लखनऊ, 4 जून 2023 : ओडिशा के बालेश्वर में शुक्रवार शाम हुई ट्रेन दुर्घटना को टाला जा सकता था। यदि अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) के अधिकारियों की वर्षों की मेहनत से तैयार ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम ( कवच) से ओडिशा का वह पूरा सेक्शन कवर होता। दक्षिण मध्य रेलवे में कवच का पायलट प्रोजेक्ट सफल होने पर पिछले साल रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसका ट्रायल भी किया था।
अभी दक्षिण मध्य रेलवे के 1445 किलोमीटर रेलखंड, 134 स्टेशनों और 65 लोको को कवच से जोड़ा गया है। हालांकि दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई सेक्शन पर इसे लगाने के लिए बजट भी जारी हो चुका है। रेलवे ने वर्ष 2027-28 तक देश भर के रेल नेटवर्क को कवच से जोड़ने की योजना बनाई है।
कवच में सेव आवर सोल तकनीक यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस की तरह किसी ब्लाक सेक्शन पर ट्रेन के बेपटरी होने पर सक्रिय हो जाती है। यदि ट्रेन के बेपटरी होने पर लोको पायलट इसमें लगा बटन दबा देता है। बटन दबते ही दो मिनट के भीतर एक से दो किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी ट्रेनों और मालगाड़ियों में खुद ही ब्रेक लग जाएंगे।
ट्रेन बेपटरी होने पर यदि लोको पायलट की मृत्यु हो जाती है, तब भी दो मिनट तक किसी अप्रत्याशित स्थान पर ट्रेन के रुके रहने पर यह तकनीक सक्रिय हो जाती है और बटन खुद ही दब जाता है। दरअसल कवच अल्ट्रा हाइफ्रीक्वेंसी कम्युनिकेशन आधारित सिस्टम है। इसे लोको और स्टेशन पर लगाया जाता है।
कवच तब ही काम करता है जब उस सेक्शन के सभी स्टेशनों को इससे जोड़ने के साथ सारे लोको में ट्रेन कोलिजन एवाइडेंस सिस्टम (टीकास) लगा हो । यदि एक इंजन में टीकास लगा है और उसी सेक्शन के दूसरे इंजन में इसे नहीं लगाया गया हो तो कवच काम नहीं करेगा।
एक ही पटरी पर आईं दो ट्रेनों की टक्कर, लाल सिगनल को पार करने की चूक, अधिकतम गतिसीमा का नियंत्रण और बेपटरी हुई ट्रेन से टक्कर जैसी घटना को कवच रोकता है। लोको पायलट को उसके इंजन में ही सिगनल और आगे रेल लाइन कितनी दूरी तक खाली है ? यह भी पता चल सकता है।
कवच तकनीक से स्टेशन और ट्रेनों के लोको अभी अल्ट्रा हाइफ्रीक्वेंसी कम्युनिकेशन से कनेक्ट किया गया है, वहीं लाइन पर लगे मैग्नेटिक टैग रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटीटी ट्रैक (आरएफआइडी) की मदद भी ट्रेन की सही लोकेशन बताने में ली जाती है।
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