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राजपथ नहीं तो कहां हुई थी 26 जनवरी पर पहली परेड ? कैसी होगी कोरोनाकाल 2021 की गणतंत्र दिवस परेड !


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हर साल 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर भव्य परेड का नजारा देखते ही बनता है। कम से कम पिछली दो पीढ़ियों को सच तो यही है। राजपथ पर सेना की ताकत, सैन्य टुकड़ियों की शानदार परेड फिर अलग अलग राज्यों और विभागों की सुन्दर झांकियां, बच्चों का रंगारंग कार्यक्रम और आखिर में आसमान में गर्जना करते वायु सेना के जहाजों को हम हमेशा से देखते आ रहे हैं। यहीं वर्तमान में 26 जनवरी की परंपरा बन चुकी है। लेकिन इस परंपरा से पहले का सच क्या आपको पता है। क्या आपको पता है गणतंत्र दिवस की पहली परेड कहां हुई थी। संभव है आप कहें राजपथ।


लेकिन हक़ीक़त इससे बिल्कुल जुदा है।


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इर्विन स्टेडियम में हुई थी पहली परेड


दिल्ली में 26 जनवरी, 1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम यानी आज का नेशनल स्टेडियम में हुई थी। 1950 में इर्विन स्टेडियम के चारों तरफ चहारदीवारी न होने के कारण उसके पीछे पुराना किला साफ नज़र आता था।


साल 1950-1954 के बीच दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समारोह, कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे कैंप, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित हुआ।


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राजपथ पर साल 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड शुरू हुई।


यह सिलसिला आज तक बना हुआ है। अब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने वाली यह परेड रायसीना हिल से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला पर ख़त्म होती है।


आज़ादी के आंदोलन से लेकर देश में संविधान लागू होने तक, 26 जनवरी की तारीख़ का अपना महत्व रहा है।

इसी दिन, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा (डोमीनियन स्टेटस) नहीं दिया, तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा।


ब्रिटिश सरकार के इस ओर ध्यान न देने की सूरत में कांग्रेस ने 31 दिसंबर, 1929 की आधी रात को भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा करते हुए सक्रिय आंदोलन शुरू किया।

कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया। इतना ही नहीं, हर साल 26 जनवरी के दिन रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वराज दिवस मनाने का भी निर्णय लिया गया।


इस तरह, आजादी मिलने से पहले ही 26 जनवरी, अनौपचारिक रूप से देश का स्वतंत्रता दिवस बन गया था।


यही कारण था कि कांग्रेस उस दिन से 1947 में आज़ादी मिलने तक, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाती रही।


साल 1950 में देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी बृहस्पतिवार के दिन सुबह दस बजकर अठारह मिनट पर भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया।

फिर इसके छह मिनट के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई।


तब के गवर्मेंट हाउस और आज के राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में शपथ लेने के बाद राजेंद्र बाबू को साढ़े दस बजे तोपों की सलामी दी गई।


तोपों की सलामी की यह परंपरा 70 के दशक से कायम रही है। आज भी यह परंपरा बदस्तूर कायम है।

26 जनवरी 1950 में राष्ट्रपति का कारवां दोपहर बाद ढाई बजे गवर्मेंट हाउस से इर्विन स्टेडियम की तरफ रवाना हुआ।


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यह कारवां कनॉट प्लेस और उसके करीबी इलाकों का चक्कर लगाते हुए करीब पौने चार बजे सलामी मंच पर पहुंचा। तब राजेंद्र बाबू पैंतीस साल पुरानी पर विशेष रूप से सजी बग्घी में सवार हुए, जिसे छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों ने खींचा।


इर्विन स्टेडियम में हुई मुख्य गणतंत्र परेड को देखने के लिए 15 हज़ार लोग पहुंचे थे।

आधुनिक गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति ने इर्विन स्टेडियम में तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली।

उस समय हुई परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था। इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे। आज भी यह ऐतिहासिक परंपरा बनी हुई है।


पहले गणतंत्र के मुख्य अतिथि कौन थे


पहले गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे।


इतना ही नहीं, इस दिन पहली बार राष्ट्रीय अवकाश घोषित हुआ। देशवासियों की अधिक भागीदारी के लिए आगे चलकर साल 1951 से गणतंत्र दिवस समारोह किंग्स-वे यानी (आज का राजपथ) पर होने लगा।


"सैनिक समाचार" पत्रिका के पुराने अंकों के अनुसार, 1951 के गणतंत्र दिवस समारोह में चार वीरों को पहली बार उनके अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च अलंकरण परमवीर चक्र दिए गए थे।


उस साल से समारोह सुबह होना शुरू हुआ और उस साल परेड गोल डाकखाना पर ख़त्म हुई।


साल 1952 से बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू हुआ। इसका एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था। सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'अबाइड विद मी' की धुन बजाई और तभी से हर साल यही धुन बजती है।


साल 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोक नृत्य और आतिशबाजी को शामिल किया गया. तब इस अवसर पर रामलीला मैदान में आतिशबाजी भी हुई थी।


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उसी साल त्रिपुरा, असम और नेफा यानी आज के अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी समाज के नागरिकों ने गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया।


साल 1955 में दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में गणतंत्र दिवस पर मुशायरे की परंपरा शुरू हुई। तब मुशायरा रात दस बजे शुरू होता था।


उसके बाद के साल में हुए 14 भाषाओं के कवि सम्मेलन का पहली बार रेडियो से प्रसारण हुआ।


साल 1956 में पहली बार पांच सजे-धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित हुए।


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विमानों के शोर से हाथियों के बिदकने की आशंका को ध्यान में रखते हुए सेना की टुकड़ियों के गुजरने और लोक नर्तकों की टोली आने के बीच के समय में हाथियों को लाया गया। तब हाथियों पर शहनाई वादक बैठे थे।


साल 1958 से राजधानी की सरकारी इमारतों पर बिजली से रोशनी करने की शुरूआत हुई।


साल 1959 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में दर्शकों पर वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से फूल बरसाए गए।


साल 1960 में परेड में पहली बार बहादुर बच्चों को हाथी के हौदे पर बैठाकर लाया गया जबकि बहादुर बच्चों को सम्मानित करने की शुरुआत हो चुकी थी।


1960 में राजधानी में लगभग 20 लाख लोगों ने गणतंत्र दिवस समारोह देखा, जिसमें से पांच लाख लोग राजपथ पर ही जमा हुए थे।


गणतंत्र दिवस परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह देखने के लिए टिकटों की बिक्री साल 1962 में शुरू हुई।


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उस साल तक गणतंत्र दिवस परेड की लंबाई छह मील हो गई थी यानी जब परेड की पहली टुकड़ी लाल किला पहुंच गई तब आखिरी टुकड़ी इंडिया गेट पर ही थी। उसी साल भारत पर चीनी हमले से अगले साल परेड का आकार छोटा कर दिया गया।


साल 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पहली बार इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। तब से यह परंपरा आज तक जारी है।


2021 की परेड में क्या नहीं दिखेगा राजपथ पर


कोरोना महामारी के कारण गणतंत्र दिवस परेड में काफ़ी बदलाव किए गए हैं।


26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह में राजपथ पर होने वाली परेड में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाला मोटरसाइकिल स्टंट इस साल देखने को नहीं मिलेगा।


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इस साल कोरोना महामारी के कारण सोशल डिस्टेंसिंग बरक़रार रखने के लिए मोटरसाइकिल स्टंट शामिल नहीं किया गया है।


पहली बार परेड में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ की झांकी शामिल होगी।


साल 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटकर दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए थे। लद्दाख़ की झांकी में थिक्से मठ के अलावा भारतीय खगोलीय वेधशाला को भी दिखाया जाएगा।


हर साल राजपथ पर 1.25 लाख लोग इस परेड को देखने आते थे जिसकी संख्या घटाकर 25,000 कर दी गई है।


परेड में शामिल होने वाले बहादुर बच्चों के मार्च को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसके साथ ही मार्च करने वाले सैन्य दस्तों की संख्या भी 144 से घटाकर 96 कर दी गई है।


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इस बार कुल 32 झांकियां होंगी जिनमें से 17 विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की, नौ मंत्रालयों की और 6 सुरक्षाबलों की होंगी। ये सभी झाकियां जो पहले लाल क़िले तक जाती थीं, इस बार वे सिर्फ़ नैशनल स्टेडियम तक ही जाएंगी।


उत्तर प्रदेश की झांकी में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का मॉडल होगा। 55 साल के इतिहास में पहली बार परेड के दौरान कोई मुख्य अतिथि भी नहीं होगा।


इस वर्ष ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया था। लेकिन ब्रिटेन से ही कोरोना का नया स्टेन दुनिया भर में पहुंचा। लिहाजा ब्रिटेन के अनुरोध पर भारत सरकार ने मुख्य अतिथि के भारत आगमन कार्यक्रम के स्थगन प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी।


टीम स्टेट टुडे


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