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“हरेरी”का मंगल गीत गाकर महिलाओं ने की कालानमक धान की रोपाई


सिद्धार्थ नगर, 18 अगस्त 2023 : उत्तर प्रदेश में कालानमक धान की कलम की रोपाई के साथ ,रोपाई का समापन हुआ जिसे यहां की भाषा में “हरेरी”कहा जाता है।इस खुशी के मौके पर “हरेरी”की मंगल गीत गाती हुई,कलश लेकर रोपाई करने वाली महिलायें हमारे घर आयी जिसमें मेरे छोटे भाई की पत्नी भी सम्मिलित थीं।यहाँ धान की रोपाई काफ़ी श्रमसाध्य काम है। “बुद्धाराइस”के नाम से विश्वविख्यात कालानमक चावल की रोपाई सबसे बाद में की जाती है। पहले धान की नर्सरी के लिए कालानमक के बीज जून माह में डाले जाते है। 25 दिन बाद इसकी पहली रोपाई कर दी जाती है। अगस्त तक यह रोपाई काफ़ी विकसित हो जाती है। उसे पुनः उखाड़ कर एक- एक पौध की दूसरी रोपाई की जाती है, जिसे हम “ कलम” कहते है। कलम लगाने से पौधे स्वस्थ और धान की बालियाँ बड़ी निकलती है, जिससे पैदावार बढ़ जाती है।


पारंपरिक बुद्धकाल के कालानमक की पौध दो मीटर से अधिक लंबी हो जाती है , जिसके कारण बालिया लगने पर पौधों को नीचे गिरने की संभावना रहती है। कलम करते समय पौधों की बढ़ी हुई पत्तियाँ काट दी जाती है, जिससे पौध की लंबी बढ़त को काफ़ी नियंत्रित किया जाता है। कालानमक धान तैयार होनें में काफ़ी समय लेता है , इसे पानी की काफ़ी आवश्यकता होती है। इसको निचली जगहों विशेषकर नाले के पास के खेतों में रोपित किया जाता है। देर से रोपित करने का यह भी कारण है कि अगस्त के अंतिम सप्ताह में बाढ़ की संभावना भी कम हो जाती है। कलम किया हुवा पौधा काफ़ी मज़बूत होता है , जिसके कारण हल्की बाढ़ का कोई असर नहीं होता। नाले के किनारे होने के कारण इसकी नवम्बर में कटाई के समय तक पानी की कमी भी नहीं रहती है।
धन का “कलम” करने की विधि हमारे पुरखों ने अपने अनुभव से आविष्कार किया, जिसे कृषि वैज्ञानिक भी सराहना करते हैं।

रोपाई के समापन पर “हरेरी” के दिन सामर्थ्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाया जाता है। पहले बैलों को एक- एक थाली में भोजन सजाकर खिलाया जाता था और उनके पैर छुए जाते थे। रोपाई के अंतिम दिन उन्हें तालाब में अच्छी तरह नहलाया जाता था। बरसात में जुताई के कारण बैल थक जाते थे, उन्हें रबी के फसल की जुताई तक आराम कराया जाता था। घर के लोग उनके पैरों की मालिश भी करते थे। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। अब यांत्रिक खेती होनें के कारण बैल तो नहीं रहे परंतु किसान पुत्र होनें के कारण “हरेरी” के दिन मुझे अपने बैलों की याद आ जाती है। हमारी संस्कृति मानव के अतिरिक्त पशु- पक्षियों का भी पूरा सम्मान करती है,यह हमारे सनाततन धर्म की एक मूल्यवान धरोहर है, जिसको मैं सभी को साझा करता हूँ।

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