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उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलनों का रक्तरंजित इतिहास और भारतीय किसान यूनियन


लंबे जत्थे, हरी-सफेद टोपी, हाथ में झंडा-डंडा, कंधे पर झोला, धोती-कुर्ता और सड़क पर पैदल मार्च यानी भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान।


एक दौर था जब महेंद्र सिंह टिकैत जिंदा थे। महेंद्र सिंह जिन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन की 1987 में नींव डाली और इसे विस्तार दिया। अस्सी और नब्बे के दशक में भारतीय किसान यूनियन यानी भाकियू के कार्यकर्ताओं के जत्थे अक्सर लखनऊ की सड़कों पर बगैर यातायात व्यवस्था बिगाड़े आते और जाते रहे। ये शांति व्यवस्था तब तक रहती जब तक महेंद्र सिंह टिकैत का अगला इशारा नहीं मिल जाता। एक बार इशारा मिलते ही शहर की कोई व्यवस्था सलामत नहीं रहती थी।


किसान आंदोलन देश और प्रदेश में कई बार हुए लेकिन ज्‍यादातर आंदोलन हिंसा की वजह से ही अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सके। स्टेट टुडे आपको बताएगा ऐसे आंदोलनों का इतिहास और उनका अंजाम


1 मार्च 1987 - करमूखेड़ी आंदोलन की शुरुआत भारतीय किसान यूनियन ने शामली से की थी। इसी आंदोलन में महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के बड़े नेता के रूप में सामने आए थे। ये आंदोलन बिजली की बढ़ी हुई दरों के खिलाफ किया गया था। लेकिन आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में पुलिस का एक जवान शहीद हो गया था। आंदोलनकारी किसानों ने पुलिस की जीप और फायर ब्रिगेड की गाड़ी को आग लगा दी थी और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया था। जवाबी कार्रवाई में दो किसानों की मौत पुलिस की गोली लगने की वजह से हो गई थी। इस हिंसा के बाद ये आंदोलन खत्‍म हो गया। किसानों को आश्‍वासन के अलावा कुछ और नहीं मिला था।


27 जनवरी 1988 - किसानों ने मेरठ कमिश्‍नरी का करीब 24 दिनों तक घेराव किया था। इस धरना प्रदर्शन में कई बार उग्र घटना भी देखने को मिली थी। ठंड की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई थी। हालांकि इसके बाद भी यूपी सरकार ने किसानों से कोई बात नहीं की थी। इसके बाद कपूरपूर स्‍टेशन पर आंदोलनकारियों ने एक ट्रेन में आग लगा दी थी। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इसका नतीजा ये हुआ कि किसानों ने अपना आंदोलन खत्‍म कर दिया था।




6 मार्च 1988 - किसानों का आंदोलन पुलिस द्वारा मारे मारे गए पांच किसानों के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए शुरू हुआ था। महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्‍व में ये आंदोलन करीब 110 दिनों से अधिक समय तक चला था। उन्‍होंने जेल भरो का नारा भी दिया था। इसको भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले किया गया सबसे बड़ा आंदोलन भी कहा जाता है। लेकिन ये आंदोलन भी अपना मकसद पूरा किए बिना ही खत्‍म हो गया था।


25 अक्‍टूबर 1988 - महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्‍व में जो आंदोलन किया उसमें लाखों किसानों ने हिस्‍सा लिया था। इन्‍होंने वोट क्‍लब को अपने कब्‍जे में ले लिया था। इसमें 14 राज्‍यों से किसान शामिल हुए थे। पुलिस ने वोट क्‍लब की घेराबंदी की तो आंदोलनकारियों की पुलिस से झड़प हो गई। इस झड़प में एक किसान की मौत हो गई थी। पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए किसानों पर जबरदस्‍त लाठी चार्ज किया। इसके बाद टिकैत ने आंदोलन खत्‍म करने का एलान कर दिया था।


27 मई 1989 - अलीगढ़ में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ एकजुट हुए किसानों की पुलिस से झड़प हो गई थी। इसमें कुछ किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद भी कुछ दिनों तक ये धरना प्रदर्शन चला लेकिन फिर बाद में आंदोलनकारियों में इसको लेकर ही विवाद पैदा हो गया था, जिसके बाद इसको खत्‍म कर दिया गया।


2 अगस्‍त 1989 - महेंद्र सिंह टिकैत ने मुजफ्फरनगर के एक गांव की युवती के गायब होने के बाद इस आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्‍होंने देश के सभी किसान नेताओं से वहां आने का आह्वान भी किया था। इस आंदोलन के 42 दिन बाद पहली बार राज्‍य के मंत्री आंदोलनकारियों के बीच पहुंचे और उनकी मांगों को मानने की घोषणा की थी। ये आंदोलन किसान आंदोलन के इतिहास में सबसे सफल माना जाता है।


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1993 - लखनऊ के चिनहट में किसानों ने बिजलीघर का घेराव किया, जिसके बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था। इसमें दो किसानों की मौत हो गई थी। महेंद्र सिंह टिकैत खुद तीन दिनों तक बिजलीघर पर ही धरने पर बैठे हुए थे। सरकार ने मृतक के परिजनों को मुआवजे के तौर पर तीन-तीन लाख रुपये दिए थे। इसके अलावा किसानों के ट्रैक्‍टर के नुकसान की भी भरपाई की थी। इस आंदोलन ने भारतीय किसान यूनियन को न सिर्फ एक बड़ी पहचान दी बल्कि उसको उत्‍तर भारत का एक बड़ा संगठन भी बना दिया था।


14 अगस्‍त 2010 - अलीगढ़ के टप्‍पल कांड ने राज्‍य और केंद्र सरकार को हिलाकर रख दिया था। ये आंदोलन नोएडा की भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किया गया था। इस आंदोलन के उग्र होने के बाद जब पुलिस ने बल प्रयोग किया तो उसमें तीन किसानों की मौत हो गई थी। इसमें पीएसी के एक कंपनी कमांडर की भी मौत हो गई थी। इस घटना के तीन वर्ष बाद नए भूमि अधिग्रहण बिल को केंद्र ने मंजूरी दी थी। इसमें सर्किल रेट को बढ़ाने के साथ कुछ और भी प्रावधान किए गए थे।


23 सितंबर 2018 - किसानों ने दिल्‍ली की तरफ कूच किया। ये यात्रा करीब 2 अक्‍टूबर तक चली, लेकिन पुलिस द्वारा बॉर्डर से उन्‍हें दिल्‍ली में नहीं घुसने दिया गया। इसके बाद जबरदस्‍त हिंसा हुई। इसके बाद किसान नेताओं की केंद्रीय गृह मंत्री से बातचीत हुई और आंदोलन खत्‍म कर दिया गया। ये आंदोलन महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे नरेश टिकैत के नेतृत्‍व में हुआ था।


ये सच है कि महेंद्र सिंह टिकैत जब तक जिंदा रहे उत्तर प्रदेश में किसानों के नेता के रुप में ना सिर्फ पहचाने गए बल्कि अपने संगठन की शांति और उग्रता के कारण विशेष पहचान दिलाने में भी कामयाब रहे।


हांलाकि उनके दौर से अब उनके बेटों के दौर तक किसानों के हितों से जुड़े किसी भी ऐसे कार्य का जिक्र करना मुश्किल है जिसमें किसी भी दल की सरकार के साथ उनकी पटरी खाई हो या किसी मुद्दे का हल निकला हो।


हांलाकि किसानों के नाम की राजनीति करने टिकैत आर्थिक रुप से लगातार संपन्न होते गए।


टीम स्टेट टुडे

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