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जो देखा, सुना या सोचा उससे कहीं ज्यादा कहर टूटा है हिंदुओं पर बंगाल हिंसा में – ममता का भयावह सच



पश्चिम बंगाल के हालात शेष भारत जितना देख रहा है, जितना समझ रहा है उससे कहीं ज्यादा भयावह है। स्थिति गंभीर नहीं भयाक्रांत करने वाली है। लाखों हिंदू परिवारों का 2 मई के चुनावी नतीजे आने के बाद पलायन हो चुका है। महिलाओं और बच्चों के साथ जो कुछ हुआ उसे शब्दों में लिखना मुश्किल है। पुरुषों का कत्लेआम और जिंदा जलाने की घटनाएं आम हैं। मीडिया पर स्थानीय प्रशासन का इस कदर दबाव है कि सच लिखने वाले को जान के लाले पड़े हैं।


इतना सब कुछ होने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर अपनी रिपोर्ट तैयार की। आयोग ने रिपोर्ट कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ के सामने पेश कर दी है।

रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में हिंसक घटनाओं में पीड़ितों की दुर्दशा के लिए राज्य सरकार की हिला देने वाली भयावह उदासीनता जिम्मेदार है। राज्य में कानून का शासन नहीं है। बल्कि पश्चिम बंगाल में शासक का कानून चलता है। हिंसा के मामलों की जांच राज्य से बाहर या सीबीआई से कराई जाना चाहिए।


सबक सिखाने के मकसद से हिंसा को दिया गया अंजाम


एनएचआरसी की समिति ने अपनी बेहद तल्ख टिप्पणी में कहा, सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थकों द्वारा यह हिंसा मुख्य विपक्षी दल के समर्थकों को सबक सिखाने के लिए की गई। मुख्य विपक्षी दल के समर्थकों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों ने बदला लेने की नीयत से भयंकर हिंसा की है। जिसके चलते लाखों लोगों के जीवन और आजीविका में बाधा उत्पन्न की गई। उनका आर्थिक रूप से गला घोंट दिया गया।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में प्रमुख बातें


बंगाल चुनाव बाद हिंसा की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। हत्या व दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों की जांच होनी चाहिए।
बंगाल में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा ये दिखाती है कि पीड़ितों की दुर्दशा को लेकर राज्य की सरकार ने भयानक तरीके से उदासीनता दिखाई है।
हिंसा के मामलों से जाहिर होता है कि ये सत्ताधारी पार्टी के समर्थन से हुई है। ये उन लोगों से बदला लेने के लिए की गई, जिन्होंने चुनाव के दौरान दूसरी पार्टी को समर्थन दिया। 
राज्य सरकार के कुछ अंग और अधिकारी हिंसा की इन घटनाओं में मूक दर्शक बने रहे और कुछ इन हिंसक घटनाओं में खुद शामिल रहे हैं।

हत्या, रेप जैस जघन्य अपराधों के लिए CBI करे जांच


अदालत को 13 जून को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है, समिति ने सिफारिश की है कि हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए और इन मामलों में मुकदमा राज्य से बाहर चलना चाहिए।



हिंसा में लोगों पर हुए हमले, घर छोड़ने पर होना पड़ा मजबूर


हाईकोर्ट में दायर कई जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा में लोगों पर हमले किए गए जिसकी वजह से उन्हें अपने घर छोड़ने पड़े और उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया गया।


सभी मामलों के राज्य से बाहर चलें मुकदमें


हाई कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ के निर्देश पर एनएचआरसी अध्यक्ष द्वारा गठित समिति ने यह भी कहा कि इन मामलों में मुकदमे राज्य से बाहर चलने चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसक घटनाओं का विश्लेषण पीड़ितों की पीड़ा के प्रति राज्य सरकार की भयावह निष्ठुरता को दर्शाता है।


टीम स्टेट टुडे


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