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May 28, 20212 min
Updated: May 30, 2021
आपदा में अवसर तलाशने और पैसा बनाने वाले तथाकथित बड़े लोगों को भारत के सच्चे सपूत का एक संस्मरण बताना चाहूँगा, शायद उन्हें शर्म आ जाए , लेकिन उनमें शर्मोहया होती तो आपदा को आपदा के रूप में लेते न कि उसमें अवसर तलाशते । चाहे वो ग्लोबल टेंडर के बहाने परिचित कंपनी को ठेका दिलाने में जुटे सरकार प्रिय साहेब हों, मौका पाकर ऑक्सीजन का कालाबाजारी करने वाले विधायक जी हों, दोनों मुझे बहुत छोटे लगने लगे जब मंगरु भाई से मुलाकात हुई । कहने में जरा भी हिचक नहीं कि इंसानियत और इंसानी तकाजों को जीने की एक सीख मिली । मेरे जीवन का फलसफा है कि समंदर से लेकर मरुधर को देकर आगे बढ़ जाता हूँ । खाना वितरित करने निकला था, गोमती पुल पर एक व्यक्ति जर्द चेहरा लिए भूख की जिंदा तस्वीर बने बैठा मिला । उसे भोजन का पैकेट दिया । वह खाने पर ऐसे टूटा जैसे सदियों से अन्न देखा न हो । भोजन के बाद पॉकेट से 100 रुपये निकाल कर उसे दिया तो उसने बड़ी विनम्रता से पैसे लेने से मना कर दिया । मैंने देखा कि एक साथी वीडियो बना रहे थे, मुझे लगा कि वीडियो के उसने इंकार किया हो । मोबाइल बंद करवा कर हमने उन्हें दोबारा रुपया देने का प्रयास किया , फिर भी उन्होंने पैसे नहीं लिये , मैंने कारण पूछा तो बोले," बाबू जी आज आपके कारण मेरा पेट भर गया, इन पैसों से मुझसे भी ज्यादे गरीब का पेट भर दीजिएगा, ये पैसे उसकी अमानत है, मैं नहीं ले सकता । मैंने पूछा कि आपकी ये वीडियो बना सकता हूँ ताकि जब इसे लोग देखें तो प्रेरणा लें । मंगरु महोदय मान गए ।
अंततः,
ये क्या कि बस सत्ता, सुविधा दौलत की बातें करें
आदमी हैं हम दोनों आओ आदमीयत की बातें करें
इस प्रसंग को स्वयं अनुभव करने वाले दीपक मिश्रा है। दीपक मिश्रा यूं तो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता हैं लेकिन उनका परिचय सिर्फ इतना भर नहीं है। खांटी समाजवादी दीपक मिश्रा नित्य रात के अंधेरे में जनसेवा के लिए सड़कों पर विचरण करते मिल जाएंगे। किसी को भोजन, किसी को कपड़ा, किसी को दवा और भी बहुत सारे जरुरतमंदों को बहुत कुछ। इसी क्रम में मंगरु से उनकी मुलाकात हुई जिसकी बातें ना सिर्फ दिल छूने वाली बल्कि ऐसे बहुतेरों के लिए प्रेरणादायी हो सकती है जो उंगली कटा कर शहीदों में अपना नाम लिखवाने के शौकीन हैं। कोरोनाकाल है। बहुत सारे लोगों को बहुत सारी मदद चाहिए।
मदद कीजिए और आगे बढ़कर फिर किसी की मदद कीजिए।
प्रसंग का संदेश सिर्फ इतना है।
(यह लेख दीपक मिश्रा जी द्वारा स्वयं के अनुभव के आधार पर स्टेट टुडे को उपलब्ध कराया गया है।)