कोरोना का कहर सिर्फ उतना नहीं है जब लोग अस्पतालों में थे, आक्सीजन और दवाओं को लेकर मारा मारी मची थी, लोगों की जान जा रही थी, श्मशान घाट और कब्रिस्तानों में लोग कतार में खड़े होकर अपनों के अंतिम संस्कार की बाट जोह रहे थे।
कहर का असर ऐसा है कि जो बच गए उनके सामने रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं। कभी भोले के भक्तों और पर्यटकों से भरी पूरी रहने वाली बाबा विश्वनाथ की धरती वाराणसी कराह रही है।
प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र बनने के बाद वाराणसी में विकास के कार्य तेज हुए। लोगों को अच्छे भविष्य की उम्मीद जगी तो शहर से पलायन कर बाहर नौकरी करने वाले बहुत से लोग वापस वाराणसी आ गए। अलग अलग व्यापार में लोगों ने हाथ आजमाए। शुरुआत अच्छी रही तो लोगों ने कारोबार बढ़ाया। फिर 2020 में कोरोना ने सब चौपट कर दिया। पहले लॉकडाउन से लोग उबर भी नहीं पाए थे कि दोबारा लॉकडाउन की स्थिति आ गई। ऐसे में बाजार पूरी तरह से चरमरा गया।
कपड़ा बाजार में ग्राहकों की सख्यां में बड़ी गिरावट आई है। लोगों ने बाजार में निकलना कम कर दिया है। वाराणसी के बाजारों में अब भीड़भाड़ कम दिखाई देने लगी है। एक अनुमान के मुताबिक बाजारों में करीब 40 फीसदी ग्राहकी कम हो गई है। कुछ कोरोना का डर और अफवाहों के बाजार ने कपड़ा बाजार को लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंचा दिया है।
अभी भी हालात सामान्य नहीं है। दुकान पर न कोई नया आर्डर है और न ही कोई नया ग्राहक पहुंच रहा है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि इस समय खर्चा निकालना मुश्किल है। कोरोना की वजह से बाजार का भी बुरा हाल हो गया है। कपड़ा बाजार को कोरोना ने इस तरह जकड़ा है कि इस व्यापार का दम फूल रहा है। कारोबारियों के मुताबिक दुकानों पर सन्नाटा छाया हुआ है। ग्राहक आ ही नहीं रहा है इसलिए मंदी चल रही है। अगर यही स्थिति रही तो बाजार के लिए दिक्कतें बढ़ेंगी।
यही हाल अन्य व्यवसायों से जुड़े लोगों का भी है। लोग सिर्फ रोजमर्रा की जरुरतों का सामान और आवश्यक दवाओं तक सीमित हो कर रह गए हैं। ये स्थिति वाराणसी समेत प्रदेश के लगभग हर जिले में बनी हुई है।
टीम स्टेट टुडे
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