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पराली की समस्या से छुटकारा देगा CM का यह प्लान, किसानों की बढ़ेगी आय, मिलेगा रोजगार

chandrapratapsingh

लखनऊ, 16 सितंबर 2022 : धान की कटाईअगले महीने सेहोने वाली है।कृषि यंत्रीकरण केइस दौर मेंअमूमन ये कटाईकंबाइन से होतीहै। कटाई केबाद खेतों मेंही फसल अवशेष (पराली) जलाने की प्रथारही है। हरसाल धान कीपराली जाने सेराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और इससे लगेपश्चिमी क्षेत्र के कईहिस्सों में कोहरामिश्रित धुंआ आकाशमें छाकर माहौलको दमघोंटू बनादेता है।

हालांकि पर्यावरण संबंधीसख्त नियमों औरइसके सख्त क्रियान्वयनसे मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ के कार्यकालमें पराली जलानेकी घटनाएं नके बराबर हुईंहैं। इसमें कानूनके अलावा सरकारद्वारा चलाई गईजागरूकता एवं परालीको सहेजने वालेकृषि यंत्रों परदिए जाने वालेअनुदान की महत्वपूर्णभूमिका रही है।

प्लांट लगाने वालेको मिलेंगी रियायतें

अब तोसरकार ने उत्तरप्रदेश राज्य जैव ऊर्जानीति 2022 का जोड्राफ्ट तैयार किया हैउसके अनुसार वहकृषि अपशिष्ट आधारितबायो सीएनजी, सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) इकाइयों को कईतरह के प्रोत्साहनदेगी। मुख्यमंत्री पहलेही घोषणा करचुके हैं किवह इस तरहकी इकाइयां हरजिले में लगाएगी।

मार्च 2023 तक चालूहो जाएगा गोरखपुरका प्लांट

इस तरहका एक प्लांटकरीब 160 करोड़ रुपयेकी लागत सेइंडियन ऑयल गोरखपुरके दक्षिणांचल स्थितधुरियापार में लगारहा है। उम्मीदहै कि यहप्लांट मार्च 2023 तक चालूहो जाएगा। इसमेंफसल गेहूं औरधान की परालीके साथ, धानकी भूसी, गन्नेकी पत्तियां औरगोबर का उपयोगहोगा। हर चीजका एक तयरेट होगा। इसतरह फसलों केठूठ के भीदाम मिलेंगे।

प्लांट के अलावाकच्चे माल पहुचानेमें मिलेंगे रोजगार

प्लांट में मिलेरोजगार के अलावाप्लांट की जरूरतके लिए कच्चेमाल के एकत्रीकरण, लोडिंग, अनलोडिंग एवं ट्रांसपोर्टेशनके क्षेत्र मेंस्थानीय स्तर परबड़े पैमाने पररोजगार मिलेगा। सीएनजी एवंसीबीजी के उत्पादनके बाद जोकंपोस्ट खाद उपलब्धहोगी वह किसानोंको सस्ते दामोंपर उपलब्ध कराईजाएगी।

जागरूकता के लिएजारी रहेगा अभियान

इस बीचपराली जलाने केदुष्प्रभावों के प्रतिकिसानों को जागरूककरने के कार्यक्रमभी कृषि विज्ञानकेंद्रों, किसान कल्याण केंद्रोंके जरिए चलतेरहेंगे।

पराली जलाने केक्या हैं दुष्प्रभाव

अगर आपकटाई के बादधान की परालीजलाने की सोचरहे हैं तोरुकिए और सोचिए।आप सिर्फ खेतनहीं उसके साथअपनी किस्मत खाककरने जा रहेहैं। क्योंकि परालीके साथ फसलके लिए सर्वाधिकजरूरी पोषक तत्वनाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथअरबों की संख्यामें भूमि केमित्र बैक्टीरिया औरफफूंद भी जलजाते हैं। भूसेके रूप मेंपशुओं का हकतो मारा हीजाता है।

पराली में हैपोषक तत्वों काखजाना

शोधों से साबितहुआ है किबचे डंठलों मेंएनपीके की मात्राक्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होतीहै। जलाने कीबजाए अगर खेतमें ही इनकीकंपोस्टिंग कर दीजाय तो मिट्टीको यह खादउपलब्ध हो जाएगी।इससे अगली फसलमें करीब 25 फीसदउर्वरकों की बचतसे खेती कीलागत में इतनीही कमी आएगीऔर लाभ इतनाही बढ़ जाएगा।भूमि के कार्बनिकतत्वों, बैक्टिरिया फफूंद काबचना, पर्यावरण संरक्षणऔर ग्लोबल वार्मिगमें कमी बोनसहोगा।

सीजन मेंभूसे से भीकर सकते हैंकमाई

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शनग्रुप के एकअध्ययन के अनुसारप्रति एकड़ डंठलजलाने पर पोषकतत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राममिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाखफफूंद जल जातेहैं। उत्तर प्रदेशपशुधन विकास परिषदके पूर्व जोनलप्रबंधक डा. बीकेसिंह के मुताबिकप्रति एकड़ डंठलसे करीब 18 क्विंटलभूसा बनता है।सीजन में भूसेका प्रति क्विंटलदाम करीब 400 रुपएमाना जाए तोडंठल के रूपमें 7200 रुपये का भूसानष्ट हो जाताहै। बाद मेंयही चारा संकटका कारण बनताहै।

यह भीमिलेगा लाभ

फसल अवशेषसे ढकी मिट्टीका तापमान नमहोने से इसमेंसूक्ष्मजीवों की सक्रियताबढ़ जाती है,जो अगलीफसल के लिएसूक्ष्म पोषक तत्वमुहैया कराते हैं। अवशेषसे ढकी मिट्टीकी नमी संरक्षितरहने से भूमिके जल धारणकी क्षमता भीबढ़ती है। इससेसिंचाई में कमपानी लगने सेइसकी लागत घटतीहै। साथ हीदुर्लभ जल भीबचता है।

जलाने के बजाएयह भी विकल्प

डंठल जलानेके बजाय उसेगहरी जोताई करखेत में पलटकर सिंचाई करदें। शीघ्र सड़नके लिए सिंचाईके पहले प्रतिएकड़ 5 किग्रा यूरियाका छिड़काव करसकते हैं। इसकेलिए कल्चर भीउपलब्ध हैं।


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