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महाबैठक के बाद नीतीश कुमार का सियासी कद बढ़ा


पटना, 24 जून 2023 : बहुप्रतीक्षित विपक्षी एकजुटता की महाबैठक के बाद आहत हो चुके विपक्ष को पटना की तपिश में अपने को निखारने की तकनीक मिल गयी। एकजुटता की ट्रेन इस ट्रैक पर दौड़ी कि 2024 में भाजपा मुक्त भारत के लिए कलेक्टिव एफर्ट (सामूहिक प्रयास) पर काम होगा। हालांकि, महाबैठक में इतना तो साफ दिखा कि देश में विपक्ष की राजनीति में नीतीश कुमार का कद काफी बड़ा हो गया।

पटना की विपक्ष की महाबैठक के बारे भाजपा नेताओं का यह वक्तव्य आ रहा था कि यह काम मेढकों को तौलने जैसा है। खुद विपक्ष के नेताओं को भी संशय था। उमर अब्दुल्ला ने भी यह कहा कि इतने लोगों को एक साथ इकट्ठा करना मामूली बात नहीं।

महाबैठक के बाद भी खत्म नहीं हुआ इंतजार

हालांकि, नीतीश कुमार ने यह मुमकिन कर दिखाया। पटना में 15 राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेता एक साथ एक मंच पर दिखे, तो बिहार से दिल्ली तक भाजपा में खलबली मच गई। हालांकि, महाबैठक के बाद विपक्ष की तरफ से जिस प्रधानमंत्री चेहरे के नाम के खुलासे का सबको इंतजार था, वो अब भी अधूरा है।

शिमला में पीएम उम्मीदवार के चेहरे से उठेगा सस्पेंस

पटना की बैठक में सभी पार्टियों ने कौन बनेगा पीएम के क्विज से खुद को दूर रखा। पूर्व केंद्रीय मंत्री व एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने विपक्षी दलों की महाबैठक के बाद कहा कि नीतीश कुमार ने जो तय किया, वह शिमला में स्वरूप ले लेगा। उनका आशय अगले महीने शिमला में होने वाली विपक्षी एकजुटता की बैठक से था।

नीतीश कुमार विपक्षी दिलों के नेताओं की पहली पसंद

चर्चा है कि अगर 2024 के चुनाव में सभी विपक्षी पार्टियों के बीच एकसाथ चुनाव लड़ने पर सहमति बन जाती है, तो नीतीश कुमार को संयोजक बनाया जा सकता है। क्योंकि नीतीश कुमार ही वो नेता है, जिन्होंने सभी नेताओं को एक मंच पर लाने की मुहिम को सफल बनाया। संभावना है कि शिमला में विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री चेहरे का एलान भी हो जाएगा। इस रेस में भी नीतीश कुमार सबसे प्रबल दावेदार नजर आते हैं।

कांग्रेस समय के साथ खुद को बदलने को तैयार

विपक्ष एकजुटता की महाबैठक की एक महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि कांग्रेस ने अपने काे समय के हिसाब से बदलने की बात कह दी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कई राज्यों का नाम लेकर यह बात कही कि अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नीतियां होंगी। यह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सवाल का जवाब था। ममता को इस बात पर आपत्ति रही है कि कांग्रेस बंगाल में सीपीएम के साथ नहीं जाए। महाबैठक में ममता बनर्जी की सहजता भी नोटिस में रखी गयी।

भाजपा मुक्त भारत पर बनी सहमति

महाबैठक में संख्या के लिहाज से नेताओं की संख्या बहुत बड़ी नहीं थी, पर यह तो दिखा ही कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक का प्रतिनिधित्व है। सभी ने यह सहजता से स्वीकार किया यह आगाज है। बहुत लंबे-लंबे भाषण तो नहीं हुए पर यह वादा जरूर लिया और दिया गया कि भाजपा मुक्त भारत मे उनकी सहभागिता रहेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने यह अलर्ट भी किया कि सभी के एकजुट हुए बगैर भाजपा से नहीं लड़ा जा सकता।

महाबैठक मे यह कोशिश भी रही कि अभी आहिस्ता-आहिस्ता इश्यू को स्थापित किया जाए। बाद में जो तय करना होगा उसे किया जाएगा। पूर्व में इस बात को लेकर कयास था कि नीतीश कुमार को इस विपक्षी एकजुटता का संयोजक बनाया जाएगा पर इस पर कोई घोषणा नहीं हुई।

लालू ने विपक्ष की ताकत में फूंकी जान

वैसे सभी नेताओं ने इस महाबैठक के लिए नीतीश कुमार के प्रति आभार जताया। एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि विपक्ष को फिर से लालू प्रसाद की ताकत मिल गयी है। वह महाबैठक में आए और खुद काे पूरी तरह से फिट बताया। आगे का लड़ाई में ताकत देने की बात की।

अरविंद केजरीवाल को लेकर बैठक के आखिर में थोड़ी चर्चा जरूर रही। हालांकि, शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने मामले को संभाल लिया। कांग्रेस ने भी ऐसा नहीं कहा कि अध्यादेश वाले मसले पर आप के साथ नहीं है। महाबैठक का अगला पड़ाव पटना की तपिश से दूर शिमला की ठंड है। ऐसे में यह देखना होगा कि विपक्षी एकजुटता की ट्रेन के लिए वहां क्या तय होता है।


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