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यूपी में तो दुश्मन का दुश्मन भी ‘दुश्मन’ नजर आ रहा


लखनऊ, 12 सितंबर 2022 : पुरानी कहावत है किदुश्मन का दुश्मनदोस्त होता है, लेकिन यह तोउत्तर प्रदेश है।चाहे मुख्य विपक्षीपार्टी सपा होया बसपा याफिर कांग्रेस, इनमेंयह दिखाने कीहोड़ जरूर मचीहै कि भाजपाका विजय रथरोकने में वेही सक्षम हैं, लेकिन यदि विपक्षीएकता की मुहिमचला रहे बिहारके मुख्यमंत्री नीतीशकुमार यहां उनमेंएकता की संभावनाएंदेखें तो उन्हेंनिराशा हासिल हो सकतीहै। यहां विपक्षीही एक-दूसरेके दुश्मन हैं।

विधानसभा चुनाव कोछह माह होनेजा रहे हैं।सभी दलों कीनजर स्वाभाविक तौरपर आगामी लोकसभाचुनाव पर है।विपक्ष के सामनेराज्य की 80 सीटोंपर भाजपा सेपार पाने कीचुनौती भी है, लेकिन जिस तरहसे सपा औरबसपा नेताओं द्वाराएक-दूसरे परगंभीर आरोप-प्रत्यारोपलगाए जा रहेहैं, उससे फिलहालतो दोनों दूर-दूर तकसाथ-साथ आतेनहीं दिख रहेहैं। पड़ोसी राज्यबिहार के हालियासियासी घटनाक्रम से भीविपक्षी कुछ सीखतेनहीं दिखते, जहांधुर विरोधी लालू-नीतीश ने अपने ‘दुश्मन’से निपटने केलिए हाथ मिलायाऔर भाजपा कोसत्ता से बाहरका रास्ता दिखादिया।

ऐसा नहींहै कि यहांपहले कभी कोईऐसा प्रयोग नहींहुआ। वर्ष 1992 मेंकल्याण सिंह कीसरकार जाने केबाद गठबंधन कीही सरकारें राज्यमें बनती रहीं।एक-दूसरे केसमर्थन से सरकारबनाने-गिराने कादौर डेढ़ दशकबाद वर्ष 2007 मेंबसपा के 403 मेंसे अकेले दमपर 206 विधानसभा सीटें जीतनेके साथ थमा।वर्ष 2017 के विधानसभाचुनाव में भीसपा और कांग्रेसमिले, लेकिन भाजपाको डेढ़ दशकबाद सत्ता मेंआने से रोकनहीं सके।

एक दशकपहले सपा सेमुकाबले में सूबेकी सत्ता सेबाहर होने वालीबसपा वर्ष 2014 केलोकसभा चुनाव में मोदीलहर के आगेशून्य पर सिमटकररह गई औरवर्ष 2017 के विधानसभाचुनाव में भीहाशिये पर हीरही। तब कहींवर्ष 2019 का लोकसभाचुनाव अकेले लड़नेकी हिम्मत मायावतीनहीं जुटा सकीं।बसपा प्रमुख नेमजबूरी में हीसही, लेकिन सपासंरक्षक मुलायम सिंह यादवसे पुरानी दुश्मनीभुलाकर सपा प्रमुखअखिलेश यादव सेहाथ मिलाया।

सपा-बसपाऔर रालोद केसाथ आने सेभाजपा गठबंधन जहां 72 से घटकर 64 लोकसभासीटों पर आगया, वहीं बसपाशून्य से 10 सीटोंपर पहुंच गई।सपा पांच परऔर अलग लड़ीकांग्रेस सिर्फ एक सीटही जीतने मेंकामयाब रही। बीतेविधानसभा चुनाव में सपाने भाजपा कोसत्ता से उखाड़फेंकने के बड़े-बड़े दावेकिए। पश्चिम सेरालोद और पूर्वांचलमें प्रभाव रखनेवाली सुभासपा सहितअन्य छोटे दलोंके साथ मिलकरताल ठोंकी, लेकिनभाजपा को सत्तामें वापसी सेन रोक सकी।

विपक्षी गठबंधन 125 परसिमट गया तोअलग लड़ी बसपाएक और कांग्रेसएक सीट हीपा सकी। भाजपायहां पूरे विपक्षके निशाने परहै, लेकिन सपा-बसपा केतीर एक-दूसरेपर ही गिररहे हैं। हालमें मुस्लिम बहुलरामपुर व आजमगढ़लोकसभा सीट केउपचुनाव में जिसतरह से सपाको अपनी दोनोंसीटें गंवानी पड़ीं, उससे बसपा कोलोकसभा चुनाव में अपनेलिए संभावनाओं कीनई जमीन दिखनेलगी है। बसपाप्रमुख मायावती यही बतानेकी कोशिश मेंजुटी हैं किसपा नहीं, बल्किबसपा ही भाजपाके विजय रथको रोकने मेंसक्षम है। मायावतीसपा पर भाजपासे मिले होनेका आरोप लगातेहुए मुस्लिम समाजको यही बतानेकी कोशिश मेंहैं कि सपाका साथ देकरमुस्लिम समाज नेबड़ी भूल कीहै।

मायावती पीएम बनानेसंबंधी अखिलेश के बयानपर भी तंजकरती हैं, ‘सपामुखिया उत्तर प्रदेश मेंमुस्लिम और यादवसमाज का पूरावोट व कईपार्टियों से गठबंधनकर भी जबअपना सीएम बननेका सपना पूरानहीं कर सके, तो दूसरे कोपीएम बनाने केसपने को क्यापूरा करेंगे।’ अखिलेशभी मायावती परहमले करने मेंपीछे नहीं हैं।सपा प्रमुख कहतेहैं कि बसपावही करती हैजो भाजपा उसेकरने के लिएकहती है, इसीलिएमायावती के निशानेपर भाजपा नहीं, सपा होती है।

अखिलेश आरोप लगातेहैं कि मायावतीभाजपा से नहींलड़तीं, वह तोअपनी एक बनाईहुई जेल मेंकैद हैं औरउन्हें लगता हैकि उनका जेलरदिल्ली में बैठाहुआ है। बसपाका नाम लिएबिना उसे भाजपाका लाउडस्पीकर बतातेहुए अखिलेश ट्वीटकरते हैं कि ‘इनका माइक कहींऔर है। ऐसेनालबद्ध दलों कोआक्रोशित जनता 2024 के चुनावमें सबक सिखाएगी।’दोनों ही दलसमझते हैं किमुस्लिम समुदाय उस पार्टीके साथ नहींजाएगा जो उसेभाजपा के साथलगेगा। जिसे मुस्लिमसमाज का साथमिलेगा वही चुनावीबाजी मारने मेंआगे रहेगा। पिछलेचुनाव में सिर्फएक सीट रायबरेलीतक सिमट चुकीकांग्रेस के सामनेतो इस सीटपर कब्जा जमाएरखने की हीबड़ी चुनौती दिखरही है।

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