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कपड़ों से पहचान–कौन हैं दगांई?

Updated: Feb 1, 2020

शहर शहर हिंसा - नागरिकता कानून



बारुद के ढेर पर बैठा है हर हिंदुस्तानी। कम से कम दिल्ली के जामिया इलाके में हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद तो यही कहा जाएगा। भारत सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन क्या किया देश भर के मुसलमानों और उनके दम पर अपनी सियासत चलाने वालों को मिर्ची लग गई। पेट्रोल बम मारकर सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाई जा रही है। आम लोगों के साथ हिंसा हो रही है उनमें दहशत भरी जा रही है...और ये सब कर कौन रहा है...प्रधानमंत्री ने सही कहा उन्हें कपडों से दुनिया पहचान रही है।


भारत सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन कर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ किया तो देश के तथाकथित सेक्युलर और खास तौर से मुसलमानों की अराजकता सडकों पर दिखाई देने लगी।


जरा सोचिये ये मुसलमान जो हिन्दुस्तान में पैदा हुए, यहीं पले बढ़े , यहीं की खाते हैं जिनकी नागरिकता पर सरकार कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रही वो मुस्लिम देशों के मुस्लिमों के लिए किस कदर आम हिन्दुस्तानी पर टूट पड़े हैं। जो मुसलमान मुस्लिम राष्ट्रों में खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे उनके लिये हिन्दुस्तान के मुसलमानों का ये प्यार देश से गद्दारी नहीं तो और क्या है। कल्पना कीजिए अगर मुस्लिम राष्ट्रों के ऐसे कट्टरपंथी मुसलमान जिनके लिए हिंदुस्तान का मुसलमान मरा जा रहा है अगर भारत में आ जाएं तो क्या स्थिति बनेगी।


हिंसा, बर्बरता और मुस्लिम पहचान



म्यांमार जैसे शांतिप्रिय बौद्ध देश में रोहिंग्याओं ने जो जुल्म ढाए क्या उसे कोई भूल सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं रोहिंग्या बांग्लादेश पारकर भारत की सीमाओं में दाखिल हुए हैं। बांग्लादेश तो मुस्लिम राष्ट्र है खुद को सेक्युलर भी कहता है क्यों नहीं रख लिया रोहिंग्याओं को अपने यहां ! लेकिन क्यों रखे बांग्लादेश रोहिंग्याओं को... भारत में बैठे असद्दुदीन ओवैसी और उसके समर्थकों ने हिन्दुस्तान को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की जो कसम खाई है उसका क्या होगा। घुसपैठ कर भारत में दाखिल हुए रोहिंग्याओं के लिए इतनी हमदर्दी क्यों है भारत के मुसलमानों को। क्या कारण है कि भारत के टुकडे होने पर बने पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम राष्ट्रों के लिए भारत का मुसलमान और उन्हें चाहने वाले सेक्युलर कोई मौका नहीं छोड़ रहे उनसे हमदर्दी दिखाने का। क्या वजह है कि एक राष्ट्रभक्त सरकार के राष्ट्रहित के फैसले ऐसे लोगों को भारत के संविधान के खिलाफ लग रहे हैं।


इस लिहाज से तो हिन्दुस्तान का हर हिंदू, सिख, जैन , पारसी यानी मुसलमानों के अलावा बाकी सब अपना बोरिया बिस्तर बांध लें। क्या कोई बोला था तब जब चार लाख कश्मीरी हिंदुओं को एक रात में घाटी से बेदखल कर दिया गया था। जिंदा सवारियों को ले जा रही डीटीसी की बसों में जब जामिया के छात्रों ने आग लगाई तो क्या ये हिंदुस्तान की एकता और अखंडता को मजबूत किया जा रहा था। इधर दिल्ली के जामिया से हिंसा भडकी तो यूपी के अलीगढ में मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र उनके समर्थन में आगे आकर यूपी का माहौल बिगाड़ने निकल पड़े।


मुस्लिम राष्ट्रों में अल्पसंख्यकों की स्थिति



दिल्ली से लेकर पूर्वोत्तर तक प्रदर्शन करने वाले इन सेक्युलरवादियों से जरा कोई पूछे कि मुस्लिम राष्ट्र अफगानिस्तान में उन्नीस सौ सत्तर में हिंदुओं की आबादी सात लाख सत्तर हजार थी जो दो हजार सत्र में सिर्फ सात हजार रह गई, कहां गया वहां का हिंदू। 1947 में पाकिस्तान की कुल आबादी में 15 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की थीं जो 1998 में 1.6 प्रतिशत रह गई, ऐसा कैसे हो गया। बांग्लादेश में 1951 में कुल आबादी का 22 प्रतिशत हिंदू थे जो दो हजार ग्यारह में 9.5 प्रतिशत रह गए, उन्हें जमीन खा गई या आसमान निगल गया। हकीकत ये है कि इन मुस्लिम राष्ट्रों में या तो हिंदुओं को जबरन धर्मपरिवर्तन पर मजबूर किया गया या उन्हें नर्क से बदतर जीवन देकर मार डाला गया।


तो कहां जाएगा हिंदू !


अगर पहले की भारतीय सरकारों ने हिंदू हितों का ख्याल किया होता तो नागरिकता कानून में संशोधन कर बहुत से हिंदुओं की जान बचाई जा सकती थी। तब ऐसा नहीं हुआ। कल्पना कीजिए कि किसी दिन अगर हिंदुस्तान से हिंदुओं को खदेडा जाने लगे तो दुनिया में वो कौन सी जमीन का टुकडा है जहां उसे पनाह मिलेगी। हकीकत ये है कि ऐसा कोई जमीन का टुकडा या देश नहीं है जहां हिंदू हक से जा सके। दुनिया के ज्यादातर देश या तो मुस्लिम हैं या फिर इसाई। इजराइल में यहूदी हैं तो उसे अपनी रक्षा कैसे करनी पडती है वो बताने की जरुरत नहीं वजह है कि वो चारों तरफ से मुस्लिम राष्ट्रों से घिरा है। कमोबेश यही हाल हिन्दुस्तान का भी है। बांग्लादेश, अफगानिस्तान , पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध अगर कहीं जाना चाहें तो कहां जाएं। विपत्तिकाल में अगर वो भारत ना आएं या उन्हें ना आने दिया जाए तो वो कहां जाएंगे।


मोदी सरकार ने बचाई थी मुसलमानों की जान इराक में



अरे और छोड़िये भारत से जाकर इराक और सीरिया में काम कर रहे उन हजारों मुसलमानों को अगर मोदी सरकार पार्ट वन आईएसआईएस के हमलों से ना बचाती तो उन्हें कौन बचाने आ रहा था। नरेंद्र मोदी के कहने पर तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने उन मुसलमानों की जान बचाई थी और सुरक्षित भारत लाए थे। जनरल वीके सिंह उसी भारतीय फौज के पूर्व जनरल जिस पर कश्मीर में पत्थरबाज पत्थर बरसाते हैं।

अब भारत सरकार मुसलमानों को आईएसआईएस से बचाकर लाए तो ठीक लेकिन अगर इन्ही देशों के अल्पसंख्यक हिंदू भारत आएं तो विरोध।


सेक्युलिरज्म की आड़ में साजिशों का तानाबाना


एनआरसी और कैब का विरोध... ये षडयंत्र है भारत को एक बार फिर मुस्लिम राष्ट्र बनाने का या फिर भारत के कुछ और टुकड़े करने का। जरा सोचिये जिस मुस्लिम लीग ने भारत के दो टुकड़े करा दिए उसी के नाम से हिंदुस्तान में एक दल अपनी राजनीति कर रहा है। उत्तरी केरल को तो लोग अब मिनी अरब कहने लगे हैं। मेरठ के कैराना में हिंदुओं का पलायन किसी से छिपा नहीं है। लगभग हर हाइवे पर बनने वाली मस्जिदें क्या इशारा कर रही हैं। देश के हर शहर, गांव गली कस्बे में पूरा का पूरा मुस्लिम मोहल्ला बना कर हिंदू आबादी के बीच अराजकता फैलाना देश को बारुद के ढेर पर खड़ा करना नहीं तो और क्या है।


हकीकत ये है कि एनआरसी और कैब का विरोध करने वालों के पुरखों ने 1947 में हिंदुस्तान के टुकड़े कराकर वो सब हासिल कर लिया था जो वो चाहते थे। 1947 के बाद का हिंदुस्तान सिर्फ राम, कृष्ण और शिव का हिन्दुस्तान है। ईर, पीर, फकीर ना कभी भारत के थे ना कभी होंगे।


अब जरुरी है कि हिंदुस्तान का हर वो शख्स जो गैर मुस्लिम है इस बात को समझे कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश को किस तरह से और किनसे सुरक्षित करने में दिन रात जुटी है। वर्ना ज्यादा नहीं अगले पन्द्रह बीस साल में भारत में तेजी से बढ रही मुस्लिम आबादी इन्ही पडोसी देशों से अपने भाई बंधुओं को बुलाकर या तो देश के और टुकड़े कराएंगे या फिर गैर मुस्लिमों को काफिर बताकर उनका धर्म परिवर्तन, हत्या, लूट और बलात्कार का बर्बर नंगा नाच करेंगे।


(टीम स्टेट टुडे)



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