वाराणसी, 15 जुलाई 2022 : ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी प्रकरण में शुक्रवार को मंदिर पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड पर गंभीर आरोप लगाए। इस बाबत ज्ञानवापी मामले में वकीलों ने अदालत के सामने चौंकाने वाले सुबूतों को सामने रखा है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अदालत में हिंदू पक्ष अपने वाले परिणाम को लेकर आश्वस्त नजर आया।
अदालत में हिंदू पक्ष ने कहा है कि जिस भूखंड आराजी संख्या 9130 (विवादित परिसर) को वक्फ की संपत्ति बताई जा रही रहा उसका कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है। इस संपत्ति के नाम पर फर्जीवाड़ा किया गया है। उन्होंने वक्फ बोर्ड की अधिकारिक बेबसाइट से प्राप्त दस्तावेज भी अदालत के सामने रखे। इसके साथ ही मंदिर पक्ष के वादी संख्या दो से पांच तक की दलीलें पूरी हुईं। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 18 जुलाई की तिथि तय की है।
जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में पांच महिलाओं की ओर से दाखिल प्रार्थना पर ( प्रार्थना पत्र सुनने योग्य है नहीं) पर हो रही सुनवाई में मंदिर पक्ष ने शुक्रवार को अपनी दलीलें जारी रखीं। उन्होंने कहा कि जिस संपत्ति को वक्फ संख्या 100 में दर्ज बताया जा रहा है उसका कोई दस्तावेज नहीं किया। इस बारे में वक्फ की अधिकारिक वेबसाइट को देखने पर पता चलता है कि इसमें संपत्ति को वक्फ करने वाले का नाम नहीं है। वक्फ रजिस्ट्रेशन नंबर भी कहीं नहीं दिखता हैं। यह संपत्ति वक्फ कब की गई इसकी कोई तिथि दर्ज नहीं है। यहां तक कि गजट नोटिफिकेशन नंबर भी नहीं है।
वक्फ पंजीकरण के लिए क्या दस्तावेज दिया गया इसका कहीं जिक्र नहीं है। जिस संपत्ति के वक्फ करने की बात कही जा रही है उसकी मौजूदगी मंडुवाडीह बताई जा रही है। खाता नंबर नहीं है, पट्टा नंबर नहीं है। इसे शहरी नहीं ग्रामीण क्षेत्र में दिखाया गया है। वेबसाइट में दर्ज है कि इस संपत्ति का विवाद भगवान आदि विश्वेश्वर से है। हाईकोर्ट में इसके खिलाफ कई मुकदमे हैं। यानि वक्फ भी मान रही है कि यह संपत्ति भगवान की है।
काशी विश्वनाथ एक्ट वर्ष 1983 के सेक्शन पांच में इस संपत्ति को भगवान काशी विश्वनाथ में निहित बताया गया है इसलिए वक्फ पंजिकरण हो ही नहीं सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1995 के एक फैसले में बताया है कि उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 उन संपत्ति पर लागू नहीं होता है जो एक्ट आने से पहले निहित (संपत्ति का अधिकार) की गई या उसका निबटारा हो गया है। इस तरह आराजी संख्या 9130 का स्वामित्व काशी विश्वनाथ का है ऐसे में इससे यह एक्ट लागू नहीं होता है।
धर्म ग्रंथों से तय होगा संपत्ति का धार्मिक स्वरूप : उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 में अदालत को तय करना है कि संपत्ति का धार्मिक स्वरूप क्या है। मंदिर पक्ष इसके लिए वेद, पुराण, उपनिषद में काशी विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख है उनके माध्यम से यह साबित करेंगा कि पूरा ज्ञानवापी समेत पूरा परिसर मंदिर का है। वकील हरिशंकर जैन का कहना है कि किसी के नमाज पढ़ लेने से कोई जगह मस्जिद नहीं हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी केस में अपने फैसले में यह बताया है।
हमारे अधिकारों को हुआ हनन : हरिशंर जैन का कहना है कि उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 में हमारे अधिकारों का हनन हुआ है। सेक्शन 3 और सेक्शन 4(1) हम पर लागू होता है। इसका सुबूत है कि तहखाने में व्यासजी पूजा करते थे। उनकों वर्ष 1993 में बाहर किया गया। बैरिकेडिंग के बाद जो पूजा देवताओं की होती थी उसे रोक दिया गया था। जो जगह-जगह होती थी। वहां हिंदू पूजा करते थे दस जगह पर जो पूजा हो रही थी उसे रोका गया।
कोर्ट के सामने रखी सात रूलिंग : मंदिर पक्ष की ओर से कोर्ट के सामने सात रूलिंग रखी गई हैं जिनमें कहा गया है कि आर्डर 7 रूल 11 (याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं) में वादी की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र में क्या लिखा गया है वह देखा जाएगा। अदालत यह देखेगी कि याचिक दाखिल करने का कारण स्पष्ट हो रहा है या नहीं। यह किसी कानून के दायरे में आता है या नहीं। अगर याचिका दाखिल करने का कारण स्पष्ट हो रहा और वह किसी कानून के दायरे में नहीं आता है तो अदालत याचिका को खारिज नहीं कर सकती है।
वादी संख्या एक के वकील रखेंगे पक्ष : अगली सुनवाई पर मंदिर पक्ष की वादी संख्या एक राखी सिंह की ओर से उनके वकील शिवम गौड़, मान बहादुर व अनुपम अपनी दलील देंगे। इसके पहले वादी संख्या दो से पांच मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी, सीता साहू व रेखा पाठक की ओर से वकील हरिशंकर जैन, विष्णु जैन, सुधीर त्रिपाठी आदि ने अपना पक्ष रखा।
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