इज़राइल की उत्पत्ति, इज़राइल की जनता का राष्ट्रप्रेम, सुरक्षा की तकनीक और बिना किसी सियासत के दुश्मन को खत्म करने की अनोखी मिसाल दुनिया में और कहीं देखने को शायद ही मिले। मुस्लिम आतंक से त्रस्त दुनिया कैसे चरमपंथियों से निपटे इसका उदाहरण बीते 15 साल से इजराइल दुनिया के सामने रख रहा है। हर तरफ से मुस्लिम राष्ट्रों और धर्मांध चरमपंथियों से घिरे इजराइल की मदद अमेरिका हर तरह से करता आया। बीते 11 दिन से हमास की हरकत का इजराइल पुरजोर जवाब दे रहा था। दुनिया के कई देशों का समर्थन इजराइल की कार्रवाई को था लेकिन इस बार संघर्ष विराम की जो घोषणा हुई उसमें अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है।
जब इजराइल मुस्लिम आतंकी संगठन हमास के खिलाफ जमीनी लड़ाई छेड़कर पूरे विवाद को निर्णायण मोड़ पर ले जाने की तैयारी कर रहा था ठीक उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। जब इजराइल ने हमास के खिलाफ कार्रवाई शुरु की तो कई मुस्लिम संगठनों, मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम देशों ने विरोध किया था। शुरुआत में ऐसा लगा कि बाइडन इजराइल का पूरा साथ देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और बाइडन ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। सिर्फ इतना ही नहीं जिस तरह इजराइल की कार्रवाई पर चीन के तेवर तल्ख हुए उसके बाद बाइडन की तरफ से लिए फैसले संदेह को और बढ़ा रहे हैं।
दरअसल दुनिया भर में इस बात की चर्चा है कि मुस्लिम देशों, सोशल मीडिया कंपनियों और चीन के साथ बाइडन और उनकी पार्टी ने अमेरिकी चुनाव से पहले ही बड़ी डील और गुप्त समझौते किए हैं।
अमेरिका में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में बाइडन को जीत मिली, डोनाल्ड ट्रंप हार गए। बावजूद इसके अमेरिका का एक बड़ा तबका मानता है कि चुनाव में धांधली हुई। अमेरिका को लेकर ट्रंप और उनकी पार्टी की राष्ट्रवादी सोच से ना सिर्फ दुनिया के मुस्लिम देश परेशान थे बल्कि आतंकियों और चरमपंथियों की तमाम कोशिशों के बावजूद ट्रंप के कार्यकाल में दुनिया के कई देशों में मुस्लिम आतंक को मुंहतोड़ जवाब मिल रहा था।
अमेरिकी चुनाव के दौरान सोशलमीडिया फेसबुक और ट्विटर की संदेहास्पद गतिविधियां और ट्रंप विरोधी अभियानों की जिस तरह ट्रेल बनाई गई वो दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों के लिए चुनौती बनने जा रहा है। जब परंपरागत मीडिया से कई देशों की सरकारें बनती बिगड़ती रहीं जिनकी पहुंच और संसाधन सीमित रहते थे तो ये तो सोशल मीडिया है। जहां उसी देश की जनता को प्रलोभन, षडयंत्र या बरगला कर विपक्ष ऐसे ऐसे अभियान चला सकता है जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम कभी कोई पकड़ ही नहीं पाएगा। ऐसा नहीं है कि इस खेल में सिर्फ किसी देश की सरकार या विपक्ष को फायदा या नुकसान होगा बल्कि ऐसी स्थिति में सोशल मीडियां कंपनियों के साथ साथ इस अभियान में जुड़ने वालों के लिए अरबों खरबों की फंडिंग भी हो जाती है जो इस तरह से बंटती है कि पकड़ में भी नहीं आती।
खैर लौटते हैं इजराइल और अमेरिका पर। जिस तरह से इजराइल ने फिलिस्तीनी मुस्लिम आतंकी संगठन हमास की कमर तोड़ना शुरु किया उससे अरब समेत दुनिया भर के मुस्लिम देश और भारत जैसे देशों में रहने वाले मुसलमान भी एक सुर में इजराइल के खिलाफ बोलने लगे। शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने इजराइल का समर्थन किया लेकिन फिर ऐसा लगा जैसे बाइडन को पर्दे के पीछे से कोई ताकत नियंत्रित करने लगी। अमेरिका के लिए ये खोज का विषय हो सकता है कि उसने जो राष्ट्रपति चुना है क्या वो वास्तव में अमेरिकी स्वाभिमान के साथ अमेरिकी साख को दुनिया में कायम रखता है या फिर गुप्त समझौतों के जरिए अंदर ही अंदर अमेरिका को खोखला करता है और ऊपर से अमेरिका ताकतवर दिखाता रहता है।
इजराइल फिलीस्तीन के मामले में अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति की भूमिका इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरे मिडिल-ईस्ट पर निगहबानी के लिए अमेरिका के पास इजराइल से भरोसेमंद साझीदार और कोई नहीं हैं।
इज़राइल और हमास गुरुवार को संघर्ष विराम के लिए सहमत हो गए। 11दिन तक चले इस युद्ध की वजह से ग़जा़ पट्टी में तबाही मची। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सुरक्षा कैबिनेट ने ग़जा़ पट्टी में 11 दिन से चल रहे सैन्य अभियान को रोकने के लिए एकतरफा संघर्षविराम को मंजूरी दी है। मीडिया में आयी खबरों में कहा गया है कि हमलों को रोकने के लिए अमेरिका की ओर से दबाव बनाए जाने के बाद यह फैसला किया गया है।
उधर हमास के एक अधिकारी ने भी सीजफायर की पुष्टि की है। हमास की तरफ से बताया गया कि यह संघर्ष विराम शुक्रवार तड़के 2 बजे से प्रभावी हो गया है। दो देशों की इस जंग में तुर्की, रूस और अमेरिका की प्रत्यक्ष एंट्री की संभावना काफी बढ़ गई है, जिसकी वजह से माना जा रहा था कि ये जंग वर्ल्ड वॉर का रूप ले सकती है। हाल ही में लेबनान की तरफ से भी इजरायल पर रॉकेट हमला किया गया था।
इसमें दोराय नहीं कि इजराइल की मदद अमेरिका अब तक हर तरह से करता आया है। लेकिन वर्तमान समय में बाइडन ने जिस तरह दोहरा व्यवहार किया है और आयरन डोम की सप्लाई को लेकर संघर्ष विराम के साथ ही बयान दिया है उससे अमेरिकी राष्ट्रपति और व्हाइट हाउस की भूमिका चरमपंथियों को लेकर संदेहास्पद हो गई है।
टीम स्टेट टुडे
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