21 जून अर्थात साल के सबसे बड़े दिन को पड़ने वाला सूर्य ग्रहण भारत, नेपाल, सऊदी अरब, यूएई, पाकिस्तान, चीन और ताइवान में दिखाई देगा। देश व दुनिया में लोगों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, बच्चो और खगोल शास्त्रियों, ज्योेतिषों की निगाहें इस ग्रहण की ओर लगी हुईं हैं अगर राज्यों की बात करें तो चुनिदां राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा में सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ेगा। सबसे खास बात तो यही है कि 21 जून को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा जिसको वलयाकार या चूड़ामणि या कंकड़ सूर्य ग्रहण अथवा ‘रिंग ऑफ़ फायर’ के नाम से भी जाना जाता है भारत में 21 जून सुबह 10.11 बजे से लेकर दोपहर 1.50 बजे तक तक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा एवं दिल्ली से 155 किमी पूर्व मैं स्थित कुरुक्षेत्र (हरियाणा ) , देहरादून (उत्तराखंड ) कलंका चोटी (उत्तराखंड ) में सूर्य किसी कंगन की भांति वलयाकार अर्थात कंकणाकृति जैसा या रिंग ऑफ़ फायर जैसा भी देख सकते हैं दिखाई देगा। इसके अतिरिक्त भारत के अन्य शहरों में आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देने वाला है। । 21 जून के बाद अगला सूर्यग्रहण 14-15 दिसम्बर को होगा लेकिन इसे भारत मैं नहीं देख पाएंगे वहीं ज्योंतिष के लिहाज से यह ग्रहण बहुत दुर्लभ और विशेष महत्व वाला है। इस ग्रहण के समय जो खगोलीय स्थिति बन रही है, वह 900 साल बाद हो रही है। । इस वक्त विशिष्ट ग्रह स्थिति का निर्माण हो रहा होगा क्योंकि, बृहस्पति, शनि, मंगल, शुक्र, राहु और केतु वक्री अवस्था में होंगे।
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार लखनऊ मैं पूर्ण सूर्यग्रहण सुबह 10.26 मिनट से शुरू हो कर दोपहर 1.5० मिनट तक देखा जा सकता है लेकिन 12.12 मिनट पर यह सबसे अच्छा दिखाई देगा क्या है
सूर्य ग्रहण क्या है
असल में पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है इसके साथ ही साथ वह सौरमंडल में सूर्य के चक्कर भी लगाती है. वहीं, पृथ्वी का अपना एक उपग्रह है वह है चांद या चंद्रमा. चांद पृथ्वी के चक्कर लगता है. तो जब कभी चंद्रमा अपनी धूरी पर चलता हुआ सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, तो पृथ्वी पर सूर्य दिखना बंद हो जाता है. यह आंशिक या पूर्ण रूप से होता है. बस यही खगोलिय घटना सूर्यग्रहण कहलाती है. इस खगोलीय स्थिति में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं.
चांद से 400 गुना बड़ा है सूर्य, बावजूद ढंक जाता है
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के यह सचमुच रोचक बात है कि पृथ्वीर का चंद्रमा आकार में सूर्य में बहुत छोटा है। सूर्य इससे 400 गुना बड़ा है। जब ग्रहण घटित होता है तो दोनेां का आकार हमें पृथ्वीच से देखने पर समान मालूम पड़ता है। तभी तो सूर्य पूरा ढंक जाता है। हालांकि दोनों का जो आभासीय आकार है, वह मात्र आधी डिग्री का ही है। सच्चा ई यह है कि सूर्य चांद से 400 गुना बड़ा है, इसके बाद भी चांद सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर आने से रोक देता है।
सूर्यग्रहण को कभी भी न देखें खुली आँखों से
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के सूर्यग्रहण भले ही यादगार पल होते हैं लेकिन उन्हें कभी खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए. चांद आंशिक रूप से सूरज को ढक ले, तब भी सूरज बहुत चमकीला होता है. दरअसल, सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) के दौरान सोलर रेडिएशन से आंखों के नाजुक टिशू डैमेज हो सकते हैं. ऐसा करने से आखों में विजन - इशू यानी देखने में दिक्कत हो सकती है. इसे रेटिनल सनबर्न भी कहते हैं. ये परेशानी कुछ वक्त या फिर हमेशा के लिए भी हो सकती है. इसलिए विशेष प्रकार के सूर्य ग्रहण देखने वाले चश्मों सोलर व्यइंग ग्लासेज ,पर्सनल सोलर फ़िल्टर या आइक्लिप्स ग्लासेज से सूर्यग्रहण को देखना चाहिए सूर्य ग्रहण के प्रकार पूर्ण सूर्य ग्रहण जब चांद धरती के अधिक निकट होता है और उस समय सूर्य बीच में आता है तो चांद पूरी तरह से सूर्य को ढंक लेता है। ऐसे में दिन में ही रात का अनुभव होता है एवं सूर्य किसी लाइट की तरह बुझ जाता है। इसे टोटल एक्लिप्सद यानी पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। आंशिक सूर्य ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण या पार्शियल एक्लिप्सर वह अवस्थास होती है जब सूर्य व पृथ्वीू के बीच चांद इस तरह आता है कि सूर्य का पूरा भाग नहीं ढंक पाता एवं कुछ भाग पृथ्वी से दिखाई देता है। पृथ्वीस पर जो स्थान इस ग्रहण से अप्रभावित होता है, वहां नजर आने वाले ग्रहण को आंशिक कहा जाता है। वलयाकार ग्रहण रिंग के आकार का या वलयाकार ग्रहण वह होता है जब चांद व पृथ्वी की आपस में दूरी रहती है। इनके बीच में सूर्य आ जाता है। ऐसे में चांद से सूर्य का बीच का क्षेत्र ही ढंक पाता है। पृथ्वी से यह दृश्य देखने पर ऐसा लगता है जैसे सूर्य के बीचों बीच एक काला गोल घेरा बना हुआ है। सूर्य का जो भाग इससे अछूता रहता है, वहां रोशनी दिखाई पड़ती है। वह हिस्सा किसी वलय या छल्ले की तरह चमकता है। इसे वलायाकार ग्रहण कहते हैं।
वैज्ञानिकों के लिए क्यों है खास
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के भारत में सूर्यग्रहण जितना आस्था का विषय है वैज्ञानिक के लिए भी कौतूहल और शोध का विषय है सूर्य ग्रहण के दौरान वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली किरणों के बारे में अध्ययन करते हैं . वहीं जीव वैज्ञानिक ग्रहण के दौरान पशु पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं . क्योंकि अचानक सूरज के ग़ायब होने और पृथ्वी पर अंधेरा छा जाने के कारण जानवरों की जैविक घड़ी अर्थात बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ा जाती है. इसके अलावा वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली गामा किरणों, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं. कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान धरती पर गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है. आगामी 21 जून को होने वाला सूर्यग्रहण 25 साल पहले घटित हुए 24 अक्टूबर 1995 के ग्रहण की याद दिलाएगा। उस दिन भी पूर्ण सूर्य ग्रहण के चलते दिन में ही अंधेरा छा गया था। पक्षी घोंसलों में लौट आए थे। हवा ठंडी हो गई थी।
ग्रहण के साथ एक और खगोलीय घटना का संयोग
इस बार सूर्य ग्रहण के साथ एक और संयोग है। यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना का निर्माण कर रहा है। यह ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा है जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी पडेंगी। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
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