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अब मथुरा की तैयारी है- क्यों कहा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने, जानिए क्या है विवाद और रुकावटें



उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने राजनीतिक गलियारे में हलचल बढ़ा दी है। उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है और अब मथुरा की तैयारी है। केशव मौर्य के इस बयान से संकेत साफ हैं कि भाजपा यूपी चुनाव में विकास के साथ हिंदुत्व के मुद्दे को भी हवा देने का मन बना चुकी है।



उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्वीट में कहा कि 'अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है। मथुरा की तैयारी है। केशव मौर्या ने अपने ट्वीट के साथ ही #जय_श्रीराम, #जय_शिव_शम्भू और #जय_श्री_राधे_कृष्ण का हैशटैग भी लगाया।


पिछले दिनों मथुरा और वृंदावन को सीएम योगी आदित्यनाथ ने तीर्थस्थल घोषित किया था। प्रदेश सरकार ने मथुरा-वृंदावन नगर निगम के 22 वार्डों को पवित्र तीर्थ स्थल घोषित करते हुए वहां मांस-मदिरा की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया।


अदालत में है मामला


श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में बने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए करीब साल भर पहले मथुरा डिस्ट्रिक्ट सिविल कोर्ट में पिछले साल याचिका डाली गई थी। इस पूरे मामले में मथुरा कोर्ट ठाकुर केशव देव जी महाराज और इंतजामियां कमेटी के बीच इस विवाद पर सुनवाई करेगा। याचिकाकर्ताओं ने विवादित ढांचे की खुदाई कराकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से जांच की मांग की है। इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता ने मांग की है कि इस मामले में जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, तब तक विवादित ढांचे की देखभाल के लिए रिसीवर नियुक्त किया जाए। उन्होंने अपनी याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी पर सबूतों को मिटाने के भी आरोप लगाए हैं। कोर्ट को सबूत मिटाने को लेकर लगाए गए आरोपों पर भी सुनवाई करनी है।


क्या कहा गया है याचिका में


भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान कंस का कारागार था। कंस का कारागार यानी श्रीकृष्ण जन्मस्थान ईदगाह के नीचे है। विवादित जमीन को लेकर 1968 में हुआ समझौता गलत था। कटरा केशवदेव की पूरी 13.37 एकड़ जमीन हिंदुओं की थी।


1968 में हुआ था एक समझौता


1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को उसके बदले पास की जगह दे दी गई।


क्या है रुकावट


श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर धार्मिक अतिक्रमण के खिलाफ केस को लेकर सबसे बड़ी रुकावट Place of worship Act 1991 है। वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में पास हुए Place of worship Act 1991 में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसे बदला नहीं जा सकता। यानी 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल पर जिस संप्रदाय का अधिकार था, आगे भी उसी का रहेगा। इस एक्ट से अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को अलग रखा गया था।


कृष्‍ण जन्‍माष्‍ठमी पर जानिए जन्‍मस्‍थान का इतिहास...


जिस जगह पर आज कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्‍लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्‍ण ने जन्‍म लिया था।


इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्‍ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।


इति‍हासकारों के अनुसार, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।


कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर


इतिहास बताता है कि कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था।


आम लोगों का मानना है कि‍ यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।

विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर

इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। यह भव्‍य मंदिर था।


उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था।

आस-पास बौद्ध आस्‍था का भी केंद्र बना

इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के भी विहार और मंदिर भी बने।


इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था।

वि‍जयपाल देव के शासनकाल में बना तीसरा बड़ा मंदिर, सिकंदर लोदी ने तुड़वाया


खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदि‍र बनवाया था।


उसने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।

जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार बना मंदिर, औरंगजेब ने तुड़वाया


इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया।


कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।


यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदि‍र के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था।


इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदि‍र के प्रांगण में बने फव्‍वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।

बिड़ला ने की श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि‍ट्रस्ट की स्‍थापना


ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया।


वर्ष 1940 में जब यहां पंडि‍त मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए।


इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा।


बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।


इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंति‍म इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।

1982 में पूरा हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य


ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया।


इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।


टीम स्टेट टुडे

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