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ब्रिटेन के पब्लिशिंग हाउस ब्लूम्सबरी इंडिया का दिल्ली दंगों से क्या है कनेक्शन? छाप कर रोकी असलियत!



ब्रिटेन के प्रकाशक ब्लूम्सबरी की भारत की शाखा ब्लूम्सबरी इंडिया दिल्ली दंगों पर एक पुस्तक ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ को ब्रिकी के लिए लाने वाली थी। मोनिका अरोड़ा, प्रेरणा मल्होत्रा और सोनाली चितलकर की इस पुस्तक के कंटेंट की सभी तरह से जांच के बाद इसकी 100 प्रतियां लेखकों को दे दी गयी थीं। लेखकों ने पुस्तक मिलने के बाद इसका वेब लांच किया गया। लेकिन इस वेब लांच से ठीक पूर्व ब्लूम्सबरी ने घोषणा कर दी कि वो इसका प्रकाशन नहीं करेंगी।


लेखकों और जानकारों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात बताया है। प्रकाशक ने अपने इस निर्णय का ठीक-ठीक कारण भी नहीं बताया है।


सवाल उठता है कि जब पुस्तक के कंटेंट को लेकर कोई समस्या नहीं थी तो किसके दबाव में आकर इसे प्रकाशित नहीं करने का निर्णय लिया गया।


प्रकाशक के इस निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। इस प्रकाशन से नौ सफल पुस्तकें छपवा चुके प्रसिद्ध लेखक संदीप देव ने अपनी सभी पुस्तकें प्रकाशक से वापस लेने की घोषणा की है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोकप्रिय पुस्तक 'मोदी सूत्र' लिखने वाले पत्रकार-लेखक हरीश बर्णवाल ने भी अपनी इस पुस्तक को वापस लेने की घोषणा की है।


इसके बाद ही प्रसिद्ध लेखक संजीव सान्याल और आनंद रंगनाथन ने भी अपनी पुस्तकें वापस लेने की घोषणा कर दी है। जानकारी मिल रही है कि कई और लेखक भी अपनी पुस्तकें वापस लेने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि इसी प्रकाशक ने Shaheen Bagh: From a Protest to a Movement” by Ziya Us Salam and Uzma Ausaf का चंद दिनों पूर्व ही प्रकाशन किया। इस पुस्तक के लेखकों ने दिल्ली दंगों के अभियुक्त आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को पहले ही निर्दोष करार दिया है। लेकिन इस पुस्तक को लेकर प्रकाशक को कोई परेशानी नहीं हुई।


ऐसा माना जा रहा है कि भारत में इसके प्रकाशन का काम देख रहे लोगों को ऊपर से निर्देश आया। मसला है कि कौन लोग ऊपर तक दबाव बनाने में लगे हैं। मीडिया में इन बातों को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है।

एडवोकेट मोनिका अरोड़ा, लेखिका

दरअसल इस पुस्तक में दंगों के पैटर्न से जुड़े ऐसे सच हैं जिनकी चर्चा अभी तक गॉशिप के तौर पर तो होती रही लेकिन किसी जांच दल ने उसका वास्तविक चित्र सामने नहीं रखा था। सुबूतों, चश्मदीदों के हवाले से इसमें ऐसा बहुत कुछ लिखा गया जिसका पुस्तक के रूप में सामने आना एक वर्ग विशेष के खिलाफ जा रहा था। इस दबाव को समझना हो तो लेफ्ट लिबरल्स के पूरे इको सिस्टम को समझना होगा। पुस्तक का प्रकाशन नहीं करने के फैसले ने उन्हें खुले तौर पर बेनकाब किया है।

दिलचस्प बात है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के स्वयंभू अलंबरदारों का दोहरा चरित्र सामने आया है। उन्हें दंगों के अभियुक्तताहिर हुसैन को निर्दोष बताने वालों से परेशानी नहीं लेकिन दंगों का सच बताने वालों से बहुत परेशानी है।


पुस्तक की लेखिका मोनिका अरोड़ और प्रेरणा महरोत्रा ने स्टेट टुडे से बातचीत में बताया कि प्रकाशक अनुबंध से बंधा हुआ था, लेकिन उन्होंने लेखकों को पुस्तक वापस लेने के अपने निर्णय के बारे में एक-लाइन आधिकारिक संचार भेजने की जहमत नहीं उठाई। पुस्तक की सामग्री को प्रकाशक की संपादकीय प्रक्रिया द्वारा अनुमोदित किया गया था। उन्होंने इसे कानूनी रूप से वीटो कर दिया था। उन्होंने पुस्तक प्रकाशित की, हमें 100 प्रतियां भेजीं। हमने 22 अगस्त को पुस्तक के वेब लॉन्च की योजना बनाई थी। हमने उन्हें लॉन्च कार्यक्रम के पोस्टर और कार्यक्रम के विस्तृत प्रवाह के साथ एक आमंत्रण भेजा। लांच शाम 4 बजे निर्धारित समय पर शुरू होना था। वर्चुअल लॉन्च कि तैयारियों के बीच ही, हमें प्रकाशक से फोन आया जिसमें बताया गया कि ब्लूम्सबरी ने यूके में वरिष्ठ मालिकों द्वारा लिए गए निर्णय का हवाला देते हुए पुस्तक ना छापने का फैसला किया है। हमें बताया गया कि दबाव बहुत अधिक था और वे अपने स्तर पर इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते थे। हमने उनसे कहा कि इस बारे में हमें एक लिखित संवाद करें।


सिर्फ इतना ही नहीं पुस्तक अमेज़न पर खरीदने के लिए उपलब्ध थी। #DelhiRiots2020TheUntoldStory श्रेणी में # 1 बेस्टसेलर बन गया। अचानक, अमेज़न ने इसे अनुपलब्ध दिखाना शुरू कर दिया। फिर कुछ ही समय में, पुस्तक का लिंक अमेज़ॅन साइट से गायब हो गया।



23 अगस्त तक, हमें स्थिति बताने के हमारे लिखित अनुरोध के बावजूद हमें #BloomsburyIndia से कोई पत्र नहीं मिला है। लेखकों के रूप में हमने ठगा और तबाह महसूस किया। जाहिर है माफिया ने भारत में प्रकाशन उद्योग का हुक्म दिया, यहाँ और देश के बाहर बैठे लोगों ने एक शब्द भी पढ़े बिना किताब को मारने की कोशिश की।


क्या वे दोषी आतंकवादियों के लिए भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रोना रोते हैं? क्या हमें किताब लिखने की कोई स्वतंत्रता नहीं है? या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुविधा का एक उपकरण है जो कुछ का चयन करने के लिए लागू होता है?


प्रेरणा मल्होत्रा, लेखिका

अब सवाल है कि कौन नहीं चाहता कि दिल्ली दंगों का सच सामने आए?


किसके दबाव में लिया पुस्तक को प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया गया।








टीम स्टेट टुडे



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