एक तरफ विज्ञान नई नई खोजों के जरिए जीवन आसान करता है तो दूसरी तरफ फर्जीवाड़ा करने वाले तोड़ निकाल कर सिस्टम को मुंह चिढ़ाने का का हैं।
जैसे जैसे जिंदगी डिजिटल हो रही है वैसे वैसे साइबर अपराध के खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं। अभी तक आईडी, पासवर्ड हैक करना, एटीएम क्लोन बनाना, फर्जी आईडी के जरिए हेरफेर करने के मामले सामने आते थे। अब जालसाजों ने इससे आगे बढ़कर नकली फिंगरप्रिंट तैयार करने का काम भी शुरु कर दिया है। हाथ की लकीरों को तैयार करने का काम चल रहा है मेरठ में.
यहां नकली फिंगर प्रिंट का फर्जीवाड़ा शहर में धड़ल्ले से चल रहा है। तकनीक के सहारे शातिर पांच से दस हजार रुपये में किसी के भी फिंगर प्रिंट की नकल बना देते हैं। गिरोह से जुड़े जालसाज लोगों के नकली फिंगर प्रिटं तैयार करते हैं। इस तरह के फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल परीक्षाओं , एक से अधिक सिम हासिल करने के साथ साथ बैंकिंग और अन्य कार्यों में फर्जी वाड़े के लिए किया जाता है।
कंप्यूटर, स्कैनर और रबर की मदद से नकली फिंगर प्रिंट तैयार होता है। एक फिंगर प्रिंट बनाने के लिए आपकी अंगुली की करीब 50 छाप ली जाती हैं। इसके बाद असल की नकल तैयार की जाती है।
साल्वर गैंग, बायोमीट्रिक हाजिरी और डिजिटल और अन्य वारदातों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। अपराधियों को पकड़ने के लिए फोरेंसिक डिपार्टमेंट उंगलियों के निशान को महत्वपूर्ण कड़ी मानता है। ऐसे में नकली निशान आने वाले दिनों में आपराधिक मामलों के खुलासे और पेंचीदा बना सकते हैं।
टीम स्टेट टुडे
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