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धरती मुस्कुराई - दुनिया कोरोना से धराशाई




पृथ्वी दिवस एक वार्षिक इवेंट है जिसे दुनियाभर में 22 अप्रैल को पर्यावरण संरक्षण के लिए मनाया जाता है। इसे पहली बार साल 1970 में मनाया गया था। इस साल पृथ्वी दिवस के 50 साल पूरे हो रहे हैं जहां इसका थीम 'क्लाइमेट एक्शन' रखा गया है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए "पृथ्वी दिवस या अर्थ डे" मनाया जाता है। इस आंदोलन को यह नाम जुलियन कोनिग ने सन् 1969 में दिया था। अर्थ डे सेलिब्रेट करने के लिए अप्रैल की 22 तारीख चुनी गई।

कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन से प्रकृति को भी फायदा हुआ है। इस दौरान उद्योगों में कामकाज ठप होने, वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध और निर्माण कार्य रुकने से पृथ्वी पर प्रदूषण घटा है। हवा और पानी को शुद्ध करने के लिए सरकारें जो काम वर्षों में नहीं कर पाईं, वह लॉकडाउन ने कर दिखाया है।

गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी


उद्योगों के बंद होने से नदियों में प्रदूषण काफी घटा है। सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में शुमार गंगा और यमुना का पानी भी स्वच्छ हुआ है। उत्तराखंड के ऋषिकेष और हरिद्वार में गंगाजल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा एक प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई है।


केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक, नदी के पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा का मानक 6.00 प्रति लीटर तय है। ऋषिकेश में लॉकडाउन से पूर्व 24 मार्च और लॉकडाउन के दौरान 18 अप्रैल को जो सैंपल लिए गए, उनमें बडा अंतर सामने आया है। पहले गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा 5.20 प्रति लीटर थी, जो बढ़कर 6.50 प्रति लीटर हो गई है। हरिद्वार में गंगा में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा पहले 4.50 प्रति लीटर थी, जो अब 5.75 प्रति लीटर पर पहुंच गई है। गंगा का पानी साफ होने से गंगा में जल प्राणियों की संख्या में इजाफा होगा। गंगा में पानी को शुद्ध करने वालीं महासीर,गोल्डन मछलियों की संख्या भी बढ़ेगी।

यमुना पहले से बेहतर

लॉकडाउन के कारण दिल्ली में हालांकि यमुना का पानी नहाने-धोने लायक नहीं हुआ है। लेकिन पहले से थोड़ा बेहतर जरूर हुआ है। पल्ला बैराज से अधिक पानी छोड़े जाने और फैक्ट्रियां बंद होने से इसमें सुधार हुआ है।

हवा सांस लेने लायक हुई


लॉकडॉउन के दौरान वाहनों की आवाजाही और निर्माण कार्य पर प्रतिबंध होने से दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश की हवा सांस लेने लायक हो गई है। वातावरण इतना साफ हो चुका है कि जालंधर से 200 किलोमीटर दूर हिमाचल की पहाड़ियां भी साफ दिखाई देने लगी थीं। 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा वाले दिन

दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 122 अंक पर था, जो लॉकडाउन के दौरान 21 अप्रैल को 87 पर आ गया।

क्या है शुद्ध हवा का मानक

शुद्ध हवा के मानकों के मुताबिक 0 से 50 तक के एक्यूआई को अच्छा, 50-100 तक को संतोषजनक माना जाता है।

ओजोन लेयर में सुधार

दुनिया के कई बड़े देशों में औद्योगिक गतिविधियां बंद होने से ओजोन परत में बहुत सुधार आया है। ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाली रासायनिक गैसों के उत्सर्जन में कमी होने से ऐसा संभव हुआ है। इसका असर अंटार्कटिका के ऊपर के वायुमंडल में भी हुआ है। इससे वायुमंडल में बनने वाला भंवर भी सही जगह पर आने लगा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षा के चक्र में भी अच्छा परिवर्तन होगा।

ओजोन लेयर में सुधार से क्या होगा


वायुमंडल की पहली परत क्षोभमंडल के ठीक ऊपर पाई जाने वाली ओजोन,, पराबैगनी किरणों को पृथ्वी तक नहीं आने देती। ये पराबैगनी किरणें हमारी आंखों और त्वचा को बड़ा नुकसान पहुंचाती हैं। कैंसर तक हो सकता है।

पृथ्वी के कंपन में आई कमी


लॉकडाउन के दौरान दुनिया में सड़क परिवहन, ट्रेन परिचालन सहित फैक्टरियों के कामकाज काफी कम हो जाने से पृथ्वी में होने वाले कंपन में 30 से 50 फीसदी तक कमी आई है। बेल्जियम के भूकंप विज्ञानी थॉमस लेकॉक और स्टीफन हिक्स का मानना है कि ध्वनि प्रदूषण के कम होने से ऐसा संभव हुआ है। दोनों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान उनके यंत्रों में अब दिन में पृथ्वी में होने वाली हर हलचल आसानी से रिकॉर्ड हो रही है। इससे भूंकप विज्ञानी छोटे स्तर के भूंकपों को भी आसानी से भांप पा रहे हैं।

टीम स्टेट टुडे

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