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दिल्ली में हुई एक बैठक के बाद यूपी के बीजेपी नेताओं की धड़कनें क्यों बढ़ गईं !



दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। वर्तमान राजनीति में इस बात को बीजेपी से बेहतर भला कौन जानेगा। आने वाला समय उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का है। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में कुछ ऐसे सत्ता में आई कि विरोधियों को दांत से भी पसीना छूट गया। सिर्फ इतना ही नहीं 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन किसी भी पार्टी के हर दौर के प्रदर्शन के सामने रिकार्ड है।


चुनाव से पहले बीजेपी की केंद्रीय इकाई हर घर मजबूत कर लेना चाहती है। भविष्य की चुनावी रणनीति के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नई दिल्ली में संगठन के पदाधिकारियों और अहम नेताओं के साथ बैठक कर तैयारी को लेकर मंथन किया।


इस बैठक में केंद्रीय मंत्री व पार्टी के यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, उत्तर प्रदेश के प्रभारी व पूर्व केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह, संगठन सचिव बीएल संतोष, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन सचिव सुनील बंसल शामिल हुए।


अगले 100 दिन अहम हैं पार्टी के लिए


वैसे बीजेपी की चुनावी रणनीति का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका है लेकिन मतदाता तक पहुंचने के लिए संगठन, उसके कैडर और नेताओं को शामिल करने के लिए रणनीति और कार्यक्रमों को अंतिम रूप देने के लिहाज से ये बैठक महत्वपूर्ण थी। बैठक में तय हुआ है कि आने वाले 100 दिनों में 100 कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे। मतदान से 100 दिन पहले मतदाताओं से जुड़ने के पार्टी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया। इसके साथ ही भाजपा सरकार द्वारा शुरू किए गए कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ मतदाताओं तक पहुंचने के लिए एक विस्तृत योजना भी तैयार की जा रही है।


क्या है बीजेपी की रणनीति


बीजेपी हर मोर्चे को विधानसभा क्षेत्रवार अपने कार्यक्रमों और बैठकों को पूरा करने के लिए तय दिनों का समय देगी। हर मोर्चे को हर विधानसभा क्षेत्र तक पहुंचना है। इस सूची में पन्ना प्रमुख सम्मेलन मंडलवार, छह क्षेत्रों में सदस्यता अभियान, हर बूथ पर 100 सदस्यों को शामिल किया जाना है। साथ ही उन 81 सीटों पर रैलियां करना भी शामिल है, जिन पर पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार मिली थी।


2017 में बीजेपी को मिली थी रिकार्ड तोड़ जीत


2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की थी। भाजपा ने 403 सीटों पर से 312 पर जीत दर्ज की थी। पार्टी का वोट शेयरिंग 39.67 फीसदी था। समाजवादी पार्टी के खाते में 47 सीटें, बसपा को 19 और कांग्रेस को महज सात सीटें ही मिली थी।


यात्राओं नहीं माइक्रो प्लानिंग पर जोर


भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय और इलाकाई राजनीतिक दलों से गठजोड़ का जो प्रयास शुरु किया वो 2017 के विधानसभा चुनाव आते आते बहुत आगे बढ़ चुका था। जातीय समीकरणों में उलझे उत्तर प्रदेश के हर क्षेत्र में जातीय नेताओं को पार्टी से जोड़ा गया। पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलित वोटबैंक को भी बेहद सधे अंदाज में ऐसे जोड़ा गया कि बीजेपी के विरोधी इस खेमेबंदी को भांप नहीं पाए।

वर्तमान में यूपी के विपक्षी दल यात्राओं के सहारे अपनी राजनीति आगे बढ़ा रहे हैं। अखिलेश यादव की विजय यात्रा, कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा और शिवपाल यादव की सामाजिक परिवर्तन यात्रा जिन जिलों से गुजरेगी वहां माहौल के जरिए लोगों को पार्टी की तरफ खींचने का प्रयास होगा।


दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी जो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है वो यात्राओं से हटकर आम जनता से ही गठबंधन करने की तैयारी में है। केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के सभी लाभार्थियों को पार्टी से जोड़े रखने के लिए घर घर पहुंचने का कार्यक्रम है। बीजेपी को उम्मीद है कि उसके द्वारा जनहित की योजनाओं से यूपी के लगभग हर परिवार को कुछ ना कुछ फायदा जरुर हुआ है।

ऐसे में जनता का एक एक वोट उसे एक एक कदम सत्ता की तरफ फिर से ले जाएगा।


टीम स्टेट टुडे





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