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“ब्राह्मण” भारत और भारतीय राजनीति की आत्मा है, इसका कोई एक ‘चेहरा’ नहीं,यहां सभी सर्वमान्य “अभय” हैं



मैं हैरान हूं।


भारतवर्ष और यहां की राजनीति को बहुत गहराई से समझने और समझाने का दावा करने वाले मूर्धन्य पत्रकार, विचारक, लेखक, समीक्षक और ऐसा प्रत्येक नागरिक जो खुद को बुद्धिजीवी कहने का दम भरता है वो ऐसा सोच भी कैसे सकता है।


वोटबैंक की राजनीति में समाज को खासतौर से हिंदू समाज को जिस तरह जातियों में बांटा गया है उससे जनमानस की सोच भी भोंथरी हो गई है।


ठीक है, अगर हिंदू समाज जातियों में बंटा तो कोई दलितों का नेता बना, कोई पिछड़ों का सर्वमान्य नेता हुआ तो कोई आदिवासियों का चेहरा। सवर्णों में भी ठाकुर, बनिया, कायस्थ सबने अपने-अपने चेहरे चुन लिए।

लेकिन, ब्राह्मण ने किसी एक चेहरे को अपना नेता कब माना। कौन सा ऐसा ब्राह्मण है जो खम ठोंक के कहेगा कि मैं हूं ब्राह्मणों का सर्वमान्य नेता, सारे ब्राह्मण मेरा कहा मानेंगे मेरे पीछे चलेंगे।


हे बुद्धिश्रेष्ठों ! तुम सब यहीं चूक गए। भारतीय राजनीति में तुमने वोटबैंक देखे, इसलिए ब्रह्म का ज्ञान तुम्हें हुआ ही नहीं।


कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण से कहते हैं –

नैनं छिन्दंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयतं तापो, ना शोषयति मारुत: ।।

अर्थात - आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।

ठीक इसी प्रकार भारतीय राजनीति की आत्मा ब्राह्मण है। क्यों है ? तो समझिए -



ब्राह्मण ने 2007 में बहुजन समाज पार्टी को आशीष दिया तो गठबंधन राजनीति का प्रदेश में अंत हो गया। मायावती पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता में आईं। मेरी बात पर यकीन ना हो तो जाकर सतीश चंद्र मिश्रा जी से पूछ लीजिए।


ब्राह्मण ने 2012 में समाजवादी पार्टी को आशीष दिया तो अखिलेश यादव ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई । मेरी बात पर यकीन ना हो तो जाकर खुद नेताजी मुलायम सिंह यादव से पूछ लो। पूछ लो, अखिलेश यादव से जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद लखनऊ में जनेश्वर मिश्र पार्क सबसे पहले बनवाया।


ब्राह्मण ने 2017 में भारतीय जनता पार्टी को आशीष दिया तो योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मेरी बात पर यकीन ना हो तो मोदी जी से लेकर योगी जी तक और भाजपा के किसी भी पदाधिकारी से जाकर पूछ लो। अगर कोई इंकार करे तो मेरे लेख पर नाम के साथ पोस्ट डालो।


बात सिर्फ इतनी भर नहीं है। राजनीति में अपने भविष्य को लेकर चिंतित जितिन प्रसाद अगर बीजेपी में आए तो पूरा ब्राह्मण समाज प्रभावित होगा ये बचकानी बात है। इसका विश्लेषण तो मूर्खता की हद है। फिर भी जो शीर्ष शिरोमणि करना चाहें वो करें।


और छोड़िए, प्रमोद तिवारी, ब्राह्मण हैं, जन्म से कांग्रेसी हैं, तीन दशक से ज्यादा हुआ तिवारी जी की पार्टी सत्ता से बाहर है फिर भी प्रदेश और देश की राजनीति में डटे हुए हैं। क्या प्रमोद तिवारी ब्राह्मणों के सर्वमान्य नेता हैं। चार-आठ ब्राह्मणों को उनके सामने खड़ा कर के पूछिए – तिवारी जी हाथ जोड़ लेगें और जिन्हें आप ले गए हैं वो आप को ही खरी-खरी सुना कर उल्टे पांव चल पडेंगे।


ये भी जाने दीजिए, पंडित नारायण दत्त तिवारी, अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। क्या उन्होंने कभी दावा किया कि वो ब्राह्मणों के सर्वमान्य नेता है। वो जनसामान्य के बीच अपनी लोकप्रियता का खम तो ठोंक सकते थे लेकिन ब्राह्मण का नाम लेते ही ज्ञान देते थे।



और पीछे चलिए, पंडित गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, श्रीपति मिश्र, हेमवती नंदन बहुगुणा ये सभी उत्तर प्रदेश के मुख्मंत्री रहे, सभी ब्राह्मण थे। कोई एक प्रसंग नहीं मिलेगा जब इन राजनेताओं ने खुद को ब्राह्मणों का चेहरा कहा हो। ये ब्राह्मण थे लेकिन ब्रह्म जानते थे इसलिए चेहरा नहीं प्रदेश की राजनीति में आत्मा ही बने रहे।


जो लोग जितिन प्रसाद को ब्राह्मण वोटबैंक साधने का तीर बता रहे हैं वो ये बताएं कि उन्हें कब पता चला कि जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ब्राह्मण हैं। सच तो ये है कि जितेंद्र प्रसाद जब तक प्रदेश अध्यक्ष नहीं बने थे अधिकतर कांग्रेसी भी नहीं जानते थे कि वो ब्राह्मण हैं।


इन सबको जाने दो, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जहां से भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ उसकी स्थापना किसने की। आरएसएस की स्थापना डॉक्टर केशवराव बलराम हेडगेवार ने की। जो ब्राह्मण थे। क्या उन्होंने कभी बताया या आप ये बात जानते थे कि वो ब्राह्मण थे ?


हेडगेवार जी को ब्रह्म पता था इसलिए जिस संगठन की स्थापना की वहां जातियों को जगह ही नहीं दी...केवल नाम का पहला शब्द और उसके बाद जी... जैसे आदित्य जी, संजय जी, बालजी, स्वांत जी, आशुतोष जी, सुनील जी आदि- आदि और अनंत जी।


अगर ब्राह्मण भारतीय राजनीति का सिर्फ चेहरा होता तो राहुल गांधी कभी जनेऊ डालकर फोटो ना चिपकाते। ब्राह्मण भारत और भारतीय राजनीति की आत्मा है इसीलिए जवाहर लाल हमेशा पंडित नेहरु बने रहे।


देश के सबसे लोकप्रिय और सर्वमान्य नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कभी दावा किया कि वो ब्राह्मणों का चेहरा हैं और पूरा ब्राह्मण समाज उनके कथानुसार ही चलेगा। सच तो ये है कि पंडित अटल बिहारी वाजपेई भी ब्रह्म जानते थे इसलिए हमेशा अटल और अटल जी तक ही रहे।


अरे! जिन्हें चुने हुए माननीयों ने चुना फिर वो देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू हों, शंकर दयाल शर्मा हो, प्रणव मुखर्जी हों एवं अन्य भी, किसी ने कहा कि वो ब्राह्मणों के सर्वमान्य चेहरे हैं, जबकि थे ये सब ब्राह्मण।



और सिर्फ राजनीति ही क्यों – ब्राह्मण तो हर क्षेत्र में है।


वो माफिया से राजनेता बनता है तो हरिशंकर तिवारी हो जाता है, वो अपराधी बनता है श्रीप्रकाश शुक्ला से लेकर विकास दुबे कोई भी हो सकता है।


अधिकारी बनता है तो नृपेंद्र मिश्रा से लेकर अनूप चंद्र पाण्डेय तक कुछ भी हो सकता है।


पंडित तो पान की दुकान भी चला रहा है, आटा चक्की पर भी बैठा है, झाड़ू पोछा भी कर रहा है।


ब्राह्मण परंपरागत रुप से समाज को शिक्षित करने और निरंतर नव निर्माण में जीवन खपाता रहा है। वो निर्विवादित रुप से समाज का शिक्षक रहा और आज भी शिक्षण कार्य उसका सबसे पसंदीदा कार्य क्षेत्र है।


सत्य सनातन हिंदू समाज को प्रगतिशील और अपनी रक्षा दोनों ही कलाओं में शस्त्र और शास्त्र के माध्यम से महारथी बनाने वाले आदि गुरु शंकराचार्य भी ब्राह्मण थे। पता करिए आज किसी मठ में, किसी अखाड़े में कितने ब्राह्मण बैठे हैं। हां ये जरुर है कि जो बैठे हैं आप उन्हें ब्राह्मण ही मानते हैं। यही ब्रह्म की शक्ति है।


समाज के किसी भी सशरीर मनुष्य की तरह ब्राह्मण खुद को जिंदा रखने और जीवन जीने के लिए सामान्य भाव से हर वो काम कर रहा है जो कोई दूसरा कर रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि दूसरों ने अपने कार्यक्षेत्र में अपनी जाति का चेहरा तलाश कर रखा है लेकिन ब्राह्मण ने वहां भी किसी को चेहरा मानने या मनवाने से इंकार कर दिया ।


कई सदियों पहले भारत में ब्राह्मण तो वो विष्णुगुप्त भी था जिसे चाणक्य कह कर बुलाते हैं। वो सक्षम था, ब्राह्मण था बावजूद इसके खुद गद्दी पर नहीं बैठे बल्कि चंद्रगुप्त को तैयार कर अखंड भारत का साम्राज्य सौंपा।


मैंने इस लेख की हेडिंग में ब्राह्मण को भारत और भारतीय राजनीति दोनों की आत्मा कहा है। राजनीति का ब्रह्म तो आप उधेड़ कर फिर बुनेंगे क्योंकि जाति से ऊपर हिंदू समाज और भारतवर्ष की बात आपको इतनी आसानी से समझ नहीं आएगी।


परंतु जो अब तक भारत में शाश्वत है वो ये कि आप हिंदू समाज में किसी भी तबके से आते हों जब आपका जन्म हुआ और जब आप धरती से विदा होंगें दोनों ही दशाओं में आपके भीतर का ब्राम्हण ही आदि-अनादि होगा।

रही बात ब्राह्मण अहंकार की तो चलते चलते एक छोटा सा प्रसंग –


जब ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ेंगे तो अंतिम वायसराय माउंटबेटेन ने अपने एक भारतीय सहयोगी से पूछा कि तुम अक्सर कहते हो कि इस दिन ऐसा होगा, उस दिन वैसा होगा, पचांग देखा है, पत्रे में लिखा वगैरह वगैरह। ये सब तुम्हें बताता कौन है।


वो सहयोगी उस अंग्रेज को लेकर एक टूटी-फूटी झोपड़ी के पास ले गया और बोला अंदर जो बैठा है वही बताता है। वो ब्राह्मण है।


दीन-हीन दशा लेकिन ब्रह्म जानकर माउंटबेटेन समझ गए कि दूसरी सदी में भारत आया सिकंदर हो, हजार साल भारत को गुलाम रखने वाले मुगल हों या अब अंग्रेज हर दौर में कोई चाणक्य, कोई तुलसीदास, कोई सूरदास, कोई ना कोई ब्राह्मण भारत की आत्मा बना रहा। भारत में बहुत से चेहरे आए और गए भारत और भारतीय राजनीति अजर-अमर बना रही और बनी रहेगी क्योंकि जब तक देश की आत्मा सबकुछ सहकर भी टिकी हुई है तो उसका सत्ता शासन और शासक भी क्या कर लेगा !


लेख के अंत में निवेदन –


ब्राह्मणों का चेहरा तलाशने से बेहतर है एक बार अपना चेहरा देखो और सोचो कि जातियों में उलझे तुम कट्टर धर्मांधों के बीच हिंदू समाज को एकजुट रखने के लिए क्या कर रहे हो।


शेखर आनंद त्रिवेदी

(उम्मीद है इस लेख का सबसे ज्यादा समर्थन और विरोध भी भारत की आत्मा ही करेगी)


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