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दिल्ली का चुनावी गणित – कौन जीतेगा, कैसे जीतेगा और क्यों जीतेगा !



दिल्ली विधान सभा चुनाव अगर आम आदमी पार्टी के लिए साख का सवाल है तो भारतीय जनता पार्टी के लिए भी बड़ी चुनौती हैं। कांग्रेस को भी अपना वजूद दिखाने के लिए कुछ सीटें हासिल करनी ही चाहिए। बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने क्लीन स्वीप करते हुए विधानसभा की सत्तर सीटों में से 67 पर जीत हासिल की थी। भारतीय जनता पार्टी के खाते में महज तीन सीटें आई थीं।


एक तरफ केजरीवाल अपने पांच साल के कामकाज पर वोट मांग रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी केंद्र सरकार और नगरनिगम के साथ साथ राज्य में भी अपनी सरकार बना कर दिल्ली वालों को ट्रिपल इंजन की सरकार देना चाहती है। इन दोनों पार्टियों के बीच कांग्रेस को भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराना है। शीला दीक्षित की अगुवाई में 15 साल तक कांग्रेस ने दिल्ली में एकछत्र राज किया है।


आंकड़ों पर नजर डालें तो


2015 चुनाव में आप को 54.6%, बीजेपी को 32.8% जबकि कांग्रेस को 9.7% वोट मिले थे


2017 के निकाय चुनाव में बीजेपी को 36.1% , आप को 26.2% और कांग्रेस को 21.1% वोट मिले थे


2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 56.9%, कांग्रेस को 22.6% और आप को 18.2% वोट मिले थे





आंकड़ों से जाहिर है कि अलग अलग चुनावों में सभी पार्टियों का प्रदर्शन अलग अलग रहा है। इसलिए कोई भी चुनाव किसी पार्टी की जीत हार के लिए एकमात्र आधार नहीं हो सकता।


अगर 2017 के निकाय चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव को याद करें तो मामला उल्टा पड़ रहा है।

2015 के पिछले विधानसभा चुनाव में आप को 54.6% वोट मिले थे जिसके दम पर उसने 32.8% वोट पाने वाली बीजेपी और सिर्फ 9.7% वोट पाने वाली कांग्रेस को तगड़ी शिकस्त दी थी। अगर इस लिहाज से सोचें तो आप को टक्कर देने के लिए बीजेपी को अपने खाते में कम-से-कम 10.9% ज्यादा वोट लाना होगा।


अगर बीजेपी, आम आदमी पार्टी के 10.9% वोटरों को अपने पाले में ले आती है तो दोनों पार्टियों को 43.7% (54.6 - 10.9 और 32.8 + 10.9) वोट आएंगे। इस लिहाज से ये चुनाव बेहद दिलचस्प हो जाएगा। अगर आप के कुछ मतदाता इस बार पाला बदलेंगे, तो उनका एक हिस्सा ही बीजेपी में जाएगा जबकि कुछ कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों में। तब बीजेपी के लिए दिल्ली फतह का जरूरी आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा।


निकाय चुनाव का आधार




अगर हम 2017 के निकाय चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी उस चुनाव में 36.1% वोट हासिल कर आप (26.2%) और कांग्रेस (21.1%) से आगे निकली थी। ऐसे में आप को बीजेपी के महज 5% मतदाताओं को रिझाना होगा। यानी, आप के सामने बीजेपी के मुकाबले आधी चुनौती है।


लोकसभा चुनाव का आधार



2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके प्रतिद्वंदियों के बीच का अंतर 2015 में आप को मिली बढ़ते से भी ज्यादा है। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली के 56.9% मतदाताओं ने बीजेपी का समर्थन किया था जबकि कांग्रेस 22.6% वोट पाकर दूसरे और आप 18.2% वोट के साथ तीसरे नंबर पर रही थी।


कहां है कांग्रेस ?


2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे बुरी हालत कांग्रेस की है। लोकसभा चुनाव में हुई वोटिंग के लिहाज से देखें तो आप को दिल्ली की सत्ता बचाने के लिए बीजेपी के 19.4% वोटरों को अपनी तरफ करना होगा। तब जाकर दोनों पार्टियों के बीच 37.5%-37.6% की हिस्सेदारी होगी।


हर पार्टी के लिए करो या मरो की चुनौती


2017 के निकाय चुनाव को छोड़ दें तो किसी भी पार्टी के लिए बाकी कोई भी समीकरण हल करना आसान नहीं है। हालांकि बीजेपी और आप के लिए खुशखबरी यह है कि दोनों ने अतीत में ऐसा कर दिखाया है- 2015-17 के बीच बीजेपी ने और 2014-15 के बीच आप ने।


नए मतदाता हैं उलटफेर की चाबी


पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार वोट शिफ्टिंग की चुनौती इसलिए आसान हो सकती है क्योंकि दिल्ली में हर चुनाव में नए वोटर बड़ी तादाद में जुड़ते हैं। 2015 से 2019 के बीच मतादाताओं की तादाद 1 करोड़ 33 लाख 10 हजार से बढ़कर 1 करोड़ 43 लाख 30 हजार हो गई थी। यानी सिर्फ चार वर्षों में 10.2% का इजाफा। 2019 से अब तक 3 लाख 70 हजार वोटर और बढ़ चुके हैं और अब तादाद 1 करोड़ 47 लाख तक पहुंच चुकी है। नए वोटरों में पहली बार वोट डालने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है जबकि बहुत से नए वोटर देश के अन्य हिस्सों से रोजगार की तलाश में दिल्ली आए हैं।


दिल्ली में मतदान की प्रक्रिया आठ फरवरी की शाम समाप्त हो गई। ग्यारह फरवरी 2020 को नतीजे आएंगे। उसी दिन ये साफ हो जाएगा कि दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी। 2015 के मुकाबले 2020 के विधान सभा चुनाव में दिल्ली के लोगों ज्यादा मतदान किया है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि ये बढ़ा हुआ मतदान किसे आगे बढ़ाता है।


स्टेट टुडे टीम



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