प्रभु परशुराम जी के पावन चरणों में एक गीत

नारायण के अवतारी हे, परशुराम प्रभु अविनाशी. एक बार फिर आकर जग में, कर दो दूर उदासी. मानवता फिर संकट में है, साधु सभी हैँ रोये. असुर शक्तियां आकर के कुल, कंटक ही हैँ बोये. धर्म सनातन के झंडे को, दुनिया में फहराने. ऋषि मुनि वेद ऋचाओं के अब, गौरव गाथा गाने.

जड़ चेतन का शोक मिटाकर, सुख देने सुखरासी. एक बार फिर जग में आ कर, कर दो दूर उदासी.(1) इक्कीस बार इस धरती से, अरिदल का नाश किया. सहस्त्रार्जुन का वध करके, घट घट उल्लास किया. संतो के संग गो रक्षा में, दुष्टों को संहारे. निज संस्कृति के संवाहन में, कभी नहीं थे हारे. परशु लिए आ जाओ फिर से, हम सब हैं अभिलाषी. एक बार फिर जग में आ कर, कर दो दूर उदासी.(2) जमदग्नि रेणुका के सपूत, जन जन के हितकारी. हो जाये कम्पित भू मण्डल, हुंकार करो वो भारी. दुष्ट पातकी दानव के दल, कहीं नहीं अब डोलें. मन पवित्र हो जाये सबका, कण कण के हे वासी. एक बार फिर आ कर जग में, कर दो दूर उदासी.(3)
आशुतोष 'आशु'