भारत की आत्मा एवं शक्ति - Om Prakash Mishra
- statetodaytv
- Aug 11
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भारत की आत्मा एवं शक्ति - ओम प्रकाश मिश्र
भारत राष्ट्र कि संकल्पना का उद्भव, महाकवि कालिदास के गं्रथ ’’कुमार संभव’’ के प्रथम श्लोक से ही स्पष्ट करने का आरम्भ हुआ हैं।
इसका उल्लेख हैं कि उत्तर दिशा में हिमालय नाम के पर्वतराज है।
’’अस्त्य उत्ररस्या दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।’’
भारत के भौगोलिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से भारत अत्यन्त प्राचीन है।
स्वामी विवेकानंद ने भारत के भविष्य पर मद्रास (चेन्नेई) में व्याख्यान दिया था, उसमें कहा गया है कि ’’यह वही भारत है, जहाँ के आध्यात्मिक प्रवाह का स्थूल प्रतिरूप उसके बहने वाले समुद्राकार नद है,’’ जहाँ चिरन्तन हिमालय श्रेणी बद्ध उठा हुआ अपने हिमशिखरो द्वारा मानों स्वर्गराज में रहस्यों की ओर निहार रहा हैं। यह वही भारत है जिसकी भूमि पर संसार के सर्वश्रेष्ठ ऋषियांे के चरणरज पड़ चुकी है। यही सबसे पहले मनुष्य तथा अन्तर्जगत के रहस्योद्घाटन कि जिज्ञासाओं के अंकुर उगे थे।
यह वही भारत है, जो शताब्दियों के आघात, विदेशियों के शत-शत आक्रमण और सैकड़ो आचार व्यवहारों के विपर्यय सहकर भी अक्षय बना हुआ है।
भारत की आत्मा में, अनेकता में एकता का मूल है। हमने जिन मनीषियों की पवित्र भूमि में जन्म लिया है। जिसमें समस्त मानवता को संदेश दिया गया हैं, ’अथर्ववेद’ के पृथ्वी सूक्त माता-भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः ’’अर्थात भूमि हमारी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ’’ की रचना की, उसी दिन और उसी क्षण भारत की देवभूमि पर एक राष्ट्र ने रूपाकार ग्रहण किया। हमारी मातृभूमि की सुगन्ध विशिष्ट प्रकार की है। पृथ्वी से उत्पन्न इस गंध की राष्ट्रीय विशेषता है। जिनका जन्म भारतीय भूमि पर हुआ है, उनमें यह भारत की महक बसी हुई। वृक्ष, वनस्पति, पशु, पक्षी, मनुष्य और संस्थायें, भाषा और विचार सभी पर यह नियम लागू है। सभी अपनी पवित्र भूमि की सुगन्ध से सुवासित है।
भारतीय संस्कृति अत्यन्त प्राचीन हैं। यहाँ तक कि, इसका उद्गम कब से हुआ है, यह बता पाना बहुन कठिन है। यह तो निश्चित है कि भारतीय संस्कृति
हजारो वर्ष पुरानी है और जो संस्कार भारत की धरा पर विकसित हुये है, उसका उद्गम अत्यन्त प्राचीन है।
वस्तुतः हजारों वर्षों पूर्व वे दों, पुराणों, उपनिषदों व अन्य ग्रन्थों के माध्यम से अनेक उदाहरण प्राप्त होते है, जिनसे स्पष्ट होेता है कि भारत की आत्मा समस्त चराचर जीवों, वृक्षों, वनस्पतियों, पशु-पक्षी, चेतना-अचेतन सभी में व्याप्त है, यही भारतीय अस्मिता, संस्कृति पर आधारित है।
सृष्टि की रचना अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश आदि पंच तत्वों से हुई है, और भारत की आत्मा का एकात्म है। भारत की संस्कृति अस्मिता और आत्मा के विचार का आरम्भ हमारी चिति, हमारी पीढ़ियों से तारतम्य से पूर्णतः सुरक्षित है। हम सभी वनस्पतियों, वृक्षों, पशु-पक्षियों, नदियों, सरोवरों, पर्वतों, समुद्र में देवत्व के दर्शन करते है।
भारतीय संस्कृति, इसी को समाहित करते हुयें, भारत की आत्मा व शक्ति को जागृत करती है। हमारा राष्ट्र जीवन, समाज में नानाविध भेद, सम्प्रदाय गुण-अवमुण रहने के बाद भी, एक सूत्र प्राचीन राष्ट्र है। हमारा राष्ट्र जीवन एक सूत्र की शक्ति है। हमारे हृदय के सूक्ष्म संस्कारोें के समीकरण, हमारे राष्ट्र जीवन का प्रेरणा देने वाली जीवन अस्मिता-शक्ति की संस्कृति ही है। हमारे देश में अनादि काल से समाज जीवन रहा है, जिसमें हमारे महान व्यक्तियों के विचार-गुण तत्व-समाज रचना के सिद्धान्त निर्मित करते है।
हमारे राष्ट्र जीवन में, राजकीय सत्ता का आधार नही रहा है। राजकीय सत्ताधारी हमारे समाज के कभी आदर्श नहीं है। हमारे राष्ट्र-जीवन में कभी भी सत्ताधारियों की स्वीकृति नही रही है।
’’सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्श लेकर समग्र भावना से श्रेष्ठ, सम्पन्न, एकात्मकता से युक्त समाज की स्थापना होती है। संत महात्मा ही हमारे आदर्श रहे हैं।
हमारे यहाँ धर्मसत्ता ही केन्द्र में रही। राजा तो, उस उच्चतर नैतिक शिक्षा का उत्कृष्ट अनुयायी मात्र था। इतिहास से सिद्ध होता है कि, अनेको बार विपरीत परिस्थितियों में व आक्रमण शक्तियों के कारण अनेक राजसत्ताओ ने धूल चाटी। परन्तु धर्मसत्ता हमको छिन्न भिन्न होने से बचाती रही है।
हमारे राष्ट्र के संस्कार इतना प्रखर था कि समस्त प्रजाजन परस्पर रक्षण/संरक्षण करने में समर्थ थे। हमारे यहाँ राज्य या सत्ता का प्राधान्य न होकर समस्त प्रजाजन धर्म के द्वारा एक दूसरे की रक्षा करती थी। समस्त चर-अचर, सचेतन-अचेतन अपने अस्तित्व के लिए आस्था से जुड़ा था। इस दृष्टि से बताया जाता है कि जल का अपना स्वभाव व धर्म, अग्नि का अपना रूप, व पवन की अपनी शक्ति होती है। इन सबके मिश्रण से, तादात्म्य के द्वारा राष्ट्र की आत्मा व शक्ति का निर्माण, राष्ट्र के लिए ही होता है। समस्त संसार के लिए, शान्ति व मानवता के विकास के लिए मनुष्य संस्कार विकसित करता हैं, यह भारत की आत्मा है।
हमारी संस्कृति, सभ्यता और जीवन पद्धति, का एंेसा आधार है, जिसमें राष्ट्र अनेकों संकटों से निकलने या अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखने में समर्थ रहा है। हमारी जीवन-पद्धति, विश्व के कल्याण के साथ ही अपने राष्ट्र, जीवन समाज, अपने परिवार और व्यक्तिगत आकांक्षाओं तक की अभिवृद्धि की संकल्पना है। उसमें ये सारी शक्तियाँ एकत्व को प्राप्त होती है। हमारे मानवतावाद में व्यक्ति, समाज, राष्ट्र व अखिल विश्व के कल्याण के लक्ष्य में कोई भी भ्रम नहीं होता है।
हम व्यष्टि व समष्टि के लिए सत्यम, शिवम व सुन्दरम की संकल्पना के लक्ष्य को प्राप्त करतें है। आज हमारी जीवन पद्धति की अखिल विश्व आवश्यकता है।
आज संसार में जो विभाजन, युद्धों, तनाव का वातावरण हैं उसमें हमारें पूर्वजों के संस्कार से जनित विचार सरणि ही उचित उत्तर है। सारे विश्व को हमारी अस्मिता जीवन-पद्धति एवं विचार की परम्परा की महती आवश्यकता हैं हम संसार को एक अच्छा मार्ग दिखा सकते है।
भारत की अस्मिता देशातीत है, कालातीत है। कैलास मानसरोवर, सिन्धु, तक्षशिला, मोहन जोदड़ो भारतीय अस्मिता के ही अंग है। हमारी संस्कृति, आत्मा व अस्मिता सीमाओं में नहीं बाँधी जा सकती हैं भारतीयता की पहचान, भारत की संस्कृति ही है। हमारी अस्मिता, गौरवशाली परम्पराओं, आध्यात्मिक ज्ञान, मान्यताओं व मूल्यों में निहित हैं।
आज का यूनान अपने को अरस्तु तथा प्लेटो का वंशज कहकर गौरवन्वित नहीं होता। आज का मिस्त्र, पिरामिड व ममी बनाने वाले पूर्वजों से अपने को नहीं जोड़ता। एशिया के कई देश अपने अतीत को विस्मृत कर चुके हैं।
हमारे मुनियों व ऋषियों के अनुसार हम अमृत के पुत्र हैं, हम कभी समाप्त नहीं होंगे। यहाँ पर वेदों व प्राचीन ग्रन्थों का अमृत है।
वास्कोडिगामा का प्रकरण हमारी आत्मा को दर्शाता है। वास्कोडिगामा को भारतीय नाविक दूर से दिख रहे हैं, उसने अपने शस्त्र संभाल लिए कि भारतीय नाविक आक्रमण करेंगे। हमारें संस्कारों से भरे, भारतीय नाविकों ने देखा कोई नई चीज/नया भाई आ रहा है। हमारे यहाँ ’’अतिथि देवो भव’’ का भाव है। वास्कोडिगामा हमारे नाविकों पर आक्रमण करने लगा।
वास्कोडिगामा सोच रहा था कि ये लोग लड़ाई करेंगें। किन्तु भारतीय संस्कृति मित्रभाव की है। जिससे हमारी सोच स्पष्ट होती है।
विश्व में जितने भी समुदाय हैं, जितने प्रकार के सम्प्रदाय हैं, उससे अधिक भारत में है। जो भारत में हैं, वह पूरे विश्व को दिशा दिखा सकता है। हम अनेकों शताब्दियों से, हजारों वर्षों से, एक आत्मा-एक राष्ट्र है। भारत की निरन्तरता का सूत्र हमारी चिति से जुड़ा हुआ है। हमारी संस्कृति की परम्परा का सूत्र टूटा नहीं हैं। भारत में ’’चरैवेति-चरैवेति’’ है, जो हमारी गतिशीलता का परिचायक है।

अस्मिता, हमारी संस्कृति की मूल प्रवृत्ति है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में हमारी अस्मिता की समुचित पहचान निहित है। यह हमारी समग्र सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी संस्कृति के मूल तत्व में निहित है, जो कि हजारों वर्षों से सुरक्षित है। अस्तु भारतीय अस्मिता का भाव यह है कि कुछ ऐसे मूल तत्व हैं जो भारत राष्ट्र के सन्दर्भ में वैसे ही हैं, जैसे शरीर में आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति में हमारी अस्मिता स्थायी मूल तत्व है।
भारत में राजा या शासक का न्याय नहीं वरन् समाज-व्यवस्था का न्याय था। यह धर्म आधारित व्यवस्था, समाज द्वारा अनुमोदित थी। न पहले कोई शासक था, न दण्ड ही शासक का था, समस्त प्रजा धर्म आधारित समाज से इसकी व्यवस्था करती थी।
राष्ट्रीय संगठन बंधुता के विषय में ऋग्वेद के दशम् मण्डल में उल्लेख है कि सब लाग एक मत होकर ज्ञान सम्पादन करते हुये राष्ट्र, मनुष्य समाज के लिए जागृत होकर ज्ञान प्राप्त करें।
पृथ्वी का ऐसा भूभाग जिस पर कोई अन्य जाति या प्रजा पुत्र रूप में निवास कर रही हो, वह सम्बन्ध सामान्य जन व विशिष्ट जन सभी के लिए माता-पुत्र के सम्बन्ध जैसा ही होता है।
भारत में कभी भी भूमि, जन और संस्कृति को एक दूसरे से भिन्न नहीं किया गया, अपितु उसकी एकात्मता की अनुभूति के द्वारा राष्ट्र का साक्षात्कार किया।
भारत की आत्मा को समझने के लिए उसे राजनीति या अर्थनीति की दृष्टि से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखना होगा। विश्व को हम सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्तव्य प्रधान जीवन की भावना की शिक्षा दे सकते है। हमारे यहाँ अधिकार के स्थान पर कर्तव्य एवं संकुचित दृष्टिकोण के बजाय विशाल हृदय व एकात्मता है।
भारत राष्ट्र की चिति, राष्ट्र की मूल प्रवृत्ति है। वह राष्ट्र का विवेक भी है। राष्ट्र की आत्मा भी वही है। वह उचित व अनुचित का निर्णय कराती है। हमारे समाज को ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा से इसका प्रस्फुटन होता है।
भारत की राष्ट्र चेतना समन्वयक, समग्र एवं एकात्मवादी हैं यह पूरे मानव समाज एवं सम्पूर्ण सृष्टि का विचार करती है। विविधता में एकता या एकता के विभिन्न रूपों में प्रकट एकात्म चेतना ही भारत की संस्कृति का आधार है। यही भारत की आत्मा है।
राष्ट्र-चिन्तन में सबसे महत्वपूर्ण तत्व राष्ट्र की आत्मा है। जैसे शरीर से प्राण निकल जायें तो भी आत्मा रहती हें आत्मा की शक्ति, राष्ट्र का संबल होती है। भारत राष्ट्र इस अर्थ में अद्वितीय है।
ओम प्रकाश मिश्र
66, इरवो कालोनी, झलवा
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
पूर्व मुख्य कार्मिक अधिकारी
उत्तर मध्य रेलवे, प्रयागराज
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