रिपोर्ट - आदेश शुक्ला
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में ना सिर्फ मामले बढ़े बल्कि लोगों की जान भी ज्यादा गईं। अस्पतालों और चिकित्सकीय व्यवस्थाएं चरमराईं तो लोगों की घबराहट भी बढ़ गई। दो चार छींक या खांसी आने पर लोग दहशत में आने लगे। इसके बाद तो अस्पताल, दवा, जांच और ना जाने क्या क्या। हल्के लक्षणों के दौरान लोग ना सिर्फ अस्पताल भागे बल्कि तरह तरह की जांच करवाने में भी पीछे नहीं रहे। जिसके चलते सरकारी और निजी लैब्स पर ना सिर्फ दबाव बढ़ा बल्कि कुछ मुनाफाखोरों ने इस मौके का बेजा फायदा भी उठाया।
ऐसे में हम आपका ध्यान दिल्ली के एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया की कुछ बातों की तरफ खींचना चाहते हैं। डॉक्टर गुलेरिया की बातों से ना सिर्फ आपका मनोबल बढ़ेगा बल्कि आप ये भी समझ पाएंगे कि वर्तमान समय में आपको कब और कैसे जांच करवानी है। करवानी है भी या नहीं।
सीटी स्कैन को लेकर चेतावनी
एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कोरोना के हल्के संक्रमण के मामलों में सीटी स्कैन कराए जाने को लेकर आगाह किया है। उन्होंने कहा कि एक सीटी स्कैन 300 से 400 एक्स-रे कराने जैसा है। ऐसे में अकारण सीटी स्कैन कराने से फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है।
प्रेस कांफ्रेंस में डाक्टर गुलेरिया ने कहा कि हल्के संक्रमण के मामलों में सीटी स्कैन नहीं कराना चाहिए। कई लोग कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद सीटी स्कैन करा रहे हैं। सीटी स्कैन और बायोमार्कर्स का दुरुपयोग हो रहा है। इससे नुकसान हो सकता है।
डाक्टर गुलेरिया का कहना है कि युवावस्था में बार-बार सीटी स्कैन कराने से आगे चलकर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। खुद को बार-बार रेडिएशन के संपर्क में लाने से नुकसान हो सकता है। इसलिए आक्सीजन का स्तर सामान्य होने और हल्के संक्रमण की स्थिति में सीटी स्कैन कराने का कोई औचित्य नहीं है।
उन्होंने कहा कि अध्ययनों के मुताबिक सामान्य बुखार में और बिना लक्षण वाले संक्रमितों में भी सीटी स्कैन पर कुछ धब्बे दिख सकते हैं, जो बिना इलाज के ठीक हो जाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि अस्पताल में भर्ती होने और सामान्य से गंभीर संक्रमण की स्थिति में ही सीटी स्कैन का विकल्प चुनना चाहिए। सामान्यत: कोई संदेह होने पर एक्स-रे का विकल्प अपनाना चाहिए।
जबरदस्ती जांच ना कराएं
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि हल्के बुखार में या होम आइसोलेशन की स्थिति में विभिन्न बायोमार्कर्स के लिए बहुत सारी खून की जांच कराना भी जरूरी नहीं है। अगर आक्सीजन का स्तर सामान्य है, बुखार तेज नहीं और कोई अन्य लक्षण नहीं है, तो इनसे बचना चाहिए। कुछ बायोमार्कर तो हल्की सी चोट और दांत में दर्द से भी बढ़ जाते हैं। इनका यह अर्थ नहीं है कि कोरोना का संक्रमण गंभीर हो गया है। ऐसी जांच से घबराहट बढ़ती है। इन पर निर्भर रहकर कई बार जरूरत से ज्यादा दवा का इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे नुकसान होता है।
दवाओं के इस्तेमाल में भी सावधानी बरतें
डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि क्लीनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइंस में स्पष्ट किया गया है कि हल्के बुखार वालों को किसी दवा की जरूरत नहीं होती। इवरमेक्टीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन ले सकते हैं, लेकिन बहुत ज्यादा दवा लेने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि आक्सीजन का स्तर 93 से नीचे जाने, बहुत थकान या सीने में दर्द जैसे लक्षण होने पर ही होम आइसोलेशन के मरीज को अस्पताल ले जाना पड़ सकता है। इसलिए मरीजों को लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए। पहले से किसी बीमारी के शिकार लोगों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है।
हाईलाइट्स
AIIMS के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने जो कहा -
सीटी स्कैन का रेडिएशन खतरनाक होता है। साथ ही कोरोना के माइल्ड केसेज में CRP और D-Dimer जैसे बायोमार्कर्स भी चेक करवाने की जरूरत नहीं है।
माइल्ड केसेज में सीटी स्कैन करवाने की जरूरत नहीं है। आपमें लक्षण ना हों फिर भी सीटी स्कैन में पैच दिख सकते हैं।
1 सीटी स्कैन से 300-400 एक्स-रेज के बराबर रेडिएशन निकलता है। यंग एज में बार-बार सीटी स्कैन करवाने से आगे चलकर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
सीटी स्कैन का ज्यादा इस्तेमाल आगे चलकर कैंसर का खतरा बढ़ा सकता है।
कई लोग सीटी स्कैन के लिए भाग रहे हैं। सीटी स्कैन में 30 से 40 फीसदी पैच दिख सकते हैं जो कि अपने आप ही ठीक हो जाते हैं।
सीटी स्कैन किसी भी चीज को छोटे-छोटे सेक्शन में काटकर उसका अध्ययन करना होता है। कोविड के मामले में डॉक्टर जो सीटी स्कैन कराते हैं, वो है एचआरसीटी चेस्ट यानी सीने का हाई रिजोल्यूशन कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन। सीटी स्कोर से जानकारी मिलती है इंफेक्शन ने फेफड़ों को कितना नुकसान पहुंचाया है।
टीम स्टेट टुडे
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