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दुनिया में कठपुतली सरकारें, गुलाम जनता और अर्थतंत्र पर कब्ज़े की फिराक में सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स



मीडिया और सूचना तंत्र की ताकत और कीमत सब जानते हैं। परंपरागत प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को लेकर हर देश में नियम कानून स्थापित हैं। परंतु डिजिटल प्लेटफार्म और खासकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को लेकर दुनिया के देशों में नियम कानून अभी पूरी तरह तैयार भी नहीं हैं। इस का फायदा सोशल मीडिया प्लेटफार्म जिस तरह से उठा रहे हैं और भविष्य में फायदा उठाने की तैयारी कर रहे हैं उसे जानकर आपके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी।


आमतौर पर फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का इस्तेमाल करते हैं। आपने शायद ही कभी सोचा हो ये एप्स किसी देश, देश की सत्ता, समाज और सामाजिक तानेबाने को छिन्न भिन्न कर अपनी हूकुमत जमाने की तैयारी कर चुके हैं।


शायद अभी भी आपको ये मजाक लग रहा हो लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता से बेदखल करने में ट्विटर की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण और संदेहास्पद रही है। बावजूद इसके ट्विटर का अमेरिका में कुछ नहीं बिगड़ा। ट्विटर को विपक्ष ने एक ऐसे हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जिसका रिमोट जनता के हाथ में समझा जाता है। दरअसल ऐसा है नहीं।


ट्विटर, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसे तमाम ऐप्स पर आप अपनी गतिविधियों या टिप्पणियों के जरिए ऐसा सोचते हैं कि आप की सोच सही है और उसे लोगों तक पहुंचाना चाहिए। शायद आपको ये पता नहीं कि जब आप किसी मसले पर अपनी टिप्पणी या गतिविधि को पोस्ट कर रहे होते हैं उस समय तक आपकी भावनाओं को ये प्लेटफार्म ना सिर्फ पूरी तरह दूषित कर चुके होते हैं बल्कि आप पूरी तरह उनके जाल में फंस चुके होते हैं।


कैसे पलटी ट्विटर ने अमेरिकी सत्ता


ट्विटर ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के कई ट्वीट्स पर माइक्रोब्‍लॉगिंग साइट ने कई तरह का लेबल लगाए। जिसमें मैनिपुलेटेड मीडिया का लेबल भी था। सिर्फ इतना ही नहीं ट्विटर नाम की इस निजी कंपनी की हिम्मत इतनी थी कि इसने अमेरिकी राष्ट्रपति रहते हुए ट्व‍िटर ने ट्रंप का अकाउंट ही सस्पेंड कर दिया था।


इसके बाद अमेरिकी जनता को लगा कि ट्रंप प्रशासन को लेकर वो जो कर रहे हैं या सोच रहे हैं वही सही है। वो ये भूल गए कि वो एक निजी कंपनी के सार्वजनिक प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसका लोकतांत्रिक मूल्यों और कानूनों से कोई लेनादेना नहीं है। वो जनता की प्रतिक्रियाओं को अतिरेक तक ले जाकर देश की जनता का ही इस्तेमाल अपने स्वार्थ और देश के खिलाफ कर रही है।


जब तक आम अमेरिकी को ये बात समझ आई तब तक अमेरिका में चुनाव खत्म हो गए और बाइडन राष्ट्रपति बन गए। ट्रंप की बेबाक छवि को ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स ने उनके खिलाफ इस्तेमाल किया और वो भी उसी देश जनता के हाथ हथियार थमा कर जिसने उन्हें राष्ट्रपति चुना था।


अब ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक , व्हाट्सएप यही काम भारत में कर रहे हैं।


सिर्फ मोदी सरकार के दौर की ही बात नहीं हैं। वर्ष 2011-12 यूपीए सरकार के दौरान जब कपिल सिब्बल प्रौद्योगिकी मंत्री थे तब भी व्हाट्सएप ने अपनी मनमानी करना चाही और सरकार पर अनर्गल दबाव बनाकर भारतीय कानून मानने से इंकार किया था।


हाल फिलहाल में ट्विटर ने यही काम 18 मई को संबित पात्रा के एक ट्वीट पर मैनिपुलेटिड ट्वीट लिख कर किया। जो दरअसल एक टूलकिट था जिसे कोरोनाकाल में केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के खिलाफ भारत की विपक्षी पार्टियों ने इस्तेमाल किया था। जिसका भांडा फूट गया। भारत में ट्विटर ने ये हिमाकत दूसरी बार की थी। इससे पहले 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन की आड़ में विपक्ष ने विदेशी ताकतों के साथ मिलकर जो उत्पात मचाया उसमें भी ट्विटर टूलकिट का पर्दाफाश हुआ था।



क्‍या है मैनिपुलेटेड मीडिया


ट्विटर के अनुसार ऐसा कोई भी मीडिया जिसे जानबूझकर भ्रामक रूप से बदल दिया गया हो या उसमें हेरफेर किया गया हो, उसे मैनिपुलेटेड मीडिया कहा जाता है। इस तरह के मीडिया में वीडियो, ऑडियो और इमेज शामिल हैं।


लेकिन परिभाषा से आगे ट्विटर ना तो ट्विटर ये बताने को तैयार है कि वो ये कैसे तय करता है कि कोई सामाग्री मैनिपुलेटेड है या नहीं। सिर्फ इतना ही नहीं ट्विटर समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स अपनी भीतरी गतिविधियों को पारदर्शी नहीं रखते। जिसके चलते कई बार डेटा लीक होता है। साथ ही ये निजी संस्थान किसी भी फायदे के लिए भीतर ही भीतर किसी से भी सौदेबाजी कर लें तो उसका भी पता जल्दी नहीं चलता और तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है।


सिर्फ इतना ही नहीं मैनिपुलेटेट कंटेंट को लेकर कंपनी कंटेंट की विजिबिलिटी भी घटा बढ़ा देती है और अपनी निजी पॉलिसी का हलावा देकर अकाउंट को स्‍थायी रूप से हटा तक देती है। जिसके बाद लाखों करोड़ों लोगों के बीच किसी भी व्यक्ति की छवि मटियामेट हो जाती है।


भारत सरकार क्या चाहती है


केंद्र सरकार ने देश में काम कर रहीं सभी सोशल मीडिया कंपनियों को कुछ नियमों का पालन करने के निर्देश दिए थे और इसके लिए तीन महीने का समय भी दिया था, जो आज पूरा हो रहा है। नए नियम 26 मई, 2021 से लागू होने जा रहे हैं।


ऐसे में भारत में काम कर रहीं सोशल मीडिया कंपनियां यानी फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम आदि ने अब तक इन नियमों का पालन नहीं किया है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या 26 मई के बाद भारत में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया कंपनियां बंद हो जाएंगी...?


सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में कंप्लायंस अधिकारी, नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करने के लिए कहा गया था और उन सभी का कार्यक्षेत्र भारत में होना जरूरी रखा गया था। शिकायत समाधान, आपत्तिजनक कंटेट की निगरानी, कंप्लायंस रिपोर्ट और आपत्तिजनक सामग्री को हटाना आदि के नियम हैं।


आदेश मे यह भी कहा गया था कि सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी वेबसाइट या मोबाइल एप पर फिजिकल कॉन्टेक्स पर्सन की जानकारी देनी होगी। अभी तक केवल कू नाम की कंपनी को छोड़ कर किसी अन्य कंपनी ने इनमें से किसी अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है।


विदेशों से आदेश ले रही हैं सोशल मीडिया कंपनियां


सोशल मीडिया पर पीड़ित लोगों को यह नहीं पता कि वे किससे शिकायत करें और कहां उनकी समस्या का समाधान होगा। कुछ प्लेटफॉर्म ने इसके लिए छह महीने का समय मांगा है। कुछ ने कहा कि वे अमेरिका में अपने मुख्य कार्यालय से निर्देशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये कंपनियां भारत में काम कर रही हैं, भारत से मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन दिशानिर्देशों के पालन के लिए मुख्य कार्यालय से हरी झंडी का इंतजार करती हैं। ट्विटर जैसी कंपनियां अपने खुद के फैक्ट चेकर रखती हैं, जिनकी न तो पहचान बताती है और न ही तरीका कि कैसे तथ्यों की जांच की जा रही है।


26 मई से लागू होंगें भारत सरकार के नियम


आईटी ऐक्ट की धारा 79 के तहत उन्हें इंटरमीडियरी के नाते लाइबलिटी से छूट मिली हुई है, लेकिन इनमें से कई विषयवस्तु के बारे में फैसला कर रहीं हैं, जिनमें भारतीय संविधान और कानूनों का ध्यान नहीं रखा जा रहा। नए नियम 26 मई, 2021 से लागू होने जा रहे हैं। अगर ये कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं करती हैं तो उनका इंटरमीडियरी स्टेटस छिन सकता है और वे भारत के मौजूदा कानूनों के तहत आपराधिक कार्रवाई के दायरे में आ सकती हैं।


इससे पहले भारत सरकार ने चीन के कई एप्स को भारत में प्रतिबंधित किया था क्योंकि वो चीन की सरकार के इशारे पर भारत में काम कर रहे थे।


टीम स्टेट टुडे


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