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श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का आर्किटेक्चर है औरंगजेब के मुंह पर तमाचा-वाराणसी विशेष



हर-हर महादेव

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट के आर्किटेक्ट बिमल पटेल हैं।


मंदिर की भव्यता को बहाल करने के मंदिर परिसर का पुनर्गठन किया गया है। साथ ही परियोजना के 5.50 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में से लगभग 70 फीसदी को हरियाली से ढका जाएगा।



धाम तैयार करते समय काशी विश्वनाथ मंदिर की मूल सरंचना से छेड़छाड़ नहीं की है, उसे वैसा रहने दिया गया है। मंदिर परिसर को सुंदर बनाने के साथ, पर्यटकों और श्रद्धालुओं की सुविधाओं को बढ़ाया गया है।

परियोजना में मंदिर चौक, वाराणसी सिटी गैलरी, म्यूजियम, बहुउद्देशीय सभागार, हॉल, भक्त के लिए सुविधा केंद्र, सार्वजनिक सुविधा, मोक्ष गृह, गोदौलिया गेट, भोगशाला, पुजारियों और सेवादारों के लिए आश्रय, आध्यात्मिक पुस्तक पैलेस और अन्य का निर्माण शामिल है। काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास की इमारतों को तोड़े जाने के बाद चालीस प्राचीन मंदिर मिले। इमारतों में छिपे हुए संदियों पुराने मंदिर अब दिखाई देने लगे हैं। इन्हें संरक्षित कर जनता के लिए खोल दिया जाएगा।



काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर पहले तीन तरफ से इमारतों से घिरा हुआ था। जबकि अब ये पूरा मंदिर परिसर में बदल चुका है। यह परियोजना वाराणसी की सबसे प्रसिद्ध दो चीजों गंगा नदी और काशी विश्वनाथ मंदिर को आपस में जोड़ने का काम करेगी।


काशी विश्वनाथ धाम के पहले चरण का काम पूरा होने के साथ ही 33 महीने बाद धाम से मशीनें बाहर निकाल दी गईं। मंदिर प्रशासन धाम को 12 दिसंबर को हैंडओवर कर लेगा।


आक्रांत औरंगजेब को तमाचा है कॉरिडोर



औरंगजेब के फरमान के बाद 1669 में मुगल सेना ने विशेश्वर का मंदिर ध्वस्त कर दिया था। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति न हो इसके लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। हमले के दौरान मुगल सेना मंदिर के बाहर स्थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास किया था लेकिन सेना के तमाम प्रयासों के बाद भी वे नंदी की प्रतिमा को नहीं तोड़ सके।


तब से आज तक विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर रहे ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी को एक बार फिर विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल कर लिया गया है। यह संभव हुआ है विश्वनाथ धाम के निर्माण के बाद। 352 साल पहले अलग हुआ यह ज्ञानवापी कूप एक बार फिर विश्वनाथ धाम परिसर में आ गया है।



आदिविश्वेश्वर शिव की नगरी काशी की प्राचीन परिकल्पना नवीनता के साथ साकार हो रही है। बाबा का अद्भुत, भव्य और अकल्पनीय धाम को पौराणिकता के आधार पर ही विकसित किया गया है।



काशी की अंतर्गृही और पंचक्रोशी परिक्रमा को ध्यान में रखते हुए सभी देव विग्रहों को उनके प्राचीन स्थान पर ही विराजमान कराया जाएगा।



स्कंद पुराण और काशी खंड को आधार मानकर धाम क्षेत्र में 145 शिवलिंग, 97 विग्रह और 27 मंदिरों के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है। इसके अलावा मंदिर परिक्षेत्र से विलुप्त हो चुके विग्रह भी इसमें शामिल किए गए हैं।


पहले चरण में 27 मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। इसमें कई पुरातन काल से, काशी खंडोक्त और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित मंदिर हैं। दूसरे चरण में बाबा विश्वनाथ के धाम में प्राचीन काल से स्थापित सभी विग्रहों को उनका प्राचीन स्थान वापस मिलेगा। तीसरे चरण में धाम के निर्माण के लिए अपने स्थान से हटाकर देव गैलरी में रखे सभी विग्रह, शिवलिंग और प्रतिमाओं को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है।



इसके साथ ही कण-कण शंकर की परिकल्पना काशी विश्वनाथ धाम में पुन: अपने मूर्त स्वरूप में लौटने लगी है। पहले चरण में श्री काशी विश्वनाथ की मणिमाला के 27 मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। अब यह मंदिर प्राचीनता के साथ नए स्वरूप में निखर उठे हैं।


स्वर्णशिखर की आभा इन मंदिरों के शिखरों को भी शोभायमान कर रही है। अखिल भारतीय संत समिति और काशी विद्वत परिषद के सहयोग से काशी विश्वनाथ धाम के देव विग्रहों की पूरी सूची तैयार की गई है।


भव्य होगा मां सरस्वती का मंदिर



सरस्वती फाटक पर स्थित मां सरस्वती का मंदिर धाम क्षेत्र में अपने भव्य स्वरूप में स्थापित होगा। पहले मां सरस्वती की प्रतिमा सरस्वती फाटक पर एक दीवाल में स्थापित थीं लेकिन आने वाले समय में श्रद्धालुओं को बाबा के धाम में मां सरस्वती के दर्शन भव्य मंदिर में होंगे।


धाम में खास मणिमाला भी तैयार



काशी विश्वनाथ धाम में 27 मंदिरों की एक खास मणिमाला भी तैयार की गई है। यह वे मंदिर हैं, जिनमें कुछ काशी विश्वनाथ के साथ ही स्थापित किए गए थे और बाकी समय-समय पर काशीपुराधिपति के विग्रहों के रूप में यहां बसाए गए थे।



गंगा स्नान के बाद जल लेकर चलने वाले भक्त इस मणिमाला को साक्षी मानकर ही गर्भगृह तक जाएंगे और यहां से दर्शन के बाद इन विग्रहों की परिक्रमा कर धर्मलाभ लिया जा सकेगा।


पहले चरण के मंदिर



अन्नपूर्णा जी, पार्वती जी, अवमुक्तेश्वर महादेव, सत्यनारायण जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी, सन्मुख विनायक, दुर्मुख विनायक, प्रमोद विनायक, भारत माता मंदिर, सरस्वती जी, हनुमान जी, नीलकंठ महादेव, अमृतेश्वर महादेव, चंडी चंडेश्वर महादेव, त्रिसंध्य विनायक, स्वर्गद्वारेश्वर महादेव, मोक्षद्वारेश्वर, बद्रीनारायण, दत्तात्रेय, राधाकृष्ण, अक्षयवट हनुमान, मणिकेश्वर विनायक, तुलसीदास हनुमान, अपरेश्वर महादेव, अविमुक्तेश्वर महादेव, हनुमान जी, अन्नपूर्णा जी।


पहले काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा नदी के बीच सीधा संपर्क नहीं था। अब मंदिर और गंगा नदी के बीच सीधा संपर्क होने से कोई भी व्यक्ति गलियों में घूमे बिना मिनटों में मंदिर परिसर तक पहुंच सकता है। बड़ी बात यह भी है कि कोरोना की दो लहरों के बावजूद भी काम को रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया है।



मुख्य मंदिर के स्वर्ण शिखर को भी नई पहचान दी गई है। दशकों से सर्दी, गर्मी, आंधी- तूफान इत्यादि के बीच अटल खड़े स्वर्ण शिखर पर दाग धब्बे आ गए थे. स्वर्ण कलश को एक खास तकनीक से पूरी तरह से साफ किया गया है।


इस परियोजना में संपत्तियां खाली कराने से लेकर मालिकों को उनका मुआवजा देने तक युद्ध स्तर तक काम किया गया। परियोजना को पारदर्शी तरीके से क्रियान्वित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप इसे किसी मुकदमे का सामना नहीं करना पड़ा।


टीम स्टेट टुडे




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