांत वाक्य कहा जाता है। वैसे इस सिद्धांत वाक्य का ज़ोर शी जिनपिंग के शासनकाल में बढ़ा है।
हाल ही में जिनपिंग ने कहा है कि सीसीपी चीन के लोगों की ख़ुशी के लिए प्रयास करती है और इसे दिखाने के लिए प्रचार तंत्र मज़बूती से काम भी कर रहा है।
चीन कैसे अलग है सोवियत संघ के वामपंथी सरकार से
चीन के उप विदेश मंत्री शी फेंग के मुताबिक ये पार्टी अपनी ग़लतियों को सही करती है, आत्म सुधार करती है, चाहे वह कितना ही दुख देने वाला क्यों नहीं हो। सीसीपी सोवियत संघ वाली कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है।
सोवियत संघ का पतन सीसीपी के लिए सबक साबित हुआ और शी जिनपिंग ने हमेशा उस स्थिति के दोहराव से बचने की बात कही है। जब शी जिनपिंग ने 2012 में कमान संभाली तब पार्टी एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रही थी।
पार्टी गुटबाज़ी, अक्षमता और भ्रष्टाचार से त्रस्त थी। शी जिनपिंग ने पार्टी में व्यापक सुधार के लिए कड़े क़दम उठाए, उन्होंने अनुशासनात्मक अभियान चलाए, बैठकों में सामूहिक अध्ययन पर ज़ोर दिया और आत्म आलोचना की शुरुआत की।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय गौरव को अपने पक्ष में ढालने की कोशिश करती रही है। पार्टी को लगता है कि राष्ट्रप्रेम बढ़ने से लोगों में सीसीपी के प्रति निष्ठा बढ़ेगी।
इसी सोच के तहत पार्टी चीन के महान राष्ट्र के तौर पर कायाकल्प को लक्ष्य बना चुकी है, शी जिनपिंग ने इसे 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य बनाया है, इस बहाने नागरिकों को सामूहिक उद्देश्य भी मिल गया है।
20वीं सदी की शुरुआत में, सीसीपी ने चीन में एक अस्पष्ट, तितर-बितर और समन्वय के अभाव में कम्युनिस्ट आंदोलन के रूप में अपनी शुरुआत की थी, एक शताब्दी बाद पार्टी एक संभावित महाशक्ति पर शासन करने वाली वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी अगली शुरुआत कर रही है।
चीन समेत दुनिया के लिए समस्या हैं शी जिनपिंग
सीपीसी अपने 100वें साल में राष्ट्रपति शी पर उतनी ही निर्भर है जितना वह अपने संस्थापक नेता और मुख्य विचारक 'चेयरमैन' माओत्से तुंग पर थी। माओत्से तुंग ने 1921 में पार्टी के गठन के बाद से 1976 में निधन तक पार्टी पर पकड़ बनाए रखी थी। शी समर्थक मानते हैं कि उनका नेतृत्व समय की जरूरत है क्योंकि देश विश्व स्तर पर प्रतिकूल हालात का सामना कर रहा है। विश्लेषकों ने आगाह किया है कि दो कार्यकाल के बाद उनके पद पर बने रहने से आगे स्थिति अस्थिर हो सकती है।
पार्टी नेतृत्व के दूसरे कार्यकाल के दौरान सीपीसी के महासचिव के उत्तराधिकारी की घोषणा कर देने की परंपरा रही है। संभावना है कि शी पार्टी के शासी निकाय में फेरबदल के दौरान शीर्ष नेता बने रहेंगे। एक दशक में पार्टी की दो बार होने वाली कांग्रेस में अगले साल उत्तराधिकारी पर कुछ तस्वीर स्पष्ट हो सकती है।
अपने पूर्ववर्ती अध्यक्षों के विपरीत शी जिनपिंग ने 2017 में अपने पहले कार्यकाल के अंत में उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की और प्रेक्षकों का मानना है कि अगले साल भी नए नेतृत्व के उभार की कम ही संभावना है।
टीम स्टेट टुडे
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