आवा को-रो-ना कर दिहिस कोरन्टीन, अबकी दईं चीन को चुभौयो पिन

कोरन्टीन
(1)
साजन.....!
जब मैंने सुना
नया शब्द कोरन्टीन
सोचा......
ये जो मास्क पहनते हैं,
सोशल डिस्टेंसिङ्ग करते हैं,
सेनेटाइजर से....
हाथ धोते हैं,
घर आने के बाद,
कपड़े बदल कर नहाकर..
घर के अन्दर जाते हैं...
इसी को कहते हैं
कोरन्टीन......।
पर
सब झूठा था.....!
देर ही से,
गहन शोध से....
मैंने जाना
साजन......!
तुम जब से गये हो चीन
ऑटोमैटिक....!
मैं हो गई कोरन्टीन....
अब रात कटे ना दिन,
तन मन सब है गमगीन,
स्वाद सभी अब फीके लागे,
खट्टा मीठा या हो नमकीन...।।
*********
कोरन्टीन
(2)
साजन.....!
आ गए तुम
अच्छा चलो बताओ
क्यों गए तुम चीन...?
वहाँ से लेकर आये
कोविड नाईनटीन...।
गर मान जाते,
न जाते तुम चीन....
हर कला में तुमको
करती मैं प्रवीन...!
करती श्रृंगार मैं,
नित नवीन....
दिखता न कभी
तेरा मुख मलीन...!
बावले हो गए थे तुम...
जो चले गए तुम चीन....
लौटे तो तुम...
पर.....!
खुद ही हो गए कोरन्टीन
कैसे कहूँ...!
किससे कहूँ...!
ब्यथा अपनी महीन....
कभी तुम...
कभी मैं...
अगर इसी तरह,
होते रहे कोरन्टीन...
कैसे होंगे हम दो से तीन....
सृजन अधूरा रह जायेगा...
साजन.....!
चिन्ता है यह अंतहीन......
यह अंतहीन....!!

कविताकार जितेंद्र दुबे जी डिप्टी एसपी बनने से पहले भूगर्भ विभाग में वैज्ञानिक थे। जिसके बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी बने और अब पुलिस सेवा में हैं। दुबे जी बीएचयू के एमएससी गोल्डमेडलिस्ट हैं।
टीम स्टेट टुडे