जम्मू कश्मीर की सियासत में पंचायत चुनाव के नतीजों ने बड़ा उलटफेर किया है। कभी गुपकार तो कभी पाकिस्तान के सुर में गाने वाले राजनीतिक दल अब नए सिरे से अपनी योजना तैयार कर रहे हैं।
अनुच्छेद 370 के साथ जम्मू कश्मीर तेजी से बदला और इसका असर सियासत पर साफ दिख रहा है।
अलगाववादी एजेंडे के सहारे सियासत को आगे बढ़ाने वाले नेताओं की चुनौती बढ़ रही है। अब नेशनल कांफ्रेंस में भी बदलाव के साथ तेजी से आगे बढ़ने की कशमकश साफ दिख रही है। एक गुट पूरी लड़ाई राज्य के दर्जे पर केंद्रित करने के पक्ष में है। वहीं एक धड़ा अभी भी आटोनामी और अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर अटका है।
यही मतभेद नेकां में मनभेद का कारण बनते दिख रहे हैं। शीर्ष पार्टी नेताओं की खींचतान को देखते हुए पार्टी नेतृत्व इन मुद्दों से आंख चुराता दिख रहा है।
दशकों तक जम्मू कश्मीर की सियासत पर एकतरफा राज करने वाली नेशनल कांफ्रेंस जम्मू कश्मीर में आटोनामी व 1953 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली के मुद्दों पर कश्मीर में वोट मांगती रही है। पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद उसका यह एजेंडा पूरी तरह आप्रसंगिक हो चुका है।
ऐसे में बदले हालात में पार्टी को अपनी सियासत की नई राह तलाशनी पड़ रही है। नेशनल कांफ्रेंस का वरिष्ठ नेतृत्व अब हालात को स्वीकार आगे बढऩे को तैयार दिखता है लेकिन कुछ कट्टरपंथी चेहरे को अपनी सियासत डूबती दिख रही है।
नेशनल कांफ्रेंस से जुड़े सूत्रों बता रहे हैं कि उमर अब्दुल्ला अब पीपुल्स एलायंस (पीएजीडी) की सियासत को किनारे कर अब भविष्य की तरफ देखना चाहते हैं। उनके करीबियों में शामिल नासिर असलम वानी और तनवीर सादिक भी इस संदर्भ में विभिन्न मंचों पर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि उमर अब्दुल्ला कथित तौर पर दिल्ली में भाजपा के कुछ नेताओं के साथ नजदीकियां भी बढ़ाने के प्रयास में हैं। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को पीएजीडी की सियासत के बजाय नेकां की सियासत पर ध्यान देने और खोए जनाधार को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित रखने को कहा है। इसलिए नेकां के कई नेता अब अपनी सभाओं में आटोनामी और अनुच्छेद 370 की बहाली के जिक्र से बचते हुए जम्मू-कश्मीर को राज्य के दर्जे की मांग उठाते हैं।
हांलाकि पार्टी में सभी नेता इस विषय पर एकमत नहीं है। एक गुट अभी भी आटोनामी और 1953 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली के एजेंडे के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। इनमें पूर्व मंत्री और वरिष्ठ शिया नेता आगा सैय्यद रुहुल्ला के अलावा पूर्व राजस्व मंत्री बशारत बुखारी अभी भी अलगाववादी एजेंडे से किनारा करने का तैयार नहीं हैं। बशारत पीएजीडी के एजेंडे पर भी सवाल उठा चुके हैं कि यह सिर्फ लोगों को भरमाने के लिए पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति की बहाली की मांग कर रहे हैं। जाहिर है उनके एजेंडे को कट्टरपंथियों का समर्थन है। इसके अलावा आगा सैय्यद रुहुल्ला की पार्टी नेतृत्व ने नाराजगी इतनी बढ़ चुकी है कि वह पार्टी की बैठकों से भी दूरी बनाए हुए हैं।
पार्टी नेताओं को नीतिगत मसलों पर बोलने से रोका
पार्टी सूत्रों के मुताबिक संगठन में बढ़ रहे अंतर्कलह से निपटने के लिए शीर्ष नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ रही हैं और वह विवादास्पद मुद्दों पर बयानबाजी से बच रहा है। वहीं अन्य नेताओं को निर्देश दिया गया है कि वह नीतिगत मामलों पर कोई भी बयान जारी न करें। इसके साथ ही नाराज नेताओं को मनाने के लिए उनके साथ अलग-अलग बैठकें आयोजित कर उन्हें समझाया जा रहा है कि आटोनामी को लेकर अब आगे बढऩा मुश्किल है। जम्मू कश्मीर का भविष्य भारत में है और मुख्यधारा से अलग होकर नहीं रहा जा सकता।
इसमें दोराय नहीं कि 1947 से लेकर 2019 तक जम्मू-कश्मीर सिर्फ एक राज्य नहीं बल्कि एक ऐसी इंडस्ट्री रहा जिसमें आतंक, भय, कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार, पाकिस्तान से यारी, हिंदुस्तान से गद्दारी के बीच अब्दुल्ला परिवार, मुफ्ती परिवार के साथ साथ हुर्रियत और अलगाववादियों के रुप में आतंकवादियों वास्तव में जन्नत का ही मजा लेते रहे। पांच अगस्त 2019 को भारतीय संसद ने जैसे ही जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A को हटाकर पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में बदला वैसे ही कई सियासी-आतंकियों की जिंदगी जहन्नुम हो गई।
केंद्र सरकार और जम्मू,कश्मीर,लद्दाख के आम लोगों के तेवर देखने के बाद अब कई नेताओं और राजनीतिक दलों के ताजिए ठंडे पड़े हैं। हांलाकि इसमें संदेह नहीं है कि अब्दुल्ला परिवार सिर्फ मौके का फायदा उठाकर अपनी सल्तनत और सियासत को जिंदा रखने की कवायद कर रहा है वर्ना दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो कभी सीधा नहीं होता।
टीम स्टेट टुडे
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