
निशा नैन से नवल देखती, कलम कहे कहानी – काल कोरोना ज्यों बीत रहा है, बात बड़ी सयानी

अँधियारों के घिरे हुये हैं,
चहुदिश बादल काले.
घर से निकले मानवता का,
पाठ पढ़ाने वाले.
( 1)
कहीं आदमी बेबस होकर,
बीच सडक पर रोये.
कही सेज पर फूलो वाली,
अमन चैन मन खोये.
टूट गयी कुछ भूखी सांसे,
बंटते रहे निवाले.
घर से निकले मानवता का,
पाठ पढाने वाले.
( 2)
अपने और पराये छूटे,
आशायें सब टूटी.
जादू- टोना चमत्कार की
बातें निकली झूठी.
जाएँ कहाँ सब बंद हो गये,
मस्जिद और शिवाले. घर से निकले मानवता का,
पाठ पढाने वाले.
( 3)
कभी पीठ पर बेबस पत्नी,
कभी टंगे है बच्चे.
सब हालातों के मारे हैं,
लेकिन हैं सब सच्चे.
चलते-चलते पाँव मे इनके,
कितने पड़ गए छाले.
घर से निकले मानवता का,
पाठ पढाने वाले.
( 4)
सेवा में जो लीन यहाँ तुम,
देवरूप में मानों.
श्रद्धा सुमन समर्पित तुमको
धरती के भगवानों.
भूल के अपनी पीड़ा तुमने,
बाँटे यहाँ उजाले.
घर से निकलें मानवता का,
पाठ पढाने वाले.
निशा सिंह 'नवल'