ईरान पर हमले के बाद लामबंद हो रहे हैं दुनिया भर के Muslims और Muslim countries पाकिस्तान से लगाए बैठे हैं इज़राइल पर न्यूक्लियर अटैक की उम्मीद
- statetodaytv
- 8 hours ago
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ईरान पर इज़रायल के हमले के बाद दुनिया के कई मुस्लिम देश लामबंद हो रहे हैं। पहले इराक़, अफगानिस्तान से सीधी अमेरिकी लड़ाई के बाद विकीलीक्स के खुलासों से कई मुस्लिम राष्ट्रों में तख्तापलट हो चुका है। मुस्लिम कौम शिया – सुन्नी के फसाद में उलझी है, लेकिन मस्जिदों और मदरसों में बैठे मौलवियों की उलझन कुछ और है। दुनिया भर की मस्जिदों में दी जा रही तकरीरों में मुस्लिम कौम को अब कयामत का खौफ दिखाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कौम पर खतरा पहले से कहीं ज्यादा है। ऐसे में बहुत योजनाबद्ध तरीके से दुनिया के संभ्रांत देशों को टारगेट करने की रणनीति तैयार की जा रही है।
लंदन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फ्रांस, जर्मनी, रुस, भारत समेत दुनिया के कई देश अलग अलग कालखंड में आतंक का कहर झेल चुके हैं। जो देश सही मायनों में दुनिया के संभ्रांत देशों में अपनी पहचान रखते हैं वहां नियम-कायदे, संसद, न्यायपालिका सब कुछ लोकतांत्रिक तरीक से आगे बढ़ता है। लोकलाज की चिंता रहती है। अपने देश का हित सर्वोपरि रहता है। वैश्विक पटल पर अच्छे होने की कीमत स्वयं के वजूद पर खतरा पैदा करने लगे तो दुनिया की चिंता बढ़ भी जाती है।
ईरान जो कभी पारसी देश था आज ना सिर्फ कट्टर मुस्लिम देश है बल्कि अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम के चलते दुनिया के लिए नया सिरदर्द भी है।
ईरान की सीमा समय के साथ घटती और बढ़ती रही है। आज के ईरान और प्राचीन काल के ईरान की बात करें तो सिकंदर से लेकर तुर्क और अरब देश के आक्रमणकारियों ने इसको अपना निशाना बनाया। 7वीं शताब्दी में अरब के खलीफाओं ने जब अपनी सीमा का विस्तार किया तो उन्होंने ईरान के आसपास के देशों पर अधिकार करने के साथ ईरान को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। 8वीं शताब्दी तक पारसी बहुसंख्यक देश ईरान में इस्लामिक कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाने लगा। बड़े स्तर पर धर्मान्तरण किया गया और जिन्होंने मना किया उनको सजा दी गई। लाखों पारसी अपनी जान बचाकर पूरब की तरफ पलायन कर गए, उनमें से कुछ भारत आकर बस गए। तुर्क और अरबों के फतह के बाद ईरानियों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया और खुद को शिया मुस्लिम बनाकर अपने वजूद को बचाया।
1934- आज ही के दिन पहलवी राजा ने फारस का नाम ईरान घोषित कर दिया था। साल 550 से फारस पर राजा कुरोश का राज था। कुरोश ने अपना शासन मिस्र, अफगानिस्तान और बुखारा से फारस की खाड़ी तक फैलाया। इस साम्राज्य में अरबी, यूनानी और ईरानी नस्ल के लोग थे। यूनानियों ने सबसे पहले इस क्षेत्र को पारस, पार्स या पारसी कहा। कहते हैं कि यहां के लोग सूर्य पूजक थे। वे हवन भी करते थे। अरबी लोगों ने यहां इस्लाम का प्रसार किया। इन्हीं लोगों ने पारस को फारस भी कहा। यहां की भाषा फारसी कहलाई। साल 1940 में यूरोपीय देशों की ईरान के तेल भंडार पर नजर रही। इससे ईरान में तनाव बढ़ा। जनआंदोलन हुए। तब रजा शाह पहलवी ने सुधारों की पहल की। ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई। इसे इस्लामिक गणतंत्र घोषित किया गया। इसी साल 26 साल से सत्ता पर काबिज शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने गद्दी छोड़ दी थी।
ईरान में इस्लाम को लेकर कट्टरता इस्लामिक क्रांति के साथ आई. यहां इस्लामिक क्रांति की शुरुआत 1979 में हुई थी, जिसने ईरान के शासक शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता से बेदखल कर दिया। इस तरह ईरान में अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में एक धार्मिक गणतंत्र की स्थापना हुई। शाह 1941 से सत्ता में थे, लेकिन उनको ईरान में मौजूद धार्मिक नेताओं के विरोध का सामना करना करना पड़ता था। इस विरोध की आवाज को दबाने के लिए शाह ने लगातार ईरान से इस्लाम की भूमिका को कम करने, इस्लाम से पहले ईरानी सभ्यता की उपलब्धियां गिनाने और आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए कई कदम उठाए। हालांकि, शाह का ईरान को आधुनिक राष्ट्र बनाने का विचार ईरानी लोगों की समझ में नहीं आया और इस्लामिक धर्मगुरू उनसे चिढ़कर उनको अमेरिका का पिट्ठू कहने लगे। क्रांति के शुरुआती चरण में शाह ने इसको दबाने की पूरी कोशिश की।
यातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी को गिरफ्तार करके देश से निकाल दिया गया लेकिन, सबसे बड़ी घटना तब घटी जब ईरानी सरकारी मीडिया ने खुमैनी के खिलाफ आपत्तिजनक कहानियां छापी. फिर क्या था, ईरान के लोग भड़क उठे और दिसबर 1978 में करीब बीस लाख लोग शाह के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए शाहयाद चौक में इकठ्ठा हुए. सेना ने सरकार के आदेश के बाद भी इस बार लोगों पर कार्रवाई करने से मना कर दिया. प्रधानमंत्री के कहने पर ईरान के शाह और उनके परिवार ने ईरान छोड़ दिया और बाद में सभी बंदियों को रिहा करते हुए खुमैनी को भी ईरान बुला लिया गया. इस तरह खुमैनी की अगुवाई में ईरान में अंतरिम सरकार का गठन हुआ और ईरान के पहले सुप्रीम लीडर रुहोल्लाह खुमैनी बने.
ईरान पर इजरायल के हमले के बाद ईरानियों के जश्न मनाने की जो तस्वीरें दुनिया के अलग अलग देशों से सामने आ रही हैं दरअसल ये उन देशों में स्थानीय मुसलमानों को नियंत्रित करने की एक कोशिश भी है।
दुनिया के लगभग हर उस देश में जहां मुस्लिम आबादी है उसे कौम पर खतरे का डर लगातार दिखाया जा रहा है।
ईरान पर हमले का इस्राइल से बदला लेगा पाकिस्तान: एक विश्लेषण
पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग और परमाणु रणनीतियों के बीच, पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में, ईरान के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मोहसिन रेज़ाई ने दावा किया है कि यदि इस्राइल ने ईरान पर परमाणु हमला किया, तो पाकिस्तान ईरान के पक्ष में प्रतिक्रिया स्वरूप इस्राइल पर परमाणु हमला कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने ईरान को इस संबंध में आश्वासन दिया है ।
पाकिस्तान की परमाणु नीति और रणनीतिक स्थिति
पाकिस्तान की परमाणु नीति "फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस" पर आधारित है, जिसका उद्देश्य किसी भी आक्रमण की स्थिति में परमाणु हथियारों का उपयोग करना है। पाकिस्तान के पास शाहीन-3 मिसाइल है, जिसकी रेंज लगभग 2,750 किलोमीटर है, जो इस्राइल तक पहुंच सकती है ।
ईरान और पाकिस्तान का सैन्य सहयोग
ईरान और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग बढ़ रहा है, विशेष रूप से बलूचिस्तान क्षेत्र में। 2024 में, दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य हमले किए थे, जिसमें पाकिस्तान ने ईरान के बलूचिस्तान प्रांत में और ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हमले किए थे ।
इस्राइल और ईरान के बीच तनाव बढ़ रहा है। इस्राइल ने ईरान के परमाणु और मिसाइल सुविधाओं पर हमले किए हैं, जबकि ईरान ने इस्राइल के शहरों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए हैं ।
हालांकि पाकिस्तान ने इस्राइल पर परमाणु हमला करने की कोई आधिकारिक योजना नहीं घोषित की है, लेकिन ईरान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के बयान से यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तान ईरान के पक्ष में प्रतिक्रिया स्वरूप इस्राइल पर परमाणु हमला कर सकता है। पाकिस्तान की परमाणु नीति और ईरान के साथ बढ़ता सैन्य सहयोग इस संभावना को और मजबूत करते हैं। हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान की वास्तविक नीति क्या है।
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