राममंदिर में ‘टाइम कैप्सूल’ की अफवाह - अयोध्या से पहले इंदिरा, मोदी और मायावती ने कहां गड़वाया !

5 अगस्त को अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस ऐतिहासिक क्षण पर मौजूद रहेगें। एक तरफ पूजन की तैयारियां चल रही हैं तो दूसरी तरफ टाइम कैप्सूल भी तैयार हो रही है। राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य रामेश्वर चौपाल के अनुसार मंदिर निर्माण के दौरान 200 फीट नीचे टाइम कैप्सूल डाला जाएगा। हांलाकि श्री रामतीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सेक्रेटरी चंपत राय का कहना है कि नींव में टाइम कैप्सुल नहीं रखी जाएगी। जो भी खबरें चल रही है वो भ्रामक हैं।
चंपत राय के ताजा बयान से पहले श्री रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल का कहना था कि भविष्य में जब कोई भी इतिहास देखना चाहेगा तो रामजन्मभूमि के संघर्ष के इतिहास के साथ तथ्य भी निकल कर आएगा ताकि कोई भी विवाद यहां उत्पन्न न हो सके। अयोध्या में राममंदिर निर्माण से पहले टाइम कैप्सूल को एक ताम्र पत्र के अंदर रख कर धरती में 200 फीट की गहराई पर गाड़ा जाएगा।
क्या होता है टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है। जिसे विशेष सामाग्री से बनाया जाता है।
टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है।
टाइस कैप्सूल को जमीन के अंदर काफी गहराई में गाड़ा जाता है।
गहराई की वजह से हजारों सालों तक ना नुकसान पहुंचता है और ना ही सड़ता है।
टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है।
यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है।
ये कैप्सूल भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद करता है।
30 नवंबर 2017 को स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला।
स्पेन में मिले टाइम कैप्सूल ईसा मसीह के मूर्ति के रुप में था।
मूर्ति के अंदर 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक, सांसकृतिक सूचना थी।
जब इंदिरा गांधी ने रखवाया टाइम कैप्सूल

साल 1970 के शुरुआती दिनों में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने चरम पर थीं उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था। सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए। इंदिरा गांधी की सरकार ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था। इस टाइम कैप्सूल को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त, 1973 को लाल किले के परिसर में दफन किया था। 1977 में जब कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तब इंदिरा द्वारा दफन कराए गए टाइम कैप्सूल को निकाला गया। लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था। उस समय टाइम कैप्सूल को जमीन में डालने में कुल आठ हजार रुपये का खर्च आया था। जबकि मोरारजी देसाई सरकार द्वारा इसे निकाले जाने में 58 हजार रुपये खर्च हुए थे।
गुजरात में मोदी का टाइम कैप्सूल

नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो साल 2011 में उन पर भी टाइम कैप्सूल दफनाने का विपक्ष ने आरोप लगाया था। विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का उल्लेख किया गया।
बताते हैं कि तीन फुट लंबे और ढाई फुट चौड़े इस स्टील सिलेंडर में कुछ लिखित सामग्री और डिजिटल कंटेट रखा गया था। सरकार के मुताबिक कैप्सूल में गुजरात के पचास साल का इतिहास संजोया गया था।
मायावती का यूपी में टाइम कैप्सूल

कहा जाता है कि 2009 में जब यूपी में मायावती की सरकार थी तो उन्होने भी अपनी पार्टी और खुद की उपलब्धियों से जुड़ी हुई जानकारी के दस्तावेज एक टाइम कैप्सूल में रखवाकर कहीं दफन करवाए हैं।
यूनिवर्सिटी में टाइम कैप्सूल
बीते वर्ष जनवरी में जालंधर की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 10 फुट की गहराई में एक टाइम कैप्सूल को गाड़ा गया था। इसे 100 साल बाद निकाला जाएगा और 22वीं सदी के लोग देख सकेंगे कि आज के जमाने में किस तरह के सामान, गैजेट और उपकरण इस्तेमाल किए जाते थे। इस कैप्सूल में 100 सामान रखे गए। जिसमें लैपटॉप, स्मार्टफोन, ड्रोन, वर्चुअल रियलिटी वाले चश्मे, अमेजन एलेक्सा, एयर फिल्टर, इंडक्शन कुक टॉप, एयर फ्रायर, सीएफएल, टेप रिकॉर्डर, ट्रांजिस्टर, सोलर पैनल, हार्ड डिस्क आदि हैं।
अंतरिक्ष में टाइम कैप्सूल

अमेरिका टाइम कैप्सूल के मामले में सबसे आगे है। अमेरिका में अब तब 50 से अधिक टाइम कैप्सूल संरक्षित किए जा चुके हैं। अमेरिका ने अंतरिक्ष में भी टाइम कैप्सूल भेजे हैं। अपोलो-11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर टाइम कैप्सूल भेजा था जिसमें पृथ्वी से जुड़ी विभिन्न जानकारी भेजी गई थीं।
मंदिर का नया डिजाइन