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आपके बगल में फटता बम और पचास मीटर तक कुछ नहीं बचता



ऐसी गहरी साजिश और इतने खतरनाक विस्फोट कि चीथड़े भी ना मिलते।


एक बड़ी आतंकी घटना टल जाना शायद हमें उतनी गंभीर नहीं लगती जितना हादसे होने पर देश में हायतौबा मचती है। लखनऊ में पकड़े गए अलकायदा के आतंकी अगर अपनी योजना में कामयाब हो जाते तो कल्पना नहीं कर सकते कि तबाही का मंजर क्या होता।


उत्तर प्रदेश के 15 शहरों में एक साथ एक्टिव हो रहा था स्लीपर सेल। दो आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद इनके साथियों में भगदड़ है और खतरा बरकरार है। स्लीपर सेल का हैंडलर पाकिस्तान में बैठा है और मौके की तलाश में है।


आतंकवादी कर चुके हैं रेकी


एटीएस की रिमांड में आंतकी जो उगल रहे हैं उसे खौफनाक कुछ नहीं। जनवरी से ही भीड़-भाड़ वाले इलाकों की रेकी चल रही थी। योजना को अमली जामा पहनाने के लिए कश्मीर से दो कमांडर तौहीद व मूसा आने वाले थे। बकरीद से पहले शुक्रवार को होने वाले धमाके की तारीख व समय इन्हीं दोनों को तय करना था। इसके बाद राजधानी में सिर्फ तबाही का मंजर दिखता। आतंकी मिनहाज और मुशीर ने धमाके के लिए राजधानी के दो प्रमुख मंदिर और एक भीड़भाड़ वाला बाजार भी तय कर लिया गया था।


क्या थी प्लानिंग


अलकायदा के कमांडर तौहीद और मूसा कश्मीर से बुधवार को लखनऊ पहुंचते। स्लीपर सेल के साथ मीटिंग कर रकम देते। रेकी किए गए स्थानों का परीक्षण करते और धमाके का दिन तारीख तय कर वापस जाते। इसके बाद सोशल मीडिया के जरिए संपर्क होना था।


कैसे होता धमाका


कुकर बम के जरिए राजधानी को दहलाने का प्लान था। इस काम में ई रिक्शा का इस्तेमाल होना था। कुकर बम का कनेक्शन ई-रिक्शा की बैटरी से करके पार्किंग एरिया में धमाका किया जाना तय था।


अगर हो जाता धमाका तो..


अगर आतंकी मिनहाज और मुशीर अपने मंसूबों में कामयाब होते तो जिस जगह धमाका होता वहां 50 मीटर के घेरे में कुछ नहीं बचता। बेहद खतरनाक विस्फोटक इनके पास से मिला है। धमाके के 20 फीट के दायरे में किसी का भी जिंदा रहना मुश्किल था।


कैसे हुई लखनऊ की रेकी


एटीएस के अनुसार अलकायदा के कश्मीरी कमांडरों के इशारे पर पूरे लखनऊ की रेकी की गई। बाजार और मंदिरों को चिह्नित करने के लिए मिनहाज व मुशीर बुलेट से निकलते थे।


कहां से मिल रहा था असलहा और बारुद


दुबग्गा के बेगरिया से मिनहाज और मुहिबुल्लापुर नौबस्ता से मसीरुद्दीन उर्फ मुशीर के अलावा एटीएस के रडार पर लखनऊ और कानपुर के चार अन्य लोग भी हैं। जो लगातार असलहा और बारुद सप्लाई कर रहे थे। आपको बताते चलें कि कानपुर का चमनगंज, रेल बाजार और कुछ अन्य इलाकों हमेशा से आतंकियों की पनाहगाह रहे हैं।


क्यों होती है समस्या


आमतौर पर एटीएस या पुलिस को आतंकी पकड़ने में इसलिए भी दिक्कत होती है क्योंकि पकड़े गए आतंकवादी मुस्लिम तबके से होते हैं। घने मुस्लिम इलाकों में आंतकी बहुत घुलमिल कर रहते हैं और अक्सर पकड़े जाने पर मुसलमान भीड़ इकट्ठा कर गुनहगारों को बचाते हैं। आम तौर पर अगर कोई मुस्लिम इस तरह कानून अपने हाथ में लेने का विरोध भी करता है तो मस्जिदों में बैठे कट्टर मुल्ले मौलवी शुक्रवार की नमाज के दौरान ऐसे लोगों को ना सिर्फ डराते धमकाते हैं बल्कि भीड़ का खौफ भी दिखाते हैं।


ये सच है कि पकड़े गए आतंकी मुस्लिम होते हैं लेकिन सभी मुसलमान आतंकी होते हैं ये नहीं कहा जा सकता। लेकिन जिस तरह से आतंकी गतिविधियों का पर्दाफाश हो रहा है, आतंकी पकड़े जा रहे हैं ऐसे में मुस्लिम समाज की जिम्मेदारी है कि भीड़तंत्र से अलग होकर ऐसे लोगों का सख्त विरोध करें जो आतंकियों की पैरवी में लगते हैं फिर चाहें वो सियासत करने वाले हों, वकालत करने वाले या धर्म से जुड़ा ज्ञान बांटने वाले मौलाना या मौलवी।


टीम स्टेट टुडे


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