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अदालत ने एएसआई को सौंपा काशी-विश्वनाथ मंदिर में परिसर में औरंगजेब के कारनामों के सबूत लाने का काम



जो भी वाराणसी गया, काशी-विश्वनाथ के दर्शन किए उसने हमेशा पूछा कि भोलेनाथ की सवारी नंदी का मुंह मस्जिदनुमा ढांचे की तरफ क्यों है। नंदी का मुंह हमेशा शिवलिंग के सामने होता है लेकिन काशी-विश्वनाथ में ऐसा नहीं है। शिवलिंग से दूसरी दिशा में नंदी का मुंह है।


दुनिया के प्राचीनतम शहर वाराणसी में मुस्लिम आततायी औरंगजेब की करतूतें पूरा देश जानता है। मंदिरों को तोड़ना और उनकी जगह पर दूसरे ढांचे जो मस्जिद जैसे दिखें मुसलमानों और मुस्लिम देशों की पुरानी फितरत है। ये क्रम आज भी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जारी है।


वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में मस्जिद के ढांचे का विवाद अदालत में है। अब वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक की कोर्ट ने विवादित ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं।


ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि विवादित ढांचे के फर्श के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थपित है। यही नहीं विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है। 1991 में वाराणसी कोर्ट में इस मामले को लेकर याचिका दाखिल करने वाले हरिहर पांडेय का कहना है कि मस्जिदनुमा ढांचे के फर्श के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का ज्योतिलिंग है।


इस विवादित स्थिल के भूतल में तहखाना और मस्जिदनुमा गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार है, जिसे आज भी साफ तरीके से देखा जा सकता है।


ज्ञानवापी मस्जिदनुमा ढांचे के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिदनुमा ढांचे की ओर है। इसके अलावा मस्जिदनुमा ढांचे की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। स्कंद पुराण में भी इन बातों का वर्णन है।


हमेशा की तरह देश को साम्प्रदायिकता और कट्टरता की आग में झोंकने वाले सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ वकील मोहम्मद तौहीद खान तथ्यों को सिरे से खारिज करने की कोशिश की है।



कब बना था मंदिर


हरिहर पांडेय का कहना है कि मौजूद ज्ञानवापी आदि विशेश्वर का मंदिर है। राजा विक्रमादित्य ने इसका निर्माण करवाया था। बाद में मुगल आततायी औरंगजेब के फतवे के बाद आदि विशेश्वर के मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिदनुमा ढांचा बनाया गया।


कब दाखिल हुआ था मुकदमा


काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल हुआ था। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास,रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था।


2019 में फिर शुरू हुई सुनवाई


स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। तारीख दर तारीख सुनवाई के बाद गुरुवार को वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी है।


हाईकोर्ट में देंगे चुनौती


ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण की याचिका पर सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में बीते 2 अप्रैल को बहस पूरी हुई थी। कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैलसा सुरक्षित रख लिया था। अब कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर सरकार को पत्र के जरिए इस मामले में पुरातत्व विभाग की पांच सदस्यीय टीम बनाकर पूरे परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है। हांलाकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील मोहम्मद तौहीद खान ने बताया कि वाराणसी कोर्ट के इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।


टीम स्टेट टुडे


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