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चीन और संघ ने कहा: इस्लामिस्टों देशभक्त बनों !!


के. विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार): कम्युनिस्ट चीन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने राष्ट्रों के मुसलमानों से कहा कि वे राष्ट्रभक्त बनें। चीन के शीर्ष नेता और मजहबी मामलों के प्रमुख श्री वांग यांग पोलित ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य है। उन्होंने चीन के मुसलमानों को देशप्रेमी बनने को कहा। वे पूर्व उपप्रधानमंत्री भी रहे। हालांकि चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा उइगर (शिनजियांग प्रांत) के मुसलमानों पर किये जा रहे अत्याचारों पर पाकिस्तान खामोश ही है। अरब देश भी। चीन के हमदर्द और वामपंथी चैन्नई दैनिक ‘‘दि हिन्दू” के आज (22 सितम्बर 2022, पृष्ठ 13, चार कालम की) एक खबर निजी संवाददाता ने बीजिंग से भेजी है। इसमें तीव्र आलोचना है उइगर के मुसलमानों की। वांग ने मुस्लिम चीनियों को राय दी है कि वे राष्ट्रवाद का परचम लहरायें। सही राजनीतिक दिशा पर अग्रसर हो। कम्युनिस्ट पार्टी तथा मार्क्सवादी सरकार की मदद करें। समाजवादी चीन के निर्माण में साम्यवाद तथा राष्ट्रवाद की पुष्टि करायें।

गत 31 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार रपट में कई सदस्य राष्ट्रों ने शी जिनपिंग सरकार पर मुसलमानों पर दमन करने का इल्जाम लगाया गया है। इस मानवाधिकार समिति की रपट को रद्दी बताते वांग यांग ने कहा कि चीन में इस्लाम का उपयोग साम्यवादी चिंतन के प्रसार-पालन हेतु होना चाहिये। चीन पूर्णतया अनीश्वरवादी है। अतः देश में मूलभूत साम्यवादी फलसफे को ही प्रश्रय मिलेगा। वांग यांग की ऐसी चेतावनी से भय बढ़ता जा रहा है कि उइगर प्रांत पर कठोर-शासन अब ज्यादा मजबूत बनाया जायेगा।

अचरज यह है कि इतना जानते सब हुए भी सभी इस्लामी देश, पड़ोसी तालिबानी अफगानिस्तान को मिलाकर, बिरादरों को कुछ भी राहत नहीं पहुंचा रहा है। चीनी मुस्लमानों से कहा गया कि सही राजनीतिक दिशा में चलें। वांग संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार समिति की रपट को अवैध तथा विश्वसनीयता के लिहाज से शून्य बताया। इस वैश्विक रपट में चीन पर मुस्लमानों के नरसंहार की, प्रशिक्षण शिविर में यातना देने का इल्जाम लगाया है। जबरन नसबंदी और पुनर्प्रशिक्षण के नाम पर मजहब-विरोधी अभियान चलाया है। रपट के अनुसार आखिर कम्युनिस्ट चीन के केन्द्रीय सरकार से इन उइगर मुसलमानों ने मांगा क्या था? बस वे अधिकार जिनका भारत में हर मुसलमान दशकों से निर्बाध रूप से उपभोग कर रहा है।

उइगर के लोग चाहते है उन्हे जुम्मे की नमाज मस्जिदों मे अदा करने दी जाय, वजू करने हेतु नल का पानी वहां पर मिले। हज यात्रियों की संख्या में की गई कटौती खत्म हो। पचास वर्ष से कम आयु वालों को हज पर जाने की इजाजत वापस दी जाय, अठारह वर्ष से कम उम्रवालों को मस्जिद प्रवेश की अनुमति दी जाय। अट्ठारह वर्ष से कम उम्रवालों को मस्जिद प्रवेश की अनुमति दी जाय। उनको मातृभाषा तुर्की को सीखने पर लगी पाबन्दी हटा ली जाय और उनपर मण्डारिन भाषा न लादी जाय।

उइगर साहित्य को अरबी लिपि में ही रहने दिया जाय, मजहबी किताबों की बिक्री पर से बन्दी उठा ली जाय, पवित्र कुरान का सरकारी संस्करण न थोपा जाय, मदरसे के सील खोल दिये जाय, पुनर्शिक्षित करने के नाम पर बन्दी शिविरों मे अकीदतमन्दों को जबरन नास्तिक न बनाया जाय। सरकारी दफ्तरों मे नमाज पढ़ने के लिए अल्पावकाश का प्रावधान किया जाय। उनकी रिहाइशी बस्तियों मे घेंटी का गोश्त न बेचा जाय। उनके अपने रोजगार में आयातीत बहुसंख्यक हान वर्ण के चीनीजन को वरीयता न दी जाय। उनकी ऐतिहासिक राजधानी काशगर को विश्व धरोहर करार दिया जाये। ऐतिहासिक इमारतें ध्वस्त कर आवासीय कालोनी और शॉपिंग माल न बनाये जाय।

मिलता जुलता विचार व्यक्त किया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवतजी ने। इसी दैनिक ‘‘दि हिन्दू” के प्रथम पृष्ठ पर आज रपट है। संवाददाता की पांच-कालम रपट में संघ प्रमुख के भारतीय मुस्लिम रहनुमाओं से पूछा कि ‘‘काफिर”, जिहाद, गोहत्या आदि मसलों पर अपनी अवधारणाओं को सुधारें। भागवतजी ने मुस्लिम पुरोधाओं तथा विचारकों से सोचकर स्पष्ट करने की मांग की और कहा कि ऐसी विवादास्पद बातों पर संयम बरतंे। इस्लामी नेताओं ने कहा: भारत में भय का माहौल निर्मित हो रहा है। अतः कई मुस्लिम बौद्धिकजन संघ प्रमुख से चर्चा करने मिले थे। उनसे भेंट करनेवालों में नजीब जंग, एसवाई कुरैशी, जनरल जमीरूद्दीन शाह, संपादक शाहिद सिद्दीकी, सईद शेरवानी आये थे। सभी ने कहा कि वे सब गौहत्या के विरोधी है। भागवत ने उन सबको याद दिलाया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान ने परिसर में गोमांस पर पाबंदी लगा दी थी।

संघ मुखिया ने पूछा कि हिन्दू काफिर क्यों कहलायेगा। वह तो ईश्वर में आस्था रखता है। इन बौद्धिकजनों ने दुख व्यक्त किया कि उन्हें देशद्रोही कहा जाता है। इन मुस्लिम नेताओं द्वारा कहा गया था कि संघ प्रमुख से इस्लामी पुरोधा मिल्लत के प्रतिनिधि के रूप में नकि वरन चैतन्य नागरिक के रूप में मिले हैं। उनकी राय में देश में हाल ही की घटनाओं ने तनाव का पारा चढ़ा दिया। वे पुल बनाना चाहते है। भाईचारे के पक्षधर हैं।

फिलहाल इस एशिया महाद्वीप के इन दोनों वरिष्ठ पुरोधाओं (भागवत और वांग यांग) की बात में मुसलमानों के प्रति कुछ बुनियादी ख्याल उपजा है। देश के प्रति उनके कर्तव्यों पर। मसला इस्लामी अनीश्वरवादिता का हैं। कुछ आभास भी होता है कि चीन और भारत में इस्लामिस्टों को स्वयं की स्वीकार्यता बढ़ानी होगी। एक विश्लेषण बल्कि रोग का निदान था जो सदियों पूर्व बताया गया था। ब्रिटिश साहित्यकार जान फ्लेचर ने कहा था कि असहिष्णुता तथा अत्याचार का जनक कट्टरवाद है। और उन्माद तथा अंधविश्वास उसकी संतान होता है। तो चीन और भारत के मुसलमानों को इतना ज्ञान अवश्य पाना होगा। देशहित के खातिर।

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