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भारत के राज्यों में अल्पसंख्यक हुए हिंदू - सुप्रीम कोर्ट "अल्पसंख्यक दर्जा" देने की याचिका पर गंभीर



देश के 7 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में हिंदुओं को माइनॉरिटी स्टेटस दिए जाने की मांग तेज हो गई है। केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस विषय पर लगातार बैठकें कर रहा है। बैठकों में इस बात पर विचार हो रहा है कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या बाकी लोगों के बाकी धर्मों के लोगों से काफी कम है क्या वहां हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जा सकता है।


जिन राज्यों में हिंदू आबादी हद से ज्यादा नीचे चली गई है वो राज्य हैं जम्मू, कश्मीर, पंजाब लक्षदीप, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश।


2011 की जनगणना के मुताबिक लक्षद्वीप में सिर्फ 2.5 फ़ीसदी हिंदू हैं जबकि मुस्लिमों की आबादी 96.58% है।


कश्मीर में हिंदू आबादी 28.43 फीसदी जबकि मुस्लिम 68.31 फीसदी हैं।


मिजोरम में हिंदुओं की आबादी सिर्फ 2.7 फीसदी है जबकि यहां ईसाई 87.16 फ़ीसदी हैं।


नागालैंड में भी हिंदू काफी कम है यहां 8.75 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि ईसाई 87.93 फ़ीसदी हैं।


मेघालय में हिंदू 11.53 फीसदी जबकि ईसाई 74.59 फ़ीसदी हैं।


अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसदी हिंदू हैं जबकि ईसाई 30.26 फ़ीसदी हैं।


मणिपुर में हिंदुओं की आबादी 31.39 फीसदी है जबकि ईसाई 41.29 फीसदी हैं।


पंजाब में हिंदू 38.40 फ़ीसदी हैं, यहां सिखों की आबादी 57.69 है।


हिंदुओं के लिए माइनॉरिटी स्टेटस की मांग करने वालों का कहना है कि कई राज्यों में संख्या कम होने के बावजूद हिंदुओं को भारत सरकार की अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता है। उदाहरण के तौर पर भारत सरकार हर साल 20000 अल्पसंख्यकों को टेक्निकल एजुकेशन में प्रशिक्षण और स्कॉलरशिप देती है लेकिन इन राज्यों में इसका फायदा हिंदुओं को नहीं मिलता।



अभी कौन है अल्पसंख्यक


केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर 1992 नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट के तहत नोटिफिकेशन जारी किया था। इसमें 5 समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। 2014 में जैन समुदाय को भी माइनॉरिटी का दर्जा दिया गया।


अब मांग की जा रही है इस नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए और जिन राज्यों में जिस भी समुदाय के लोगों की संख्या 10 फ़ीसदी से ज्यादा है उन्हें अल्पसंख्यक ना माना जाए।



सुप्रीम कोर्ट में है मामला


सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं को 9 राज्य में अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई दो फरवरी को एक हफ्ते के लिए टाल दी है। याचिका में इससे संबंधित तमाम केसों को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने की गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर गुहार लगाई गई है कि नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी ऐक्ट के उस प्रावधान को खत्म किया जाए जिसके तहत देश में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है। साथ ही गुहार लगाई गई है कि अगर कानून कायम रखा जाता है तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें राज्यवार स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिले।


सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर नैशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी ऐक्ट 1992 के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाएं जो तमाम राज्यों के हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं उन्हें सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी है और याचिकाकर्ता से कहा है कि इस दौरान प्रतिवादियों के नाम पूरा कर पेश करें।


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9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग


बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने माइनॉरिटी एक्ट की धारा-2 (सी) के तहत मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्यक घोषित किया है लेकिन उसने यहूदी, बहाई को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया। साथ ही कहा गया है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल रहा है।


याचिका में कहा गया कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू की जनसंख्या अल्पसंख्यक तौर पर है। याची ने कहा कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के कारण हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए लेकिन उनका लाभ उन राज्यों के बहुसंख्यक को दिया जा रहा है।



अल्पसंख्यक दर्जा देने वाला कानून खत्म हो या फिर राज्यवार तरीके से अल्पंसंख्यक तय हो


याचिका में कहा गया है कि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की बेंच ने 2002 इसकी व्याख्या करते हुए कहा था कि भाषाई और धर्म के आधार पर जो अल्पसंख्यक माना जाएगा। याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्यों की मान्यता भाषाई आधार पर हुई है ऐसे में अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार होना चाहिए न कि देश के लेवल पर हो सकता है। ऐसे में भाषाई और धर्म के आधार पर राज्यवार ही अल्पसंख्यक का दर्जा होना चाहिए और राज्यवार ही इस पर विचार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद अब अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार ही होना चाहिए और वह भाषा और धर्म के आधार पर राज्यस्तर पर हो सकता है।


सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले भी अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल की गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी 2020 को मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया था और याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट जाने को कहा था। याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट, मेघालय हाईकोर्ट, गुवाहाटी हाई कोर्ट में इससे संबंधित केस पेंडिंग है जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाना चाहिए। अलग-अलग हाई कोर्ट में केस होने से अलग अलग मत आ सकते हैं ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना चाहिए।


याचिकाकर्ता ने कहा कि नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (सी) को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए जिसके तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है। साथ ही गुहार लगाई गई है कि हिंदुओं को 9 राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए।



माइनॉरिटी एजुकेशन ऐक्ट को भी है चुनौती


28 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें याचिकाकर्ता ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशन इंस्टिट्यूशन एक्ट को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने कहा तब कहा था कि यह एक्ट एजुकेशनल इंस्टिट्यूट को चलाने के लिए राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों को मान्यता देने में सफल नहीं हुआ है। सुप्रीम के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने ममले में दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था।


इसमें दोराय नहीं कि भारत में हिंदुओं की घटती आबादी गहरी चिंता का विषय है। कई राज्यों में हिंदुओं का अल्पसंख्यक होना बताता है कि धर्मांतरण, विदेशी घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन के चलते आने वाले दिनों में स्थिति विस्फोटक होगी।


टीम स्टेट टुडे

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