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महाशिवरात्रि का शुभ मुहुर्त, पूजन विधि, व्रत कथा, शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं क्या नहीं- जानिए



स्टेट टुडे परिवार की ओर से सभी सुधी पाठकों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं..हर हर महादेव।


रास्ते बम-बम भोले के जयकारों से गुंजायमान हैं। कांवड़ियों की यात्रा निरंतर है। महाशिवरात्रि पर अपने आराध्य शिव की सेवा का ये मौका कोई छोड़ना नहीं चाहता।


कब होती है शिवरात्रि


हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व गुरुवार 11 मार्च है।


शिव पूजन सामाग्री


भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती की पूजा महाशिवरात्रि को की जाती है। शइवराष्रि के दिन रात में पूजा करने सबसे उत्तम माना जाता है। इस दिन भगवान भोले की पूजा विशेष सामाग्रियों के साथ की जाती है। पूजा जैसे पुष्प, भांग, धतूरा, बिल्वपत्र, जौ की बालें, आम की मंजरी, बेर, मदार का फूल, गन्ने का रस, गाय का कच्चा दूध, दही, शहद, देशी घी, गंगा जल, कपूर, धूप, स्वच्छ जल, दीपक, चंदन, रुई, पंच फल, पंच रस, पंच मेवा, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान,, शिव पार्वती की श्रंगार सामग्री, दक्षिणा, कुशासन, पूजा के बर्तन आदि हैं।


क्या नहीं चढ़ता शिवलिंग पर

तुलसी: वैसे तो हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महत्व है लेकिन इसे भगवान शिव पर चढ़ाना मना है।

तिल: शिवलिंग पर तिल भी नहीं चढ़ाया जाता है. मान्याता है कि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता।

टूटे हुए चावल: टूटे हुए चावल भी भगवान शिव को अर्पित नहीं किए जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है।

कुमकुम: भगवान शिव को कुमकुम और हल्दी चढ़ाना भी शुभ नहीं माना गया है।

नारियल: शिवलिंग पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाया जाता. नारियल को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. देवी लक्ष्मी का संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए नारियल शिव को नहीं चढ़ता।

शंख: भगवान शिव की पूजा में कभी शंख का प्रयोग नहीं किया जाता। शंखचूड़ नाम का एक असुर भगवान विष्णु का भक्त था जिसका वध भगवान शिव ने किया है। शंख को शंखचूड़ का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि शिव उपासना में शंख का इस्तेमाल नहीं होता।

केतकी का फूल: भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूल को अर्पित करना वर्जित माना जाता है।


महाशिवरात्रि पर दुर्लभ योग

11 मार्च सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक शिव योग रहेगा। उसके बाद सिद्ध योग लग जायेगा। जोकि 12 मार्च सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। शिव योग में किए गए सभी मंत्र शुभफलदायक होते हैं | इसके साथ ही रात 9 बजकर 45 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा। 

महानिशीथ काल - 11 मर्च रात 11 बजकर 44 मिनट से रात 12 बजकर 33 मिनट तक

निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 11 मार्च देर रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
अवधि-48 मिनट

महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त : 12 मार्च सुबह 6 बजकर 36 मिनट 6 सेकंड से दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 32 सेकंड तक।

चतुर्दशी तिथि शुरू: 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से

चतुर्दशी तिथि समाप्त: 12 मार्च दोपहर 3 बजकर 3 मिनट


महाशिवरात्रि की पूजा विधि


शिवरात्रि के दिन सबसे पहले शिवलिंग में चन्दन के लेप लगाकर पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति देनी चाहिए। इस तरह होम के बाद किसी भी एक साबुत फल की आहुति दें।


सामान्यतया लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं। व्यक्ति यह व्रत करके, ब्राह्मणों को खाना खिलाकर और दीपदान करके स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है।


सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान करना चाहिए। चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं-



प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’

दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’

तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’

चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।।

मंत्र का जाप करना चाहिए।


वर्ष क्रिया कौमुदी के पृष्ठ 513 में आया है कि दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए, स्तोत्र पाठ करना चाहिए। साथ ही प्रातःकाल अर्घ्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरा विश्वास क्षमा मांगने में नहीं है क्योंकि क्षमा तो दूसरों से मांगी जाती है। मैंने तो खुद को शिव जी को अर्पित कर दिया है-


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः

विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेनिद्रियाणाम्।

सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः

चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।


अर्थात् “मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूं, मैं सदैव समता में स्थित हूं, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूं, आनंद हूं, शिव हूं, शिव हूं”।।


महाशिवरात्रि व्रत के पारण


धर्मसिन्धु के पृष्ठ 126 के अनुसार- यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीनों प्रहरों के पूर्व ही समाप्त हो जाये तो पारण तिथि के अंत में करना चाहिए और यदि वह तीनों प्रहरों से आगे चली जाये तो उसके बीच में ही सूर्योदय के समय पारण करना चाहिए, जबकि निर्णयसिन्धु के अनुसार यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व समाप्त हो जाये तो पारण चतुर्दशी के बीच में ही होना चाहिए, न कि उसके अंत में।


महाशिवरात्रि को लेकर है ये मान्यताएं


माना जाता है कि आज के दिन से ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। वहीं ईशान संहिता में बताया गया है कि- फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि। शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे।


जबकि कई मान्यताओं में माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ है। गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण आदि में शिवरात्रि का वर्णन मिलता है। कहते हैं शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्व पत्तियों से शिव जी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, उसे भगवान शिव आनन्द और मोक्ष प्रदान करते हैं।


महाशिवरात्रि व्रत कथा