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तिब्बत की आज़ादी के लिए भारत में हुई महत्वपूर्ण बैठक में रणनीति तैयार



अखिल भारत एवं विदेशों के राष्ट्रवादियों द्वारा भारत की सुरक्षा, तिब्बत की आजादी व कैलाश मानसरोवर की मुक्ति के लिये गठित विशुद्ध बौद्धिक संगठन "भारत तिब्बत संवाद मंच" के कोर ग्रुप की दो दिवसीय बैठक हुई।


छ और सात मार्च 2021 को हुई बैठक में चिंतन किया गया ताकि तिब्बत की आजादी का मुद्दा, चीन की बर्बादी का मुद्दा, हिंदुत्व का मुद्दा, राष्ट्रवाद का मुद्दा ललक्ष्योन्मुख दिशा पाता रहे एवं भारत तिब्बत संवाद मंच अपने विजन और मिशन के अनुरूप वैश्विक पटल पर अवश्य ही महति भूमिका अदा करे ।



भारत तिब्बत संवाद मंच पदाधिकारियों ने अपने उद्बोधन में धूर्त व कपटी चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर चलाये जा रहे भारत विरोधी अभियान, पाक समर्थित आतंकवादियों को समर्थन और देश की संप्रभुता पर हमले पर चिन्ता व्यक्त करते हुये केन्द्र सरकार द्वारा तिब्बत नीति घोषित करने व तिब्बत को पूर्ण गणराज्य की मान्यता देनें, कैलाश मानसरोवर, आक्साई चीन व पीओके को मुक्त कराने के संबंध संसद में लिये गये संकल्प को पुर्ण करने के लिए निर्णायक कदम उठाने, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों में दक्षिण एशिया व चीन गणराज्य के नक्शे में तिब्बत को स्वतंत्र देश दर्शाने के साथ ही उस पर चीन द्वारा कब्जे के वास्तविक इतिहास से छात्रों को अवगत कराने, तिब्बत की आजादी के आन्दोलन को पूर्ण समर्थन देने एवं चीनी उत्पादों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाने की मांग उठायी।



इस बैठक के मुख्य अतिथि हरियाणा लेबर वेलफ़ेयर बोर्ड के चेयरमेन अमरेंद्र सिंह थे। भारत तिब्बत संवाद मंच के अंतरराष्ट्रीय कन्वेनर तंज़ानिया से टी सत्यनारायण और अमेरिका से कर्मवीर सिंह विशेष रूप से उपस्थित हुए।


इस कार्यक्रम में तिब्बती यूथ कांग्रेस के वाईस प्रेसिडेंट लोमसंग तेरिंग व महामंत्री सोनम सेरिंग धर्मशाला से विशेष रूप से पधारे थे । उन्होंने अपने संबोधन में तिब्बत की आजादी के सपोर्ट के लिए भारत तिब्बत संवाद मंच की भूमिका की सराहना की।


बैठक के आरम्भ में अखिल भारतीय समन्वयक डॉक्टर संजय शुक्ला ने भारत तिब्बत संवाद मंच के गठन की आवश्यकता पर उद्देश्यपूर्ण शब्दों में प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत तथा वैश्विक स्थायी शान्ति के लिए तिब्बत का आजाद होना बहुत जरूरी है।



इस बैठक को सम्बोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के अधिवक्ता जयेंद्र एस चंदेल ने कहा कि चीन का विरोध सम्पूर्ण भारत में जन आंदोलन बनना ही चाहिए तभी तिब्बत की आजादी का मार्ग प्रशस्त होगा।


भोपाल से पधारे सुनील केहरी ने चीन को वैश्विक अतिक्रमणकारी बताते हुए यू एन ओ तक तिब्बत का मुद्दा नित्य उठाने की बात करते हुए गर्मजोशी से मंच का संचालन कर जोर दिया कि तिब्बत की आजादी के लिए समय सीमा तय कर विचार विमर्श से प्रयास किया जाना चाहिए।


बैठक को वीणा गुप्ता, अरुणाचल प्रदेश की यामक ड्यूपीट दोयम, राजस्थान की भारती वैष्णव, चंडीगढ़ से किशन भारद्वाज ने भी सम्बोधित किया।


बैठक में कोर कमेटी द्वारा डॉक्टर संजय शुक्ला को सर्वानुमति से राष्ट्रीय अध्य्क्ष नामित किया गया। राष्ट्रीय अध्य्क्ष द्वारा अंतरराष्ट्रीय कार्यंकरिणी का गठन किया गया।



सदस्यों ने कहा कि भारत तिब्बत संवाद मंच के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

इससे पहले कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य मेहमान के रूप में शामिल हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के निर्देशक और हरियाणा उर्दू अकादमी में उप -चेयरमैन डा चंद्र त्रिखा ने कहा कि तिब्बत के मामले को समझने से पहले तिब्बत की संस्कृति को समझना जरूरी होगा। उन्होंने कहा कि तिब्बत की भूमि रहस्यमयी और अध्यात्म की भूमि है। उन्होंने कहा कि तिब्बत की संस्कृति की पुस्तकों की भारत में भी संभाल नहीं हो रही। भारत भी दशकों से तिब्बती लोगों को तो संभाल रहा है और समर्थन भी कर रहा है , परंतु तिब्बत को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि चीन के अत्याचार की दास्तान और धोखा देने की नीति कोई नई नहीं है और चीन की वस्तुओं का बहिष्कार व्यावहारिक जरूरत है जबकि चीनी सामान की खरीद का अर्थ चीन को मजबूत करके भारत को कमज़ोर करना है।



भारत -तिब्बत संवाद मंच के राष्ट्रीय संयोजक डा संजय शुकला ने कहा कि जब तक तिब्बत आज़ाद था तब भारत -तिब्बत सीमा पर महज़ एक दर्ज़न सैनिक ही तैनात थे और वो भी मानसरोवर का मार्ग बताने के लिए। परन्तु अब तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के बाद भारत को रक्षा का एक तिहाई बजट सिर्फ भारत -चीन सीमा पर ही खर्च करना पड़ रहा है। अगर तिब्बत आज़ाद हो तो यही बजट भारत के विकास में खर्च होगा और भारत को तिब्बत में अपने धार्मिक स्थलों पर जाने का खुला अवसर मिलेगा। जबकि अब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़े के बाद भारत तो तंग करना जारी रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि मंच विभिन्न राज्यपालों के मार्फ़त इस बात की मांग करेगा कि स्कूली शिक्षा में चीन की बजाय तिब्बत और लहासा की शिक्षा को शामिल किया जाए। उन्होंने ये भी कहा कि अगर भारत के लोगों ने ये तय कर लिया कि चीनी सामान का बहिष्कार करना है तो आर्थिक तंगी में जा रहे चीन के चार टुकड़े होने से कोई नहीं रोक सकेगा। शुकला ने कहा कि मंच मांग करेगा कि भरत सरकार तिब्बत को मान्यता दे और तिब्बत की नीति की भी घोषणा करें। अन्य राज्यों से आये मंच के पदाधिकारियों ने भी सम्बोधित किया।


टीम स्टेट टुडे


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