अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवान राम की मूर्ति की तस्वीर सामने आई, जिसमें वह बाल स्वरूप में श्यामल पत्थर से तैयार दिख रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठा रहा है कि रामलला की मूर्ति
काली या श्यामल क्यों हैं?
रामलला की मूर्ति काली क्यों?
रामलला की मूर्ति का निर्माण शिला पत्थर से हुआ है। इस काले पत्थर को कृष्ण शिला भी कहा जाता है। इस वजह से भी रामलला की मूर्ति श्यामल है। जिस पत्थर से रामलला की मूर्ति का निर्माण हुआ है, उसमे कई गुण हैं। वह पत्थर कई मायनों में बेहद खास है।
क्यों खास है रामलला की मूर्ति में उपयोग हुए पत्थर?
रामलला की मूर्ति के निर्माण में इस पत्थर का उपयोग करने के पीछे एक वजह ये भी है कि जब रामलला का दूध से अभिषेक होगा तो दूध के गुण में पत्थर की वजह से कोई बदलाव नहीं होगा। उस दूध का उपभोग करने पर स्वास्थ्य पर कोई गलत असर नहीं पड़ता है। साथ ही ये हजार से भी अधिक वर्षों तक यूं ही रह सकता है। यानी कि इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।
वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन
इसके अलावा वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के स्वरूप को श्याम वर्ण में ही वर्णित किया गया है। इसलिए, यह भी एक वजह है कि रामलला की मूर्ति का रंग श्यामल है। साथ ही रामलला का श्यामल रूप में ही पूजन होता है।
कैसी है भगवान श्रीराम की मूर्ति?
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने बताया कि भगवान श्री रामलला की जो मूर्ति बनी है, वह पांच वर्ष के बालक का स्वरूप है। उन्होंने बताया कि मूर्ति 51 इंच की है और रामलला की मूर्ति का निर्माण काले पत्थर की गई है। रामलला की मूर्ति में भगवान के कई अवतारों को दर्शाया गया है।
श्री राम मंदिर की विशेषताएं-
अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी को भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसे लेकर तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। राम मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। राम मंदिर में कलाकृति से लेकर सनातन संस्कृति तक सब कुछ मौजूद है। भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर की प्रमुख विशेषताएं बताई है। आइए जानते हैं मंदिर की विशेषताएं...
राम मंदिर की विशेषताएंः
राम मंदिर का निर्माण पुराने नगर स्टाइल में किया गया है। इसकी पूर्व से लेकर पश्चिम तक की लंबाई 380 फीट है। वहीं, मंदिर की चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। राम मंदिर को तीन फ्लोर में बांटा गया है और सभी फ्लोर की 20 फीट है।
मंदिर में 392 पिलर और 44 दरवाजे
राम मंदिर की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाई जा सकती है कि मंदिर में 392 पिलर और 44 दरवाजे हैं। मंदिर के पहले फ्लोर को राम दरबार का नाम दिया गया है।
राम मंदिर में पांच मंडप
राम मंदिर में कुल पांच मंडप हैं। इन मंडपों को नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप नाम दिया गया है। मंदिर के पिलरों पर देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं। मंदिर में पूर्व दिशा से प्रवेश की व्यवस्था है, जिसे सिंह द्वार नाम दिया गया है।
मंदिर निर्माण में लोहे का नहीं हुआ इस्तेमाल
परिसर के चारों दिशाओं में चार मंदिर हैं। इनमें सूर्य देव, देवी भगवती, भगवान गणेश और भगवान शिव के मंदिर शामिल हैं। मंदिर के नजदीक ही प्राचीन कालीन सीता कूप स्थित है। सबसे आश्चर्य वाली बात ये है कि मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं किया गया है।
कई अन्य मंदिर प्रस्तावित
राम मंदिर के अलावा यहां कई और मंदिर प्रस्तावित हैं। इनमें महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या के मंदिर बनाए जाने हैं।
इसके साथ ही कुबेर टीला पर जटायु की मूर्ति स्थापना के साथ ही प्राचीन शिव मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
नमी से बचाने के लिए विशेष व्यवस्था
मंदिर को नमी से बचाने के लिए सतह से 21 फीट ऊंची प्लिंथ बनाई गई है, जिसको बनाने में ग्रेनाइड का इस्तेमाल किया गया है।
मंदिर में आधुनिक सुविधा भी मौजूद
मंदिर में प्राचीन सभ्यता से साथ आधुनिक सुविधाएं भी मौजूद हैं। राम मंदिर में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पावर स्टेशन बनाया गया है।
राम मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो इसके लिए 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र बनाया गया है।
इसके अलावा मंदिर में स्नानघर, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा मौजूद हैं।
कौन हैं मूर्तिकार अरुण योगीराज?
मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले हैं। उनकी कई पीढियां इसी काम से जुड़े हुए हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी ने वाडियार घराने महलों में अपनी कला दिखाई थी। अरुण मूर्तिकार का मैसूर राजा के कलाकारों के परिवार से संबंध है।
दादा की भविष्यवाणी हुई सच
शुरुआत में अरुण योगीराज अपने पिता और दादा की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। हालांकि, उनके दादा ने कहा था कि अरुण एक मूर्तिकार ही बनेगा और अंत में वही हुआ। अरुण एक मूर्तिकार बने और ऐसे मूर्तिकार, जिन्होंने साक्षात रामलला की मूर्ति बनाई।
अरुण योगीराज ने बनाई हैं कई मूर्तियां
अरुण योगीराज ने सिर्फ रामलला की ही मूर्ति नहीं बनाई है, बल्कि उन्होंने इससे पहले कई और भी मूर्तियां बनाई है, जिसके लिए उनकी तारीफ भी की गई है। अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई है।
इसके अलावा अरुण योगीराज ने भगवान आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई है, जिसकी स्थापना केदारनाथ में की गई है। उन्होंने मैसूर में स्थापित भगवान हनुमान की 21 फीट की मूर्ति भी बनाई है।
श्याम शिला पत्थर से रामलला की मूर्ति का निर्माण
अरुण योगीराज ने रामलला की मूर्ति का निर्माण श्याम शिला पत्थर को तराश कर किया है। रामलला की मूर्ति की ऊंचाई 4.24 फीट है, जो दिखने में काफी भव्य है। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। मूर्ति में भगवान राम के कई अवतारों को तराशा गया है।
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