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दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर बोले CM, विरासत के प्रति कृतज्ञता सनातन संस्कृति की विशेषता


गोरखपुर, 13 सितंबर 2022 : मुख्यमंत्रीयोगी आदित्यनाथ नेकहा कि सृष्टि, प्रकृति, पूर्वजों तथा विरासतके प्रति कृतज्ञताका भाव सनातनधर्म-संस्कृति कीपहली विशेषता है।सनातन हिंदू धर्मसंस्कृति में यहीकृतज्ञता का भावहमें निरंतर आगेबढ़ने की नईप्रेरणा प्रदान करता है।मुख्यमंत्री ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथकी 53वीं तथाराष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथकी 8वीं पुण्यतिथिके उपलक्ष्य मेंआयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोहके अंतर्गत मंगलवार (आश्विन कृष्ण तृतीया) कोमहंत दिग्विजयनाथ कीपुण्यतिथि पर संबोधितकर रहे थे।

जीवन चक्रकी जड़ चेतनके बेहतर समन्वयसे चलता है

उन्होंने कहा किहनुमान जी जबलंका में जारहे थे तबपर्वत ने उनसेप्रश्न किया थाकि सनातन धर्मकी परिभाषा क्याहै, तब उन्होंनेजवाब दिया थाकि कोई आपपर कृपा करेतो उसके प्रतिकृतज्ञता ज्ञापित करना हीसनातन धर्म काकर्तव्य है। यहीइसका पहला लक्षणभी है। हरसनातन धर्मावलंबी इसभाव को ठीकसे समझता है।गोरक्ष पीठाधीश्वर ने कहाकि जीवन चक्रकी जड़-चेतनके बेहतर समन्वयसे चलता है।यही कारण हैकि हमारे सनातनधर्म ने वनस्पतियों, जीव-जंतुओं केमहत्व को समानरूप से स्वीकारकिया है। वर्षमें दो बारहम नवरात्र केजरिये सृष्टि कीआदि शक्ति केप्रति कृतज्ञता काभाव प्रकट करतेहैं तो वर्षमें एक पक्षअपने पूर्वजों केप्रति कृतज्ञता हेतुतर्पण करते हैं।त्योहारों के प्रतिलगाव भी कृतज्ञताज्ञापित करने कामाध्यम है।

यह हैगोरक्षपीठ की अद्भुतपरंपरा

मुख्यमंत्री योगी नेकहा कि अपनीविरासत के प्रतिकृतज्ञता ज्ञापित करने कीगोरक्षपीठ की अद्भुतपरंपरा है। पितृपक्षकी तृतीया तिथिको ब्रह्मलीन महंतदिग्विजय नाथ तथाचतुर्थी तिथि कोब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथकी पुण्यतिथि एकदूसरे से जुड़ीहुई हैं। इसअवसर पर यहांहोने वाले आयोजनमें ब्रह्मलीन आचार्यद्वयकी पुण्य स्मृतियांस्वतः ही जुड़जाती हैं। इसअवसर पर महंतद्वयने धर्म, समाजव राष्ट्र केलिए जिन मूल्योंव आदर्शों केअनुरूप शिक्षा, स्वास्थ्य वसेवा के विभिन्नप्रकल्पों को लोककल्याण से जोड़ा, उन्हें और आगेले जाने कीप्रेरणा भी मिलतीहै।

धर्म वराष्ट्र की रक्षाके लिए शास्त्रके साथ शस्त्रका संधान करनेकी परंपरा

मुख्यमंत्री ने कहाकि 1857 के प्रथमस्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिशहुकूमत ने गोरक्षपीठके तत्कालीन महंतगोपालनाथ जी कोगिरफ्तार कर लियाथा। उन परआरोप था किवह क्रांतिकारियों कोप्रश्रय देते थे।जब भी जरूरतपड़ी सनातन धर्मकी रक्षा केलिए संतो नेबढ़ चढ़कर भागलिया। उन्होंने कहाकि धर्म वराष्ट्र की रक्षाके लिए शास्त्रके साथ शस्त्रका संधान करनेकी हमारे संतसमाज की समृद्धपरंपरा रही है।यह हमारी हजारोंवर्षों की विरासतभी है।

सफलता सामूहिक प्रयासोंका परिणाम होतीहै

योगी नेकहा कि हमारीकमी यह हैकि हम किसीघटना के मूल्यांकनका प्रयास नहींकरते। हम सफलताको व्यक्तिगत पुरुषार्थमान लेते हैं।सफलता व्यक्तिगत नहींहोती बल्कि यहसामूहिक प्रयासों का परिणामहोती है सफलतामें टीम केएक-एकसदस्य कायोगदान होता है।जैसे सेतुबंध केनिर्माण में विशालवानर-भालुओं सेकम योगदान गिलहरीका भी नहींरहा।

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