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क्यों टकरा रहे हैं “धरती के भगवान” – केंद्रीय मंत्री की बात सुनना जरुरी है



भारत में दवा-इलाज-अस्पताल बहुत बड़ा कारोबार है। जिसमें खासतौर से एलोपैथ का ही वर्चस्व है। ये वर्चस्व अंग्रेजी दवाओं की तत्काल असर कारकता (राहत) या डाक्टरों की काबिलियत से ज्यादा पैसों के खेल की वजह से है। एक से एक महंगे डॉक्टर, महंगी दवाएं, महंगा इलाज और मेडिकल इंश्योरेंस। ये ऐसा जाल है जिसमें आम आदमी जब जब फंसता है तो फंसा ही रहता है, बचता कम ही है। अगर बचा भी तो सिर्फ दवाओं के सहारे।


सिर्फ इतना ही नहीं हालकी एक सरकारी रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि निजी अस्पतालों में जिस तरह की लूट खसोट या बेशकीमती इलाज किया जाता है उस अनुपात में लोगों की जान नहीं बचाई जाती। मेडिकल इंश्योरेंस का पैसा खत्म होने के बाद पैसा झटकने के लिए मुर्दों को भी वेंटिलेटर पर डालकर बिल बढ़ाने के किस्से खूब सुने पढ़े होंगे।


ऐसे में भारत सरकार चाहती है कि शल्य चिकित्सा यानी आपरेशन करने का जो दायित्व अब तक सिर्फ एलोपैथ के डॉक्टर एकाधिकार के रुप में करते चले आ रहे हैं उसे समाप्त किया जाए।


भारत में आयुर्वेद के डॉक्टर भी अपनी पढ़ाई और ज्ञान के आधार पर ऑपरेशन करने में सक्षम हैं। सरकार चाहती है कि आयुर्वेद पद्यति से इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी ऑपरेशन या शल्य क्रिया करने की अनुमति दी जाए।


इससे ना सिर्फ आम लोगों के पास विकल्प बढ़ेंगे बल्कि भारतीय आयुर्वेद पद्यति को नई उंचाइयां भी मिलेंगी।

आयुर्वेदिक डॉक्टर भी सर्जरी करने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं, 'मिक्सोपैथी' जैसी कोई अवधारणा नहीं है। यह कहना है केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाईक का। नाईक ने को गोवा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से छुट्टी मिलने से कुछ देर पहले ही इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों को कुछ तरह की सर्जरी और अन्य कुछ कार्य की अनुमति देने का फैसला एलोपैथिक डॉक्टरों की मदद करने पर केंद्रित है।


आयुष मंत्री एक दुर्घटना के बाद इस अस्पताल में उपचार करा रहे थे। उल्लेखनीय है कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों को कुछ तरह के ऑपरेशन करने की अनुमति देने के केंद्र के फैसले का एलोपैथिक डॉक्टरों का एक तबका विरोध कर रहा है और वह इसे ‘मिक्सोपैथी’ करार दे रहा है।


श्रीपद नाइक का कहना है कि हम एलोपैथी प्रैक्टिस की मदद के लिए एक भारतीय औषधि प्रणाली ला रहे हैं। यह कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है क्योंकि दोनों पद्धतियां एक-दूसरे की पूरक बनेंगी।


नाईक ने कहा कि आयुर्वेदिक डॉक्टर भी एलोपैथिक डॉक्टरों की तरह ही शिक्षित हैं और यहां तक कि कि उन्हें सर्जरी करने का भी प्रशिक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आयुर्वेदिक डॉक्टर एक साल की इंटर्नशिप करते हैं। वे प्रशिक्षित सर्जन हैं।


नाईक ने कहा कि भारतीय औषधि प्रणाली देश के लोगों को सदियों से लाभ पहुंचाती रही है और इसकी विधि में कोई बदलाव नहीं हुआ है।


इसमें दोराय नहीं है कि आज जिसे एलोपैथ की भाषा में ऑपरेशन कह कर भारी बवंडर खड़ा किया जाता है वो शल्य क्रिया प्राचीन भारत की विशिष्टतता रही है।


टीम स्टेट टुडे


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