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प्रतिद्वंदी रहे मायावती व अखिलेश, भ्रष्टाचारी यादव सिंह की मदद में !!


के. विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार) Twitter ID: Kvikram Rao : फिर सुर्खियों में आ गए अरबों रुपयों के घोटालेबाज यादव सिंह। इस बार सपत्नीक ! उनके कदाचार में साझीदार रही कुसुमलता। पर अगले सप्ताह के बाद (20 फरवरी 2023) लखनऊ जिला जज संजय पाण्डेय आरोप पर तय करेंगे। फिलवक्त वे जेल से ही कोर्ट में पेश की गईं थीं। यादव सिंह तो बच निकले थे। उत्तर प्रदेश कृतज्ञ है काषाय-परिधानधारी योगी आदित्यनाथ का, जिन्होंने यादव सिंह की फाइल पुनः खुलवायी और मुकदमा दुबारा चलवाया (27 जुलाई 2021)।

परस्पर शत्रु रहे मुख्यमंत्री-द्वय (मायावती और अखिलेश यादव) यादव सिंह पर खूब कृपा लुटाते रहे थे। उसकी भरपूर रक्षा करते रहे। मायावती के व्यवहार से अचरज तनिक भी नहीं हुआ। वे तो भ्रष्टाचार में विश्वकप जीतने की सदैव दावेदार रहीं। यूं भी यादव सिंह दलित है, मुख्यमंत्री के सवर्णीय ! पर लोहिया के चेले, अखिलेश यादव भी इस सिंह के आखेट बन गये !! राममनोहर लोहिया कहते थे कि खूंटी गाड़ो ताकि फिसलन कही तो थमें। वर्ना रसातल जा पहुंचेंगे। अर्थात सिद्धान्तों से डिगने तथा समझौता करने का अधोबिन्दु तय करो।

इसीलिए लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा यादव सिंह पर दिये गये सीबीआई द्वारा जांच के निर्देश के संदर्भ में उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार को राजधर्म की कसौटी पर कसें। तब अखिलेश यादव द्वारा नामित लखनऊ के उच्च न्यायालय में सरकारी वकील पचहत्तर-वर्षीय महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने जनहित याचिका का विरोध करते हुये यादव सिंह के भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच की मांग को खारिज करने का तर्क दिया। सर्वाधिक अचरज की बात यह थी कि इलाहाबाद उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2015 को प्रबुद्ध नागरिक नूतन ठाकुर की जनहित याचिका पर सीबीआई जांच के आदेश दे दिए थे। तब अखिलेश यादव सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि सीबीआई जांच की आवश्यकता नहीं है। वाह ! सरकार अपराधी की तरफदार बन गई !! मगर उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच का आदेश दे ही दिया। उस वक्त मुख्यमंत्री थे स्वनामधन्य यह महान लोहियावादी !

आखिर यह "यादव सिंह पुराण" है क्या ? एक तीसरे-दर्जे का सरकारी कारिन्दा नॉएडा में जूनियर इंजिनियर से पन्द्रह वर्षों में ही मुख्य मेंटेनेंस इंजीनियर बन गया बाद में इंजीनियर-इन-चीफ। अरबों रूपयों से खेलने लगा। उसकी मोटरकार के डिक्की में दस करोड़ पाये गये थे। उसके विरूद्ध जांच हुई। पर हर मुख्यमंत्री ने उसे रफा दफा करा दिया। यादव सिंह का सिक्का चलता रहा, खासकर बसपा तथा सपा राज में। उन पर इनकम टैक्स का शिकंजा कसता रहा, लेकिन न तो नोएडा अथॉरिटी ने और न ही अखिलेश सरकार ने कोई बड़ा कदम उठाया। जब जांच सीबीआई को सौंपी गई तो लंबी छानबीन के बाद उन्हें गिरफ्तार कर ही लिया। करीब 900 करोड़ की संपत्ति के मालिक यादव सिंह पर इनकम टैक्स विभाग ने छापा मारा था।

छापेमारी में दो किलो सोना, 100 करोड़ के हीरे, 10 करोड़ कैश के अलावा कई दस्तावेज मिले। इसके अलावा 100 करोड़ रुपए कीमत की डायमंड ज्वेलरी जब्त किए गए थे। इनका वजन करीब दो किलो था। बारह लाख रुपये सालाना की सैलरी पाने वाले यादव सिंह और उनका परिवार 323 करोड़ की चल अचल संपत्ति का मालिक बन बैठा। यादव सिंह डिप्लोमा धारक इंजीनियर था और उसे अथॉरिटी में नौकरी मिल गई। सन 1995 तक उन्हे दो प्रमोशन मिल चुके थे यानी वो पहले जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर बन चुके थे, बिना किसी इंजिनियरिंग डिग्री के।

उनके कई मॉल भी निर्माणाधीन हैं। प्रोजेक्ट्स में यादव सिंह की हिस्सेदारी बताई जाती है। इस चीफ इंजीनियर और उनके परिवार के सदस्यों के पास कुल करीब एक हजार करोड़ रुपए कीमत की संपत्ति का अनुमान रहा। इनकम टैक्स विभाग के एक वरिष्ठ अफसर के मुताबिक, पूरा मामला यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता और उनके पार्टनरों द्वारा 40 कंपनियां बनाकर हेराफेरी करने का है। बोगस शेयर होल्डिंग के बूते सिर्फ नाम के लिए कंपनियां बनाकर नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी से प्लॉट अलॉट करवाए गए। इसके बाद प्लॉट कंपनी समेत बेच दिए। दस्तावेजों में न दिखा कर बड़े पैमाने पर आयकर चोरी की गई।' नोएडा अथॉरिटी में तैनाती का फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी के नाम रजिस्टर्ड फर्म को सरकारी दर पर बड़े-बड़े व्यावसायिक प्लॉट अलॉट करा देता था।

यादव सिंह के नोएडा स्थित सेक्टर 51 की कोठी पर तकरीबन सौ मीटर के हिस्से में बनी ग्रीन बेल्ट में ईको फ्रेंडली शौचालय, फुट लाइट, चार्जिंग प्वॉइंट, कबूतरों का पिंजड़ा और रंग-बिरंगे झूले और बेंच थे। ग्रीन बेल्ट में ही यादव सिंह के घर के लिए जनरेटर और एक ट्रांसफामर रखा हुआ था। अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर होने के नाते यादव सिंह की एक जिम्मेदारी ग्रीन बेल्ट पर अवैध कब्जे को हटाना भी था, लेकिन वह खुद ऐसी पट्टी पर कब्जा किए हुए था। इनकम टैक्स डायरेक्टर जनरल (जांच) ने बताया कि ये सारा खेल 'शेल' कंपनियों के जरिए होता था। शेल कंपनियां बस नाम की कंपनियां होती हैं। व्यावहारिक रूप में इनका कोई वजूद नहीं होता। जांच के दौरान यह बात सामने आई है कि रजिस्टर्ड कंपनियां बनाकर नोएडा से प्लॉट अलॉट किए जाते थे। बाद में इनके शेयर शेल कंपनियों को बेचे जाते थे। इससे यह नहीं पता चल पाता था कि इनपर कैपिटल गेन कितना बना। इस तरह टैक्स की चोरी की जाती थी।

मायावती सरकार के दौरान भी यादव सिंह पर नोएडा में कई परियोजनाओं में धांधली के आरोप लगे थे। उनकी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने नियमों को ताक पर रखकर 954 करोड़ रुपये के ठेके अपने करीबियों को बांट दिए थे। इसके बाद अखिलेश सरकार ने यादव सिंह के खिलाफ विभागीय जांच बिठाकर उन्हें सस्पेंड कर दिया था। बाद में उनका सस्पेंशन वापस ले लिया गया था। इसीलिए योगी आदित्यनाथ ने परंपरा तोड़ी और नोयडा गये। भ्रष्टाचार से मुकाबला किया। तो ऐसी रही यह दस्ताने-बदउनमानी, पूर्णतया बेजोड़, बेमिसाल !

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