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शौर्य का पर्याय शूर ही होता है !!


के. विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार) : भारतीय जनता पार्टी (बिहार) ने मगध सम्राट अशोक प्रियदर्शी को आत्मसात कर लिया है। पटना के ज्ञान भारतीय केन्द्र भवन (बापू सभागार, अशोक कंवेंशन सेन्टर, 8 अप्रैल 2022) में सम्राट अशोक की 2327वीं जयंती पर एक समारोह आयोजित हुआ। इसमें केन्द्रीय श्रममंत्री भूपेन्द्र यादव तथा यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शिरकत की थी। सैद्धांतिक मकसद प्रचारित करना था कि ''अखण्ड भारत'' की अवधारणा सर्वप्रथम अशोक ने रची थी। हालांकि भाजपा अब ''भारत महासंघ'' को अंगीकार कर रही है। अर्थात जम्बूद्वीप, आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश समाहित कर, विशाल भारत का प्रतिरुप होगा। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के समय ही नारा लगता था कि : ''कौन करेगा भारत अखण्ड। भारतीय जनसंघ।'' तब देश से पाकिस्तान कट गया था।

फिलहाल सिराथू (कौशाम्बी) से चुनाव हारे केशव प्रसाद का नाता जातिगत आधार पर दासीपुत्र चन्द्रगुप्त के प्रपौत्र अशोक मौर्य के नाम वाली पार्टी के साथ बुनना था। मगर आज अनुसंधान द्वारा प्रमाणित करना होगा कि सिराथू (कौशाम्बी) के पूर्व भाजपायी विधायक 52—वर्षीय केशव प्रसाद जातिगत वोटरों के बाहुल्य के बावजूद एक पराजित प्रत्याशी रहे। इधर एक अन्य मौर्य—पुरोधा स्वामी प्रसाद फाजिलनगर से सपा टिकट पर लड़े और हारे। वे अभी अधर में फंसे हैं। मंत्री थे। गाड़ी—बंग्ला मिला था। अब सभी छूट गया। शासक सम्राट अशोक का नाम शायद उन्हें भी कुछ दिलवा दे।

फिलहाल यहां मुद्दा यह है कि ऐतिहासिक प्रतीकों के साथ कबतक खिलवाड़ चुनावी सियासत में होता रहेगा ? महाराष्ट्र में छत्रपति के और राजस्थान में महाराणा के नाम से यह सियासी विद्रूप कब तक चलेगा? विप्र वोटार्थी भगवान परशुराम को भी यूपी में घसीट लाये थे। मायावती ने रैदास जयंती मनाकर चर्मकारों को आकृष्ट करने का यत्न किया था। सब भूल गये थे कि शौर्य का घोतक शूर ही होता है।

यहां चर्चा हो कि कौटिल्य—शिष्य, अति पिछड़ा जाति (मण्डल आयोग की लिस्ट के मुताबिक) के मौर्य सम्राट अशोक की आज के भारत के संदर्भ में क्या किरदारी रहेगी? मूलभूत प्रश्न मुझे अखरा कि पुलवामा प्रकरण के महान सूत्रधार नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने बौद्ध धर्म प्रचारक अशोक को क्यों इतना मान दे दिया ? कलिंग के पराक्रमी चण्डाशोक के अहिंसक, कापुरुष तथा पलायनवादी बनने की गाथा सर्वविदित है। यदि अशोक अपने विशाल भारतीय साम्राज्य को संजो कर विस्तार करता रहता तो इतिहास का आकार ही भिन्न होता। पिता विंबसार द्वारा तक्षशिला प्रांत में बगावत को दबाने हेतु भेजने के दिन से मगधपति प्रियदर्शी बनने की लिप्सा तक अशोक ने भारत को विदेशी आक्रामकों के लिये खोल दिया था। दादा ने अलक्षेन्द्र को झेलम तट पर ही रोक दिया था।

मौर्य वंश की सैन्य शक्ति अशोक की अहिंसा के फलस्वरुप तीन सदियों में ​ही क्लीव हो गयी थी। शुंग राजाओं के काल तक और ज्यादा। यह तो गनीमत थी कि कि कुषाण वंश के कारण कुछ अवधि तक राष्ट्रीय अस्मिता बची रही। कुषाण सम्राट कनिष्क के वक्त तो कासगर (अधुना कम्युनिस्ट चीन के शिनजियांग प्रांत) तक भारत का आधिपत्य रहा। आज इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में चीन की सेना अकीदतमन्दों के मस्जिद तोड़ रही है, रमजान पर रोजे निषिद्ध हैं। नमाज पर पाबंदी है। कुरान अरबी में नहीं है। यह सब तालिबानी और पाकिस्तानियों की सहमति से चीन के इस तुर्कीभाषी प्रान्त में किया जा रहा है।

तो अब अहिंसा वाले मसले पर लौंटें। अशोक की नीतियां जो पलायन का परिचायक रहीं और भीरुताभरी भी, जिस का प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु शान्ति का नोबल पुरस्कार की लालसा में दशकों तक पालन करते रहे, का अंजाम आज का भारत भुगत रहा है। चीन और तिब्बत तक भारत का राज एक युग में फैला था। आज तिब्बत तो गया, लद्दाख, भूटान, अरुणाचल आदि पर भी कम्युनिस्ट साम्राज्यवादियों का शिकंजा कस रहा है। इतिहास के ऐसे मोड़ पर बौद्ध अशोक का अनुसरण कर प्रधानमंत्री आक्रोशित, उद्वेलित, जागरुक भारत राष्ट्र को क्या संदेश देना चाहते है? वही नेहरुवादी पलायन का? उनकी प्रतिकृति रहे पंडित अटल बिहारी वाजपेयी ने क्या किया था ? संसद भवन पर जघन्य पाकिस्तानी हमला (13 दिसम्बर 2001) हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय सेना को सीमा पर अरसे तक तैनात रखा। मगर आक्रमण का बिगुल बजाना भूल ही गये। परिणाम क्या हुआ? राष्ट्रीय नेतृत्व डरपोक और बुजदिल साबित हो गया। संसद भवन जो देश का नाभि स्थल है को ही भारत बचा नहीं पाया ! इसीलिये पुलवामा यादगार रहा, स्फूर्तिमान लगा। चेतावनी दुश्मन को मोदी ने दे दी थी। हिमाकत की तो पाकिस्तान को घर में घुसकर मारेंगे। इसी संदर्भ में सम्राट अशोक को महज मौर्य वोटों के खातिर हीरो बनाना कितना जायज है ? यह मूलभूत मसला है। गुजरात में हिन्दू आस्थाकेन्द्रों तथा आवास क्षेत्रों पर दंगाईयों द्वारा हमला गत सदी में सालाना वाकया होता था। अब 2002 के बाद दंगे नहीं हुये। कश्मीर भी अब भारत का हो गया, सात दशकों बाद ! धारा 370 दफन होते ही।

अर्थात सवा दो हजार वर्षों के बाद भारत ने अपनी शक्ल और भाषा खोज ली है। यही मोदी वाला मुहावरा है। नेहरु—अटल बिहारी की काव्यमय, दहशतभरी प्रवृत्ति नहीं है। अत: अशोक का संदर्भ बेसुरा, दागदार बना देता है। मोदीजी! आज भारत की मांग स्वच्छ इतिहास वाली है। अब तो भारत उठे। कितनी द्रुपदा के बाल खुले, कितने दिन ज्वाल वसंत हुआ ? नहीं दोहरया जायेगा।

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