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मुक्तिगाथा कार्यक्रम में बोले सीएम योगी, इस तरह देश फिर से बन जाएगा सोने की चिरैया


लखनऊ, 02 जुलाई 2022 : देश की आजादी के आंदोलन को गीतों ने जन संग्राम बनाया। अंग्रेज तक उन गानों से डरे और उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। शुक्रवार को प्रख्यात गायिका मालिनी अवस्थी के सुरों में उन्हीं प्रतिबंधित गीतों में भारत की मुक्तिगाथा गूंजी। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की उपस्थिति में सोन चिरैया संस्था की ओर से उप्र संगीत नाटक अकादमी में मुक्तिगाथा का आयोजन हुआ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संगीत एक साधना है और बिना भक्ति के शक्ति नहीं मिलती। भक्ति नहीं होती तो गुलामी की जंजीरें तोड़ने में दिक्कतें होतीं। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम को गदर या विद्रोह कहा गया, उसे वीर सावरकर ने प्रथम स्वतंत्रता समर का नाम दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हर कोई अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन करने लगे तो देश फिर से सोने की चिरैया बनेगी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि इन महान सपूतों के कारण आज हम आजाद भारत के नागरिक कहलाते हैं। हर विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में ऐसे कार्यक्रम होने चाहिए। इतिहास के इन प्रेरणादायी घटनाओं को स्मरण किया जाना चाहिए। मालिनी अवस्थी ने 'या भारत की ऐसी महिमा वर्णन करूं मैं सौ-सौ बार...' के साथ देश की स्वाधीनता की गाथा शुरू की।

मंगल पांडेय ने क्रांति का बिगुल फूंका। दिल्ली के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर ने इस खूनी संघर्ष को कैसे फूटे भाग्य हमारे, लुट गई बगिया सारी, जल गई सब फुलवारी... में बयां किया। बुंदेलों हरबोलों के मुंह से हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी वो तो झांसी की रानी थी... अब बारी थी झांसी की रानी के साहस को नमन करने की। झांसी खुशी से बौरानी हो रामा... गीत संग उनके साहस को याद किया गया।

इसके बाद मालिनी अवस्थी ने गीतों में वह परिदृश्य पिरोया जब हमारी संपदा लूटकर लोग विदेश ले जा रहे थे तब लोगों ने स्वदेशी का नारा दिया। उन्होंने जो दिल में दावा है देश का तो कभी ना गैरों का माल लेंगे... गीत सुनाया। महात्मा गांधी ने आत्मनिर्भर होने का संदेश दिया और गीतों में गूंजा- सत्याग्रह के भरल हुंकार रे चंपारण में...।

महिलाओं ने लोकगीतों में अपने प्रिय से अपील की कि मत लइहो चुनरिया हमार विदेशी ओ बालमा...। महात्मा गांधी जन जन के नायक बने और तभी चौरी चौरा की घटना घटी और बापू ने आंदोलन बीच में ही रोक दिया। उन्होंने कहा कि हिंसा के बल पर अंग्रेजों से लोहा नहीं ले सकते। पैसा के लोभी फिरंगिया... गीत पर खूब तालियां बजीं।

गीतों में वह घटना भी वर्णित हुई जब काकोरी में ट्रेन लूटकर अंग्रेजों का खजाना लूट लिया। राम प्रसाद बिस्मिल के गीत सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है... को भी करतल ध्वनि से सराहा गया। प्रतिबंधित कजरी कितने वीर झूले भारत में... बेईमान झूलना... ने बलिदान को नमन किया। हम दुष्टनाशिनी दुर्गा है... गीत से बताया गया कि किस तरह देश की बेटियां, माताएं भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं। आंदोलन हुए जेलों में जगह नहीं बची और अंततः आजादी की भोर आई और गूंजा वंदे मातरम... शुभ्र सुंदर अति मनोहर मंत्र वंदे मातरम...।

राज्यपाल ने की दस लाख देने की घोषणा

मुक्तिगाथा आयोजन से प्रसन्न होकर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सोन चिरैया संस्था को राजभवन की ओर से दस लाख रुपये देने की घोषणा की, ताकि देश भर में ऐसे आयोजन हो सकें। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि देश की आत्मा उसकी लोक संस्कृति में समाहित है। लोकगीतों ने जनमानस को प्रेरित करने का काम किया। स्वतंत्रता आंदोलन में गीतों ने जन जागरण का काम किया। लोकगीतों का सीधा संबंध लोकमन से होता है। लोक स्मृति में बसे उन गीतों को संरक्षित करने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा कि हम मुक्तिगाथा को कालेज और यूनिवर्सिटी तक ले जाने का काम करेंगे।

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