पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा में एक लाख लोगों का राज्य में पलायन हुआ है। बड़ी तादात में हिंदू आबादी को नए ठिकानों की तलाश में अपना घरबार छोड़ कर भागना पड़ा है। कोरोना महामारी, बंगाल सरकार की तानाशाही और पुलिस प्रशासन की बेरुखी के चलते इन्हें कहीं इंसाफ नहीं मिला और ये पलायन को मजबूर हुए।
अब इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। इसमें दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद होने वाली हिंसा के कारण लोगों का सामूहिक पलायन और आंतरिक विस्थापन हुआ है। याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस और 'राज्य प्रायोजित गुंडे' आपस में मिले हुए हैं। यहीं वजह है कि पुलिस मामलों की जांच नहीं कर रही और उन लोगों को सुरक्षा देने में विफल रही, जो जान का खतरा महसूस कर रहे हैं।
क्या कहा गया है याचिका में
याचिका में कहा गया कि हिंसा के भय से लोग विस्थापित हो रहे हैं या पलायन करने को मजबूर हैं। वे पश्चिम बंगाल के भीतर और बाहर आश्रय गृहों या शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। याचिका में एक लाख से अधिक लोगों के विस्थापन का दावा किया गया है। विस्थापित आबादी हिंदुओं की है।
राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में लोगों का पलायन एक गंभीर मानवीय मुद्दा है। यह लोगों के अस्तित्व का मामला है। इन लोगों को दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकार का साफतौर पर उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया कि कि केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद-355 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए राज्य को आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए। राज्य में राजनीतिक हिंसा, टारगेटेड हत्या और बलात्कार आदि की घटनाओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की गई है। विस्थापितों के लिए शिविर, भोजन, दवाओं आदि की तत्काल व्यवस्था पर भी जोर दिया गया है।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते सुनवाई करेगा।
टीम स्टेट टुडे
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